लैंगिक असमानता के खिलाफ दो कदम और बढ़े, महिला काजी ने पढ़ाया निकाह

मुंबई
माया मैकमानुस एक रौशन ख्याल युवती का नाम है, जिन्होंने तमाम रस्म-ओ-रिवाजों में बरती जाने वाली गैरबराबरी के खिलाफ दो कदम बढ़ाते हुए महिला काजी से अपना निकाह पढ़ाया है। यूं तो उलेमाओं और इस्लामिक जानकारों का कहना है कि महिला काजी निकाह पढ़ा सकती हैं और कुरान में इसकी मनाही नहीं है, लेकिन व्यवहार में अब तक ऐसा नहीं था। दो साल पहले लखनऊ में एक महिला काजी ने निकाह पढ़ाया था तो वहां कुछ मौलानाओं ने इसका विरोध किया था।

माया और उनके दोस्त शमौन अहमद ने 5 जनवरी को कोलकाता में शादी कर ली। माया पेशे से डिजायनर हैं, जबकि शमौन ऐक्टर हैं। सुनने में यह आसान लग सकता है कि उनका निकाह एक महिला काजी हकीमा खातून ने पढ़वाया है, लेकिन डेढ़ हजार साल की परंपरा को देखें तो पुरुष ही काजी होते रहे हैं और वही निकाह पढ़ाते थे।

महिला काजी से ही पढ़ाना था निकाह
माया के पिता इंग्लैंड से थे और मां बंगाली हैं। माया बताती हैं कि वे महिला काजी से ही निकाह पढ़ाना चाहती थीं और पिछले दो साल से काजी की तलाश कर रही थीं। जून 2018 में उन्होंने भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) की वेबसाइट पर महिला काजी के बारे में पढ़ा तो इस संबंध में मेल किया। इसके बाद बीएमएमए, मुंबई से काजी की ट्रेनिंग लेने वाली कोलकाता के हावड़ा की हकीमा खातून से उनका संपर्क करवाया गया। काजी हकीमा कहती हैं, 'मैं बहुत खुश हूं कि यह सिलसिला शुरू हुआ।' वहीं, माया बताती हैं कि उनके और शमौन के मां-बाप उनके इस फैसले से बहुत खुश हैं।

'कुरान के साथ संवैधानिक भी हो'
बीएमएमए की सह-संस्थापक नूरजहां सफिया नियाज कहती हैं कि देशभर की 30 औरतों को काजी बनाने के लिए प्रवेश दिया गया था, जिनमें से 16 औरतों ने दो साल पहले यह कोर्स पूरा किया था। इसमें कुरान और मुस्लिम पर्सनल लॉ की जानकारी तो दी ही गई थी, लेकिन हमने कुछ और चीजों को शामिल किया था। वह बताती हैं कि चूंकि हम हिंदुस्तानी हैं तो संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखना जरूरी है। शादी से पहले लड़के और लड़की की उम्र देखते हैं। इसके अलावा निकाहनामा में होने वाले पति से यह भी लिखवाया जाता है कि वह तीन तलाक नहीं देगा और बगैर तलाक के दूसरी शादी नहीं करेगा।

दारुल कजा के चीफ काजी मुफ्ती इनामुल्लाह का कहना है, 'काजी का बहुत अधिक किरदार नहीं होता है। निकाह के लिए औरत और मर्द की रजामंदी की जरूरत होती है। वे राजी हैं तो गवाहों की मौजूदगी में वैसे भी निकाह हो सकता है। अब निकाह पढ़ाने की बात है तो कोई भी निकाह पढ़ा सकता है।

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