राहुल की भुवनेश्वर रैली, क्या दरकते किले को संभाल पाएगी कांग्रेस?

 
नई दिल्ली   
 
ओडिशा में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की रैलियां शुरू होने वाली हैं. ओडिशा कांग्रेस के प्रभारी जितेंद्र सिंह ने बताया कि राहुल की पहली रैली 25 जनवरी को भुवनेश्वर में होगी और लोकसभा चुनाव संपन्न होने तक वे हर महीने कई रैलियों और जनसभाओं को संबधित करेंगे. जिस तरह से ओडिशा कांग्रेस में विधायकों और दूसरे नेताओं का दूसरी पार्टियों में जाने का सिलसिला शुरू हुआ उसमें राहुल की रैली से पार्टी में नया जोश आ सकता है. राजनीतिक जानकारों का यह भी कहना है कि प्रियंका को यूपी की जिम्मेदारी सौंपकर राहुल दूसरे राज्यों में ज्यादा फोकस करना चाहते हैं. फिर भी चुनाव तैयारियों की बात की जाए तो कांग्रेस ओडिशा में पिछड़ती नजर आ रही है.

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) यहां अपनी तैयारी काफी पहले शुरू कर चुकी है. हालांकि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह अभी चुनावी रेस में पीछे हैं क्योंकि उनकी तबीयत खराब चल रही है. उनकी जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना पूरा दमखम दिखाया है और बीते 2 महीने में तीन बार ओडिशा का दौरा कर चुके हैं. अटकलें ऐसी भी हैं कि नरेंद्र मोदी लोकसभा का चुनाव ओडिशा से लड़ सकते हैं.

सवाल है कि जिस ओडिशा में बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है, वहां कांग्रेस की चाल इतनी धीमी क्यों है? क्या कांग्रेस को लग गया है कि अगला चुनाव 'डूबती नैया' है जिसे सब छोड़ कर भागे जा रहे हैं? जैसा कि पिछले कुछ घटनाक्रम गवाह हैं, देश की अति प्राचीन पार्टी कांग्रेस के कई नेताओं में नाराजगी है और कुछ पार्टी को अलविदा भी कह चुके हैं. इस पर सियासी पंडितों का कहना है कि ओडिशा कांग्रेस में खलबली एक दरकते किले की ओर इशारा है क्योंकि ऐसा नहीं होता तो कभी केंद्रीय मंत्री रहे और प्रदेश के फायरब्रांड नेता श्रीकांत जेना को ऐसे बाहर का रास्ता नहीं दिखाया जाता.

कई विधायक छोड़ चुके हैं पार्टी

ओडिशा में कांग्रेस से खार खाए नेताओं में जेना अकेले नहीं हैं. नए साल के इस महीने में महज 25 दिन बीते हैं और कांग्रेस में खलबली का आलम यह है कि विधायक भी धड़ाधड़ इस्तीफा थमा रहे हैं. योगेश सिंह और नबा किशोर दास का उदाहरण ले सकते हैं. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस को इन विधायकों की 'अनुशासहीनता' जो अभी दिखी है, वह पहले नहीं थी. जेना, योगेश सिंह और किशोर दास जैसे नेता कई दिनों से आगाह कर रहे थे और मुकम्मल कार्रवाई की मांग कर रहे थे लेकिन राहुल गांधी ओडिशा के लिए समय नहीं निकाल पाए.

कांग्रेस के 16 विधायक चुने गए थे

यह भी तय है कि राहुल गांधी के पार्टी मैनेजर ओडिशा की हर एक जानकारी उन्हें दे रहे होंगे. पहले और अब में क्या फर्क है, उन्हें जरूर पता होगा. अलबत्ता ओडिशा की 147 विधानसभा सीटों में पिछले चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 16 झटक पाई और 21 सदस्यीय लोकसभा में कांग्रेस की एक भी सीट नहीं आ पाई. इससे अंदाजा लगाना साफ है कि कांग्रेस पहले ही सरेंडर कर चुकी है. बाकी बची आशाएं इसलिए मद्धिम हो रही हैं क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी के वहां से लड़ने की अटकलें तेज हैं. तो क्या ये मानें कि राहुल गांधी और उनकी पार्टी कांग्रेस अगले लोकसभा सह विधानसभा (संभावना है दोनों चुनाव साथ हों) चुनावों में असल लड़ाई बीजेडी बनाम बीजेपी मान रही है? मामला कुछ ऐसा ही है तभी कांग्रेस विधायकों की संख्या भी सिमटती जा रही है. ऐसी परिस्थिति में कोई पार्टी अपने अध्यक्ष को हारी बाजी पर दांव भला क्यों लगाने देगी.

जेना ने बिगाड़ा खेल

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कभी कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे श्रीकांत जेना अब अपनी पार्टी से बेदखल हो चुके हैं. उनकी बेदखली जरूर हुई है मगर उनके तेवर ढीले नहीं पड़े हैं. इस तेवर की गंभीरता का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि जेना ने खुलेआम ऐलान किया कि वे राहुल गांधी का 'असली चेहरा' लोगों के बीच रखेंगे. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि जेना अकेले नहीं गए, साथ में कोरापुट के विधायक कृष्ण चंद्र सागरिया को भी ले गए.

जेना ने लगाए हैं गंभीर आरोप

जेना के आरोपों पर गौर करें तो इसकी गंभीरता समझ में आएगी और यह भी पता चलेगा कि ओडिशा कांग्रेस किस खलबली से जूझ रही है. बकौल जेना, 'राहुल गांधी ने साफ कर दिया है कि वे खनन माफिया का साथ देंगे. ओडिशा प्रदेश कांग्रेस कमेटी जो कभी उत्कलमणि गोपबंधु दास के साथ थी, आज खनन माफिया के हाथों खेल रही है. इस बारे में हमने राहुल गांधी का ध्यान कई बार खींचा लेकिन उन्होंने गौर नहीं किया.' जेना ने काफी चतुराई से गोपबंधु दास का नाम लिया है क्योंकि दास को ओडिशा का गांधी कहा जाता है और ओडिशा के इस गांधी की शोहरत ऐरी-गैरी नहीं, बल्कि सामाजिक कार्यकर्ता, सुधारक, राजनीतिक एक्टिविस्ट, पत्रकार, कवि और निबंधकार के रूप में रही है. सो, जेना ने गोपबंधु दास वाली कांग्रेस को माइनिंग माफिया कांग्रेस बताकर एक साथ कई निशाने दागे हैं. अब कांग्रेस को समझ में नहीं आ रहा कि पहले चुनावी रैली करें या जाते हुए नेताओं को रोकें.

धर्मेंद्र प्रधान अड़े और कांग्रेस पिछड़ गई

ओडिशा में बीजेपी की क्या तैयारी है, इसे जानने के लिए केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की गतिविधि देखें. प्रधान वहीं से आते हैं लेकिन राज्यसभा में होने के बावजूद उनका ज्यादातर समय ओडिशा में गुजरता है. उनकी छवि स्वच्छ है और उनके काम भी गिने जा रहे हैं. गैस के क्षेत्र में कई प्रोजेक्ट शुरू हुए हैं रूस जैसे तेल-गैस प्रधान देशों के साथ अहम समझौते हुए हैं.  

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