राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना को सभी जिलो तक बढ़ाया जाए

अमिताभ पांडेय/ मित्र रंजन
नई दिल्ली

आज बाल श्रम के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस है, आज का दिन कोविड़ 19 नाम की महामारी के दौरान और भी महत्वपूर्ण हो जाता है| आज हम सभी को बाल अधिकारों के सभी पहलू पर गंभीरता से सोचना होगा| आज हम उन बिन्दुओं के कुछ सरकार के आंकड़ों की ओर देखें जिनके कारण बाल श्रम, बाल शोषण बढ़ सकता है, गुजरात में गुमशुदा बच्चे (मिसिंग चाइल्ड) 2016 से 2018 में 6596 बच्चे गुम हुए जिसमे इसी अवधि में 4773 ही पाये गए यानि 1823 बच्चे का क्या हुआ पता नहीं चला| हम जानते हैं कि गुजरात उद्योग प्रधान प्रदेश है यहाँ बाल श्रम की संभावना अधिक है लेकिन राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एनसीएलपी) के तहत सिर्फ 9 ज़िलों में ही मंजूरी मिली है व फरवरी 2020 तक मात्र 3 ज़िलों (सूरत, कच्छ, वडोदरा) ही कार्यशील हुए थे| इस परियोजना के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2019-20 में मात्र 78 करोड़ का प्रावधान किया था| सरकार द्वारा वर्ष 2015-16 से 2019-20 में दिसम्बर 2019 तक 40050 बच्चो को बाल मज़दूरी से छुड़ाया गया| गुजरात में फरवरी 2020 तक घर विहीन बच्चों की संख्या 1633 थी जो बाल ग्रहों में रह रहे थे|

आज COVID-19 नामक स्वास्थ्य महामारी जिसके कारण आर्थिक और श्रम बाजार को झटका लगा है जिससे लोगों के जीवन और आजीविका पर भारी असर पड़ा है। तमाम अनुमानों के मुताबिक़ इस महामारी के चलते सेवा क्षेत्र में बड़ी संख्या में रोजगारों की कमी आएगी, दुर्भाग्य से बच्चे अक्सर सबसे पहले पीड़ित होते हैं। यह संकट लाखों कमजोर बच्चों को बाल श्रम में धकेल सकता है। हम सबको बाल अधिकार, संरक्षण, शिक्षा के सभी बिन्दुओं पर गंभीरता से विचार कर उनके लिए ठोस कार्यनीति पर अमल करना होगा|

हम सरकार से मांग करते है कि राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एनसीएलपी) का दायरा सभी जिलो तक बढ़ाया जाए, केंद्र और राज्य के बजट में अलग से उचित आवंटन किया जाए|

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