राजस्थान के मयंक प्रताप ने रचा इतिहास, 21 साल की उम्र में बन गए जज

जयपुर

राजस्थान के 21 वर्षीय मयंक प्रताप सिंह ने इतिहास रचा है. वह 21 साल की उम्र में जज बनने जा रहे हैं. आजतक ने मयंक से जयपुर में खास बातचीत की. मयंक ने बताया कि उन्हें आरजेएस परीक्षा की तैयारी में कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. उन्होंने अपनी रुचि से लेकर अच्छा जज बनने के क्राइटेरिया पर बातचीत की.

मयंक ने कहा कि जाहिर है बहुत खुशी हो रही है. मैंने उम्मीद की थी कि सेलेक्शन हो जाएगा पर इतना अच्छा रिजल्ट आएगा इसकी उम्मीद नहीं थी. मेरे और मेरे परिवार के लिए ये बहुत खुशी की बात है. घर में जब से रिजल्ट आया है खुशी का माहौल है. ये मेरे लिए बहुत कठिन था. मैं अपने कॉलेज की पढ़ाई पूरी करके फाइनल इयर में था. उसके बाद मैंने तैयारी करनी शुरू की, जिससे मुझे ज्यादा पढ़ाई में ध्यान देना पड़ा. मैंने 11-12 घंटे मन लगाकर पढ़ाई की. लक्ष्य ये था कि परीक्षा शुरू होने से पहले मैं अपना सिलेबस खत्म कर सकूं और एग्जाम में अच्छा कर पाऊं.

21 वर्षीय मयंक ने यह भी कहा कि राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा न्यूनतम आयुसीमा को 23 से घटाकर 21 करना उनके लिए काफी मददगार साबित हुआ. पहली बार जब रिक्त पदों के लिए नोटिफिकेशन आया था, तब मैं परीक्षा देने के लिए योग्य नहीं था. लेकिन बाद में उन्होंने उम्र कम कर दी और मैं योग्य हो गया. मैं अपने आप को किस्मत वाला समझता हूं. बहुत अच्छा लग रहा है कि मैं मैंने यह रैंक हासिल की.

मयंक ने कहा कि उन्होंने इसी साल राजस्थान यूनिवर्सिटी से 5 साल का बीएएलएलबी किया है. अपनी प्रेरणा के बारे में उन्होंने कहा कि जब मैं 12वीं कक्षा में था तब मुझे लगता था कि ज्यूडिशरी का समाज में कितना महत्वपूर्ण रोल है. न्यायालयों में पेंडिंग मामले बहुत ज्यादा हैं. मैं अपना योगदान देना चाहता था जिससे लोगों को न्याय दे सकूं. शायद मेरे लिए वही प्रेरणा बनी जिसकी वजह से ये किया.

यह पूछे जाने पर कि उनके हिसाब से एक अच्छा जज बनने के लिए क्या क्राइटेरिया होना चाहिए, मयंक ने कहा कि सबसे पहले तो ईमानदारी जरूरी है. ईमानदारी किसी भी पब्लिक सर्वेंट के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ईमानदारी से ही न्यायपालिका में लोगों का विश्वास बना रहता है. मुझे लगता है कि संवेदनशीलता सामाजिक मुद्दों की तरफ बहुत महत्वपूर्ण है. महिलाओं या बच्चों से संबंधित फैसले देने के मामले में मेरा मानना है कि जज के लिए भेदभावरहित होना बहुत जरूरी है क्योंकि फैसले के लिए उन्हें ऑब्जेक्टिवली सारे तथ्यों को देखना पड़ता है, उसके बाद फैसला देना होता है. मुझे लगता है कि ये गुण एक जज में होना बहुत जरूरी है.

आज समाज में कई ऐसे फैक्टर्स हैं जो पब्लिक सर्वेंट को प्रभावित कर सकते हैं. बाहुबल और धनबल पर आपकी जिम्मेदारी बनती है कि वो उन सभी प्रभावों से दूर रहें. जजमेंट देते समय ध्यान रखें कि वो सिर्फ जज हैं. वो अपने कोर्टरूम तक सीमित हैं. उसमें जो तथ्य उसके सामने आएंगे उनको देखकर उसे निर्णय देना होगा ना कि दूसरों की बातें सुनकर.

ये पूछे जाने पर कि 21 साल की उम्र में जज बनने से वो करियर के बारे में क्या सोचते हैं, मयंक ने कहा कि मुझे लगता है कि मैं राजस्थान ज्यूडिशरी के लिए बेहतर साबित होऊंगा. कम उम्र में चयनित होने का यही फायदा होगा कि मेरे पास सेवाएं देने के लिए लंबा समय होगा. मुझे लगता है कि मुझे लोगों की सेवा करने के लिए ज्यादा टाइम मिलेगा और मैं ज्यादा योगदान दे पाऊंगा.

अपने शौक के बारे में वो बताते हैं कि मुझे किताबें पढ़ना बहुत पसंद है. उपन्यास वगैरह मैं बहुत पढ़ता हूं. इसके अलावा सोशल वर्क करना बहुत अच्छा लगता है. जब भी मुझे फ्री टाइम मिलता है तो मैं उसके साथ अटैच होता हूं. जो भी महिलाएं और बच्चे हैं उनके लिए कुछ करने की कोशिश करता हूं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *