यमुना साफ नहीं हुई तो अफसरों पर केस दर्ज होगा, एनजीटी की चेतावनी

 नई दिल्ली                                                                                                                                            
यमुना नदी में बढ़ते प्रदूषण और तमाम दावों के बावजूद इसके साफ नहीं होने पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से सख्त रुख अपनाया है। एनजीटी ने इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की चेतावनी दी है।

एनजीटी प्रमुख ए के गोयल की अगुवाई वाली पीठ ने कहा है कि पिछले 23 वर्षों में हजारों करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद दिनोंदिन यमुना नदी के स्वच्छ होने के बजाए इसमें प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ता ही जा रहा है। पीठ ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के संबंधित अधिकारियों को एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप को छोड़कर समय सीमा के भीतर सभी आदेशों का पालन करने का आदेश दिया है। 

पीठ ने कहा कि यदि दिसंबर, 2020 तक उसके सभी आदेशों का प्रभावी तरीके से पालन नहीं किया गया तो इसे आपराधिक कृत्य माना जाएगा। इसके साथ ही पीठ ने चेतावनी देते हुए कहा कि इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है।

निगरानी का आदेश : ट्रिब्यूनल ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन को कामकाज की निगरानी करने का आदेश दिया है। ट्रिब्यूनल ने दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों को अपने राज्यों में यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए चल रही कार्ययोजना की खुद निगरानी करने का आदेश दिया है। दिल्ली में डीडीए के उपाध्यक्ष को भी योजना के लागू होने की खुद निगरानी करने का निर्देश दिया गया है। एनजीटी ने तीनों राज्यों के मुख्य सचिवों को कामकाज के प्रगति की हर माह रिपोर्ट तैयार करने को कहा है। साथ ही रिपोर्ट को दिल्ली सरकार के पूर्व मुख्य सचिव शैलजा चंद्रा व एनजीटी के पूर्व विशेषज्ञ सदस्य बी.एस. साजवानी की निगरानी समिति के साथ साझा करने को कहा है।

अनदेखी पड़ेगी भारी : एनजीटी ने तीनों राज्यों के मुख्य सचिवों को यमुना नदी को स्वच्छ बनाने की परियोजना से जुड़े अधिकारियों के कामकाज का रिकॉर्ड उनकी सेवा पुस्तिका में दर्शाने को कहा है। अधिकारी अपनी जिम्मेदारी का पालन करने में सफल रहे या विफल, इसका उल्लेख उसके एसीआर में करने का निर्देश भी पीठ ने दिया है।
 
दस लाख रुपये प्रति एसटीपी जुर्माना लगाया जाएगा
पीठ ने कहा है कि यदि तय समय में एसटीपी का निर्माण नहीं होता है तो संबंधित विभाग को हर माह जुर्माना देना होगा। जुर्माने की रकम प्रति एसटीपी 10 लाख रुपये प्रति माह होगी। दिसंबर 2020 तक इसे पूरा करना है। इसी तरह 1 नवंबर, 2019 से नालों में सीवर के पानी को जाने से रोकने का आदेश दिया। इसका पालन नहीं करने पर भी जुर्माना देना होगा। साथ ही एसटीपी को अपग्रेड करने का भी आदेश दिया है।

धन के दुरुपयोग पर नजर
एनजीटी ने सभी राज्यों को यमुना नदी से जुड़ी परियोजना में किसी भी तरह से धन का दुरुपयोग समाने आने पर संबंधित अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज कराने का आदेश दिया है। साथ ही परियोजना से जुड़े कामकाज का ठेका देने में तेजी लाने का निर्देश देते हुए राज्य स्तर के काम में राज्य प्राधिकार और केंद्र स्तर पर एनएमसीजी और सीपीसीबी को निविदा प्रक्रिया की निगरानी करने का आदेश दिया है।

सीवेज का पानी शोधित किए बिना नदी में न जाए
एनजीटी ने दिल्ली, हरियाणा व उत्तर प्रदेश को निर्देश दिया है कि वह सबसे पहले यह तय करें कि किसी भी हालत में यमुना नदी में सीवेज का पानी शोधित किए बगैर नहीं जाने पाए। इसे नदी को प्रदूषित करने का सबसे बड़ा स्रोत बताते हुए पीठ ने कहा कि यह तय हो कि नालों के जरिए सीवर का पानी नदी में नहीं जाएगा। इसके साथ ही समय सीमा के भीतर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट व इंटरसेप्टर लगाने का आदेश दिया है।

इतने वर्षों बाद भी यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त करने के आदेशों का पालन करने के बजाए अधिकारी एक-दूसरे पर जिम्मेदारी थोपने का खेल-खेल रहे हैं। यमुना को स्वच्छ बनाने के लिए तैयार कार्ययोजना को लागू करने में दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी भी पूरी तरह से विफल रहे हैं।
– एनजीटी की टिप्पणी

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