मैं हिंदी फिल्मों में ड्रैग एक्ट का ट्रेंड-सेटर हूं : विश्वजीत

मुंबई
अमिताभ बच्चन, कमल हसन, आमिर खान, गोविंदा और जावेद जाफरी जैसे कई कलाकार हैं, जिन्होंने ‘लावारिस’, ‘चाची 420’, ‘बाजी’, ‘आंटी नंबर 1’ और ‘पेइंग गेस्ट’ जैसी फिल्मों में एक महिला के रूप में सजधज कर अपने अभिनय का बखूबी प्रदर्शन किया और दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। अभिनेता विश्वजीत चटर्जी हालांकि ऐसा काफी पहले ही कर चुके थे।

साल 1966 में आई कॉमेडी फिल्म ‘बीवी और मकान’ में वह इस तरह के एक किरदार में काम कर चुके हैं और इसके कुछ सालों बाद साल 1968 में आई फिल्म ‘किस्मत’ के सदाबहार गीत ‘कजरा मोहब्बतवाला’ में भी एक औरत के रूप में नाच-गाकर उन्होंने अपने अभिनय का लोहा मनवाया।

विश्वजीत चटर्जी उस वक्त अपने करियर के उच्च शिखर पर थे, कई सारे हिट भी दे चुके थे। उन सुनहरे दिनों की यादों को ताजा करते हुए 83 वर्षीय इस अभिनेता ने कहा कि उस वक्त इस तरह के प्रयोग करने का आत्मविश्वास उन्हें अपने रंगमंच के कार्यकाल के दौरान ही मिला।

विश्वजीत ने बताया, ‘‘मैं कह सकता हूं कि रंगमंच ने ही मुझमें इस तरह के प्रयोग करने का आत्मविश्वास जगाया। बच्चन साहब सहित कई अभिनेताओं ने बाद में फिल्मों में ड्रैग एक्ट का प्रदर्शन किया, लेकिन मैं ही इसका ट्रेंड-सेटर था। मैंने ऐसा किरदार निभाया, जिनमें आपने विश्वजीत को नहीं देखा है।’’

अपने शुरुआती जिंदगी के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैंने रेडियो से शुरुआत की और वीरेंद्र कृष्ण भद्र मेरे गुरु थे। उन्हीं से मुझे वॉइस मॉड्यूलेशन की ट्रेनिंग मिली।’’

विश्वजीत ने इसके बाद कोलकाता में एक थिएटर समूह ‘बहुरूपी’ में एक जूनियर कलाकार के तौर पर काम करना शुरू किया। उस दौरान उन्होंने बारीकी से हर चीज को देखा और समझा।

आगामी चैट शो ‘लिविंग लिजेंड विद कोमल नाहटा’ के लॉन्च इवेंट से इतर विश्वजीत ने कहा, ‘‘उन दिनों के प्रशिक्षण ने मुझे वास्तव में यह अनुभव कराया कि एक कलाकार को फ्लेक्सिबल रहना चाहिए और अपने दायरे को बढ़ाने के लिए लगातार खुद को प्रेरित करते रहना चाहिए और प्रयोगात्मक चीजें करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।’’

उन्होंने आगे यह भी कहा, ‘‘मैं कभी भी अपनी किसी छवि को बनाने या उसे तोडऩे से नहीं डरता था, क्योंकि मुझे पानी के जैसे बनना था। मुझे किसी भी माध्यम और प्रारूप में सटीक बैठना था।’’

उन्होंने अपने सफर की शुरुआत रेडियो स्टेशन से की और बाद में रंगमंच में काम किया व इसके बाद हिंदी और बांग्ला फिल्मों के सफल अभिनेता बने। शायद ऐसा होना ही किस्मत में लिखा था।

विश्वजीत ने कहा, ‘‘मैंने हमेशा से ही देशभर के दर्शकों के लिए एक मनोरंजक बनने का सपना देखा और मैं खुद को केवल प्रांतीय फिल्मों तक सीमित नहीं रखना चाहता था। मैंने उर्दू की तालीम ली, अपनी हिंदी सुधारी और एक्शन भी सीखा। इस वजह से जब बंगाल में एक अभिनेता के तौर पर मैं मशहूर होने लगा तो मैंने खुद को कोलकाता से मुंबई स्थानांतरित करने का जोखिम उस वक्त उठाया, जब हेमंत कुमार ने मुझे बुलाया और फिल्म ‘बीस साल बाद’ में काम करने का एक मौका दिया।’’

उन्होंने ‘मेरे सनम’, ‘शहनाई’, ‘कोहरा’ और ‘अप्रैल फूल’ जैसी कई यादगार फिल्मों में काम किया। हालांकि मुंबई में व्यस्त दिनचर्या के चलते उन्होंने बांग्ला फिल्मों में काम करना बंद कर दिया।

क्या बांग्ला फिल्मों में दोबारा काम करने की उनमें रुचि है? इस सवाल पर विश्वजीत ने कहा, ‘‘व्यावसायिक क्षेत्र में बांग्ला फिल्म निर्माता अपनी मौलिकता को खो रहे हैं। उनके पास प्रतिभा है, लेकिन साहित्य की कमी है। वे अन्य प्रांतों से फिल्मों की रीमेक बनाते हैं, लेकिन क्यों?’’

विश्वजीत बांग्ला फिल्मों में साहित्य की वापसी चाहते हैं।

क्या उन्हें अपने बेटे अभिनेता प्रसेनजीत चटर्जी में अपनी झलक मिलती है? इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘‘वह काफी अलहदा है। एक कलाकार के तौर पर उसका दृष्टिकोण अलग है और उसका फिल्मों के चयन का पैमाना भी मुझसे जुदा है।’’

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