मप्र में अभी हैं डेढ़ लाख दलित परिवार शौचालय से वंचित

भोपाल
अनुसूचित जाति की भलाई के लिए संचालित होने वाली तमाम योजनाओं और कड़े कानूनी प्रावधानों के बाद भी दलितों की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है। हालात यह है कि प्रदेश में अब भी करीब डेढ़ लाख दलित परिवारों के घरों में शौचालय जैसी सुविधा नहीं मिल सकी है। यही नहीं सरकार और अफसरों की लापरवाही का हाल यह है कि इस वर्ग की योजनाओं के लिए आवंटित की जाने वाली राशि में से ही हर साल औसतन तीन हजार करोड़ खर्च ही नहीं किए जाते हैं, जिसकी वजह से यह राशि लैप्स हो जाती है।

यह खुलासा किया है केंद्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष डॉ. रामशंकर कथेरिया ने। उन्होंने मीडिया से चर्चा में कहा कि इस स्थिति के चलते मैने मुख्य सचिव से कहा है कि अजा वर्ग के लिए आवंटित बजट की राशि लैप्स न हो और पूरी राशि उनके ऊपर ही खर्च की जाए। उन्होंने कहा कि हमने मुख्य सचिव और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ अजा वर्ग के लिए चलाई जा रही विकास योजनाओं की वर्ष 2016, 2017 व 2018 में प्रगति की समीक्षा की। मुख्य सचिव से एक महीने में विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा गया है। इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा, जहां से यह रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेजी जाएगी।

उन्होंने कहा कि साक्षरता के मामले में भी प्रदेश में दलितों का औसत अच्छा नहीं है। प्रदेश में दलित महिला साक्षरता 52 प्रतिशत और पुरुष साक्षरता 59 प्रतिशत है, यह सामान्य से काफी कम है। कथेरिया ने कहा कि दलित वर्ग के शाला त्यागी बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है। प्राइमरी से मिडिल तक 50 प्रतिशत, मिडिल से हायर सेकंडरी तक 40 प्रतिशत और ग्रेजुएशन तक 30 प्रतिशत छात्र पढ़ाई बंद कर देते हैं, यह चिंताजनक स्थिति है। मुख्य सचिव से मामले में कार्रवाई करने को कहा गया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना, स्वच्छता मिशन, बैंक लोन आदि में भी मप्र की स्थिति अच्छी नहीं है। प्रधानमंत्री आवास योजना में बड़ी संख्या में दलित वर्ग के लोग छूट हैं। प्रदेश के 1.5 लाख दलित परिवारों के घरों में शौचालय नहीं हैं। जिला स्तर पर बैकों द्वारा दलितों के लिए लोन देने का प्रतिशत कम है।

कथैरिया ने कहा कि मप्र में दलितों की हत्या, उनकी जमीन पर कब्जे, महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामलों में कमी नहीं आ रही है। जाति प्रमाण पत्र नहीं होने की वजह से वर्ष 2016 से 2018 तक 289 मामलों में एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज नहीं हो पाया है। हमने मुख्य सचिव से कहा है कि अफसरों को स्वयं आगे बढक़र दलितों के जाति प्रमाण पत्र बनवाना चाहिए, ताकि एट्रोसिटी एक्ट में मामले दर्ज किए जा सकें। उन्होंने कहा कि हमने शासन को निर्देश दिए हैं कि सीवर डेथ के मामले में तुरंत एफआईआर दर्ज की जाए, ताकि मृतकों के परिवारों को राहत राशि मिल सके।

उन्होंने बताया कि मप्र में ग्वालियर, सागर और छतरपुर जोन में अन्य जोन के मुकाबले दलितों के साथ दुष्कर्म और हत्या के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। डीजीपी से इन जोन में घटनाएं रोकने सख्त कार्रवाई कर रिपोर्ट पेश करे।

मप्र में अभी हैं डेढ़ लाख दलित परिवार शौचालय से वंचित

भोपाल
अनुसूचित जाति की भलाई के लिए संचालित होने वाली तमाम योजनाओं और कड़े कानूनी प्रावधानों के बाद भी दलितों की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है। हालात यह है कि प्रदेश में अब भी करीब डेढ़ लाख दलित परिवारों के घरों में शौचालय जैसी सुविधा नहीं मिल सकी है। यही नहीं सरकार और अफसरों की लापरवाही का हाल यह है कि इस वर्ग की योजनाओं के लिए आवंटित की जाने वाली राशि में से ही हर साल औसतन तीन हजार करोड़ खर्च ही नहीं किए जाते हैं, जिसकी वजह से यह राशि लैप्स हो जाती है।

यह खुलासा किया है केंद्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष डॉ. रामशंकर कथेरिया ने। उन्होंने मीडिया से चर्चा में कहा कि इस स्थिति के चलते मैने मुख्य सचिव से कहा है कि अजा वर्ग के लिए आवंटित बजट की राशि लैप्स न हो और पूरी राशि उनके ऊपर ही खर्च की जाए। उन्होंने कहा कि हमने मुख्य सचिव और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ अजा वर्ग के लिए चलाई जा रही विकास योजनाओं की वर्ष 2016, 2017 व 2018 में प्रगति की समीक्षा की। मुख्य सचिव से एक महीने में विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा गया है। इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा, जहां से यह रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेजी जाएगी।

उन्होंने कहा कि साक्षरता के मामले में भी प्रदेश में दलितों का औसत अच्छा नहीं है। प्रदेश में दलित महिला साक्षरता 52 प्रतिशत और पुरुष साक्षरता 59 प्रतिशत है, यह सामान्य से काफी कम है। कथेरिया ने कहा कि दलित वर्ग के शाला त्यागी बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है। प्राइमरी से मिडिल तक 50 प्रतिशत, मिडिल से हायर सेकंडरी तक 40 प्रतिशत और ग्रेजुएशन तक 30 प्रतिशत छात्र पढ़ाई बंद कर देते हैं, यह चिंताजनक स्थिति है। मुख्य सचिव से मामले में कार्रवाई करने को कहा गया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना, स्वच्छता मिशन, बैंक लोन आदि में भी मप्र की स्थिति अच्छी नहीं है। प्रधानमंत्री आवास योजना में बड़ी संख्या में दलित वर्ग के लोग छूट हैं। प्रदेश के 1.5 लाख दलित परिवारों के घरों में शौचालय नहीं हैं। जिला स्तर पर बैकों द्वारा दलितों के लिए लोन देने का प्रतिशत कम है।

कथैरिया ने कहा कि मप्र में दलितों की हत्या, उनकी जमीन पर कब्जे, महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामलों में कमी नहीं आ रही है। जाति प्रमाण पत्र नहीं होने की वजह से वर्ष 2016 से 2018 तक 289 मामलों में एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज नहीं हो पाया है। हमने मुख्य सचिव से कहा है कि अफसरों को स्वयं आगे बढक़र दलितों के जाति प्रमाण पत्र बनवाना चाहिए, ताकि एट्रोसिटी एक्ट में मामले दर्ज किए जा सकें। उन्होंने कहा कि हमने शासन को निर्देश दिए हैं कि सीवर डेथ के मामले में तुरंत एफआईआर दर्ज की जाए, ताकि मृतकों के परिवारों को राहत राशि मिल सके।

उन्होंने बताया कि मप्र में ग्वालियर, सागर और छतरपुर जोन में अन्य जोन के मुकाबले दलितों के साथ दुष्कर्म और हत्या के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। डीजीपी से इन जोन में घटनाएं रोकने सख्त कार्रवाई कर रिपोर्ट पेश करे।

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