मंडी में व्यापारी किसानों की उपज पर झाडू मार कर कमा लेते हैं डेढ करोड़

सीहोर
मंडी में हर रोज करीब 600 ट्रालियां रोज आती हैं। जिनकी नीलामी के बाद किसान उन्हें व्यापारियों के शेड में ले जाते हैं। जहां उनकी तुलाई हो जाती है। तुलाई के दौरान बोरे भरने में जो अनाज बिखरता है उसे मंडी व्यापारियों के कर्मचारी बटोर लेते हैं। किसान बताते है कि हर किसान का तुलाई के दौरान 10 से 25 किलो तक अनाज बिखर जाता है। जिसकी कीमत 200 से 500 रुपए तक होती है। इस हिसाब से रबी सीजन में ही मंडी में व्यापारी किसानों के उपज पर झाडू मार कर डेढ करोड़ कमा लेते हैं।

मेरा अनाज को सोर रहे हो, मैं खुद उठा लूंगा, तुम लोग बोरे में क्यों भर रहे हो, अरे आप सोर लो आपको कौन रोक रहा है, आप सोर लो, आपके कर्मचारियों को मना करो, इस तरह की बहस किसानों और मंडी व्यापारियों के बीच हर दिन सुनी जा सकती है। यह बहस दिन में कई बार होती है और मंडी व्यापारियों के हर शेड में होती है। कई बार कहा सुनी बहुत बढ़ भी जाती है, लेकिन अंत में नुकसान सहने वाला किसान ही हार मान लेता है। व्यापारियों के यहां उपज तुलाई के दौरान हर एक किसान को 200 से 500 रुपए तक का नुकसान होता है। जो सिर्फ सीहोर की मंडियों में होता है। जिले की पास की मंडी शुजालपुर में जो अनाज बिखरता है व भी और जो भी अनाज बचता है वह किसान को ही दिया जाता है। किसानों को हो रहे इस नुकसान को रोकने मंडी प्रबंधन कोई कारगर कदम भी नहीं उठाता, यह परंपरा सालों से इसी तरह चली आ रही है। जिसका नुकसान सिर्फ किसानों को होता है।

मंडी में अधिकतर किसान अनाज ट्रालियों में भर कर लाते हैं। जिसकी तुलाई होने के बाद भी व्यापारी उनके बोरों में भर कर फिर से तोलते हैं। इस दौरान अनाज बिखरता है। हर एक ट्राली से 10 से 25 किलो तक अनाज बिखर जाता है। जिसे किसान बटोरता है। वहीं किसान के साथ मंडी व्यापारी के कर्मचारी भी यहां झाडू लगाने लगते हैं। किसान थोड़ा ही अनाज बटोर पाता है और व्यापारी के कर्मचारी इतने समय में झाडू लगाकर सूपड़ा भर लेते हैं। हर मंडी व्यापारी एक दिन में दो से तीन बोरे अनाज भर लेता है।

मंडी में रबी सीजन में हर दिन करीब 600 ट्रालियां आती हैं। जिनमें किसान अपनी उपज लेकर आते हैं। हर ट्राली से 10 से 25 किलो अनाज बिखरता है। गेहूं का मूल्य 20 रुपए किलो आंका जाए तो भी हर किसान को 200 से 500 रुपए का नुकसान होता है। इस हिसाब से हर दिन सवा लाख रुपए से ज्यादा का नुकसान किसान उठाते हैं। वहीं सीजन में यदि 90 दिन भी खरीदी चले तो किसानों को डेढ करोड़ से ज्यादा का अनाज व्यापारी के कर्मचारी झाडू लगाकर सोर लेते हैं।

कई बार जागरूक किसान अनाज कम निकलने पर व्यापारी के यहां आवाज बुलंद कर लेते हैं। किसान पहले अपना अनाज तोल कांटे पर तुलवा लेते हैं। जब वे व्यापारी के यहां जाते हैं और वहां अनाज कम निकलता है तो वे इसकी शिकायत करते हैं। मामला जब तोल कांटे के संचालक के पास पहुंचता है तो वह कह देता है कि हवा के दबाव या कई कारणों से वजन कम भी निकलता है। जिसके बाद किसान विरोध करना बंद कर देते हैं।

 

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