भगवान शिव को पाने के लिए मां पार्वती ने की थी हरतालिका तीज

जन्माष्टमी की तिथि के बाद अब हरतालिका तीज की तारीख को लेकर भी लोग असमंजस में हैं। हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है। आमतौर पर ये तीज उत्तर भारत में मनाया जाता है। हरतालिका तीज को 'तीजा' भी कहा जाता है। ये व्रत विशेषतौर पर विवाहित महिलाएं करती हैं और अपने पति की सेहत, लंबी उम्र और समृद्धि की प्रार्थना करती हैं। कई अविवाहित कन्याएं अच्छे जीवनसाथी की कामना लेकर इसका व्रत करती हैं।

कब मनाई जाएगी हरतालिका तीज

साल 2019 में हरतालिका तीज का व्रत किस दिन रखा जाएगा 1 या फिर 2 सितंबर, इसे लेकर अभी लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। मगर जानकार 1 सितंबर को हरतालिका तीज का व्रत करना शुभ बता रहे हैं।

हरतालिका तीज 2019 मुहूर्त

इस साल 1 सितंबर 2019, रविवार को शुभ मुहूर्त सुबह 5.27 से 7.52 तथा प्रदोष काल पूजा मुहूर्त शाम 17.50 से 20.09 तक का बताया गया है।

हरतालिका तीज की पूजा विधि

हरतालिका तीज या तीजा के दिन माता पार्वती और भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा की जाती है।

हरतालिका तीज प्रदोषकाल में किया जाता है। यह दिन और रात के मिलन का समय होता है। इस पूजन के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा अपने हाथों से तैयार की जाती है। इसके लिए आप बालू रेत व काली मिट्टी इस्तेमाल कर सकते हैं। आप अपने पूजास्थल को फूलों से सजा लें। अब एक चौकी रखें और उस पर केले के पत्ते रखकर भोलेनाथ, मां पार्वती और गणपति की प्रतिमा स्थापित करें।

अब देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, पार्वती माता और भगवान गणेश का षोडशोपचार पूजन करें। आप सुहाग की सारी वस्तुएं एक पिटारे में रखकर माता पार्वती को अर्पित करें। हरतालिका तीज के मौके पर आप शिवजी को धोती और अंगोछा चढ़ाएं। सुहाग की ये वस्तुएं अपनी सास के चरण से स्पर्श कराएं और फिर ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान कर दें। पूजन के पश्चात आप कथा सुनें और रात्रि जागरण करें। प्रातः काल में आरती के बाद माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं और उन्हें ककड़ी तथा हलवे का भोग लगाकर अपना व्रत खोलें।

हरतालिका तीज के व्रत को माना जाता है कठोर

मान्यता है कि माता पार्वती ने सर्वप्रथम हरतालिका तीज का व्रत किया था और इसके फलस्वरूप उन्हें भगवान शिव पति के रूप में प्राप्त हुए। महिलाएं भी इस दिन निर्जला व्रत करती हैं और अगले दिन पूजा के बाद ही व्रत खोलती हैं। व्रती को इस दिन सोने की मनाही होती है। वे पूरी रात भजन कीर्तन में बिताते हैं। इस दिन मेहंदी लगाने और झूला झूलने की भी परंपरा है।

 

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