बीजेपी के गढ़ में दिग्विजय की ताकत तौलना चाहती है कांग्रेस!

भोपाल 
मध्य प्रदेश कांग्रेस में यह सवाल गरमाया हुआ है कि दिग्विजय सिंह अपनी रियासत से जुड़े संसदीय क्षेत्र राजगढ़ से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन उन्हें उस भोपाल सीट से चुनाव मैदान में उतारा गया है जो पिछले तीन दशक से भाजपा का गढ़ है. भाजपा की वहां क्या ताकत है, इसका अंदाज इस बात से ही लगाया जा सकता है कि 2014 का चुनाव वहां भाजपा ने अपने साधारण प्रत्याशी के दम पर 3 लाख 70 हजार वोटों के अंतर से जीता है. ऐसी सीट जहां कांग्रेस के लिए जीत दूर- दूर तक दिखना अभी मुश्किल साबित हो रही है, वहां दिग्विजय सिंह को चुनाव लड़वाने की क्या वजह हो सकती है? यह उनके समर्थकों के लिए समझना मुश्किल होता जा रहा है. आखिर ऐसी क्या वजह है कि दिग्विजय सिंह को अपनी पसंद से अपना लोकसभा क्षेत्र नहीं चुनने दिया गया.
 
कांग्रेस हलकों में चर्चा है कि यह विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर हुए घमासान का नतीजा है. सिंह खेमे ने कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनने से रोका, जिसका परिणाम यह हुआ कि सिंधिया कांग्रेस महासचिव बन गए और उनका दिल्ली में कद बड़ा हो गया.

दिलचस्प है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ अपने गृह क्षेत्र छिंदवाड़ा से अपने बेटे नकुल नाथ को मैदान में उतार रहे हैं. वहीं कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया शिवपुरी – गुना या ग्वालियर क्षेत्र से स्वयं और अपनी पत्नी प्रियदर्शिनी के लिए टिकट ले सकते हैं, लेकिन दिग्विजय सिंह अपनी प्राथमिकता के तहत चाहते हुए भी राजगढ़ से टिकट नहीं ले पाए हैं. क्या इसकी एक वजह दिग्विजय सिंह और मुख्यमंत्री कमलनाथ के बीच चल रही कुछ अंदरूनी खटपट भी है ? सियासी हलकों में चर्चा है कि सरकार बनने के बाद सिंह एक पावर सेंटर बन गए. जिसने कुछ मामलों में मतभेद खड़े किए. सिंह कई मुद्दों पर नाखुश रहे उन्होंने कमलनाथ सरकार के कैबिनेट मंत्रियों की कार्यशैली को लेकर अपनी नाराजगी भी खुलकर जाहिर की.

लंबे समय से इस बात की चर्चा है कि लगातार दस साल तक कांग्रेस महासचिव रहे दिग्विजय सिंह की राहुल गांधी के कुछ खास नेताओं से पटरी नहीं बैठ रही है. जिसके चलते उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेटी में जगह नहीं दी गई. विधानसभा चुनाव में भी परदे के पीछे से सिंह कांग्रेस को एकजुट करने का काम करते रहे. वे चुनावी सभाओं से दूर रहे. पार्टी हाईकमान को यह फीडबैक दिया गया कि उनके बोलने से वोट कटते हैं.

दूसरा पहलू यह भी बताया जा रहा है कि कांग्रेस हाईकमान 2019 का लोकसभा चुनाव आक्रामक मोड में लड़ रही है. उसने अपने चार पूर्व मुख्यमंत्रियों को चुनाव मैदान में उतार दिया है. महाराष्ट्र से अशोक चव्हाण, उत्तराखंड से हरीश रावत, कर्नाटक से वीरप्पा मोइली भी लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. इसी के तहत दिग्विजय सिंह भी भोपाल से हैं, लेकिन ये तीनों पूर्व मुख्यमंत्री अपने मजबूत गढ़ से चुनाव लड़ रहे हैं.

एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता कहते हैं कि दिग्विजय सिंह 2020 तक राज्यसभा के सांसद हैं. इसलिए इस चुनाव की हार- जीत उनके लिए क्या मायने रखती है? कांग्रेस भोपाल के मुकाबले को दिलचस्प बनाना चाहती थी इसलिए सिंह को उम्मीदवार बनाया गया है. सिंह की चुनावी एंट्री को भाजपा अब नए दांव से खेलने जा रही है. उसने अपनी रणनीति बदलते हुए शिवराज सिंह को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी कर ली है. भाजपा के राष्ट्रीय महाचसिव कैलाश विजयवर्गीय जो पश्चिम बंगाल के प्रभारी हैं, वे भोपाल से चुनाव लड़ने के लिए उत्सुक हैं. वहीं मांलेगांव ब्लास्ट की आरोपी रहीं साध्वी प्रज्ञा ठाकुर भी सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहती हैं. एक तरह से वोटों के धुव्रीकरण का खेल शुरू हो रहा है.

राजगढ़ जो दिग्विजय सिंह का गृह क्षेत्र है वह सीट भी उम्मीदवारी को लेकर खतरे में पड़ गई है. इस सीट पर अधिकतर सिंह के परिवार या समर्थकों का दबदबा रहा है. यह इलाका संघ का गढ़ है, जिस कारण कई बार चौंकाने वाले परिणाम भी आए हैं. राजगढ़ कांग्रेस के नेताओं ने कांग्रेस हाईकमान से मांग की है कि सिंह को राजगढ़ से ही चुनाव लड़वाया जाए.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं उपाध्यक्ष सीपी शेखर कहते हैं कि भले ही भोपाल, इंदौर जैसे शहर भाजपा के गढ़ हैं, लेकिन इस चुनाव में ये गढ़ अब ढहने वाले हैं. बड़े नेता मुश्किल सीटों पर चुनाव लड़ें, यह कार्यकर्ताओं की मांग है और हाईकमान ने पार्टी को मजबूती देने के लिए यह फैसला किया है.

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