बारिश और मॉनसून में लेप्टोस्पायरॉसिस का खतरा

लेप्टोस्पायरॉसिस एक ऐसी बीमारी है जो मॉनसून के दौरान बढ़ जाती है। भारत में इस बीमारी ने साल 2013 में दस्तक दी थी, उसके बाद से हर साल इस बीमारी के कारण करीब 5 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित होते हैं। इस बीमारी से मरने वालों का आंकड़ा 10-15 फीसदी का रहता है। यह बीमारी जानवरों के मल-मूत्र से फैलने वाले लेप्टोस्पाइरा नाम के बैक्टीरिया से होती है।

पशु के मूत्र के दूषित पानी से फैलता है संक्रमण
आमतौर पर मनुष्य में संक्रमण प्रदूषित पानी से फैलता है जो कि पशु के मूत्र से दूषित होता है। यह शरीर में त्वचा, आंखों या श्लेष्म झिल्ली (त्वचा के चिटके/कटे हिस्से, किसी भी प्रकार के खुले घाव या स्क्रैच) के माध्यम से प्रवेश करता है। आमतौर पर यह भैंस, घोड़े, भेड़, बकरी, सूअर और कुत्ते के कारण फैलता है। बारिश के मौसम में इस संक्रमण के फैलने की आशंका बढ़ जाती है। लेप्टोस्पायरॉसिस के गंभीर प्रकार को वेल रोग के नाम से भी जाना जाता है।

बीमारी के लक्षण
लेप्टोस्पायरॉसिस गुर्दे की क्षति, मेनिनजाइटिस (मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के चारों ओर सूजन), लीवर की विफलता, सांस लेने में परेशानी और यहां तक कि मौत का कारण भी बन सकता है। इसके कुछ लक्षणों में तेज बुखार, सिरदर्द, ठंड, मांसपेशियों में दर्द, उल्टी, पीलिया, लाल आंखें, पेट दर्द, दस्त आदि शामिल हैं। किसी व्यक्ति के दूषित स्रोत के संपर्क में आने और बीमार होने का समय 2 दिन से 4 सप्ताह तक का हो सकता है।

बीमारी से ऐसे करें बचाव
– बारिश के दौरान पानी जम जाता हो तो ऐसे गंदे पानी में घूमने से बचें।
– चोट लगी हो तो उसे ठीक से ढंक लें, उसके बाद ही बाहर निकलें।
– बंद जूते और मोजे पहन कर चलें।
-डायबीटीज के मरीज खास तौर से सतर्क रहें।
– पैरों को अच्छी तरह से साफ करें। गीले पैरों में फंगल इंफेक्शन हो सकता है।
– पालतू जानवरों को संक्रमण से बचाने के लिए टीका लगवाएं।

ये लोग रहें ज्यादा सतर्क
खेतों में काम करने वाले किसान, पशुचिकित्सालय के कर्मचारी और डॉक्टर, सीवर या खदान में काम करने वाले लोग, पुलिस, सेना के जवान, बाढ़ या आपदा प्रबंधनकर्मियों को इस बीमारी का खतरा अधिक रहता है। लिहाजा ऐसे लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है।

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