पंक्चर बनाकर घर की ‘गाड़ी’ चला रहीं बेटियां
बिहार
‘वंश चलाने के लिए बेटा जरूरी’ की सामाजिक धारणा को बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के बगहा की बेटियों रानी व रेणु ने तोड़ दिया। बगहा शहर से 22 किलोमीटर दूर चौतरवा की दोनों सगी बहनें बाइक, कार और अन्य चार पहिया वाहनों के पंक्चर बनाकर परिवार का गुजारा कर रही हैं। 15 साल की रानी बताती है कि चार वर्ष पूर्व पिता विक्रम शर्मा पैरालाइसिस अटैक से लाचार हो गए। उनके शरीर के दाहिने हिस्से के सभी अंगों ने काम करना बंद कर दिया। पिता की लाचारी ने परिवार को बुरी तरह तोड़ दिया था। दो वक्त की रोटी के भी लाले पड़ने लगे थे।
दोनों बहनों ने थामी परिवार की पतवार : परिवार की नैया डगमगाने लगी तो बेटियों ने घर को संभालने की जिम्मेदारी उठा ली। विक्रम शर्मा की बड़ी बेटी रानी पिता की पंक्चर की दुकान संभालने निकली। रानी बताती है कि शुरू में जब मैंने दुकान खोलना शुरू किया तो काफी परेशानी हुई। लोग मेरी दुकान पर पंक्चर बनवाने आने से कतराते थे। इसका कारण मेरा लड़की होना था।
रानी ने बताया कि मेरे पंक्चर बनाने के काम की वजह से समाज में तरह-तरह की बातें कही जाने लगी थीं। लेकिन धीरे-धीरे मेरे ऊपर लोगों का विश्वास जमता गया। इसके बाद एक के बाद दूसरे ग्राहक आने लगे। धीरे-धीरे पंक्चर बनाने के साथ ही परिवार की गाड़ी भी चल निकली। रानी बताती है कि छोटी बहन रेणु (13 साल) भी उसकी काम में सहायता करती थी। वहीं, पिता विक्रम शर्मा बताते हैं कि जब उन्हें सिर्फ दो बेटियां ही हुईं, तो आसपास व रिश्तेदारी में काफी ताने मारे जाते थे। कहते थे कि वंश आगे कैसे चलेगा? मुसीबत के समय रानी-रेणु ने यह साबित कर दिखाया कि बेटियां बेटों से भी दो कदम आगे हैं।
बहनों को समाज से प्रोत्साहन मिल रहा
अब बगहा की इन बेटियों को समाज से भी प्रोत्साहन मिल रहा है। पतिलार निवासी धनंजय प्रसाद कहते हैं की वे पहले चौतरवा की दूसरी दुकान पर पंक्चर बनवाते थे। जब दोनों बहनों ने दुकान दुबारा से खोली तब उनको प्रोत्साहित करने के लिए वह उनकी दुकान में ही अपना काम करवाने लगे। वहीं, रतवल के अजीत राव कहते हैं कि पिता और परिवार को संकट से उबारने के लिए बेटियां का पंक्चर बनाना काफी अच्छा लगा। जब रानी व रेणु को वाहनों के पंक्चर बनाते देखा तो उन्होंने भी वहीं से बनवाना शुरू कर दिया। परसौनी निवासी लालबाबू यादव कहते हैं कि लड़कियों को मेहनत से पंक्चर बनाते देखना काफी सुखद लगता है।
उज्ज्वल भविष्य का बुन रहीं ताना-बाना
रानी और रेणु, दोनों बहनें सुबह से लेकर शाम तक परिवार चलाने की कशमकश में लगी रहती हैं। पंक्चर बनाने से अलावा घर के दैनिक काम को भी निपटाती हैं। लेकिन, उनकी दिनचर्या यहीं तक सीमित नहीं है। उनकी आखों में उज्ज्वल भविष्य के सपने भी हैं। दोनों उतनी ही लगन के साथ पढ़ती हैं। रानी व रेणु दोनों उच्च विद्यालय, पतिलार में पढ़ती भी हैं। रानी मैट्रिक की छात्रा है तो रेणु नौवीं की। दोनों बहनों की चाहत जीवन में पढ़-लिखकर बड़ा बनने की है। चौतरवा की मुखिया शैल देवी ने बताया कि रानी और रेणु ने गांव के साथ-साथ शहर की लड़कियों के समक्ष भी नारी सशक्तीकरण का उदाहरण पेश किया है। पंचायत की सरपंच रीना देवी ने बताया कि वे बराबर दोनों बहनों को प्रोत्साहित करती रहती हैं। दोनों बहनों को जीवन के हर क्षेत्र में डट कर रहने की जरूरत है।
जज्बा
* बीमार पिता और परिवार का सहारा बनीं दोनों सगी बहनें।
* वंश चलाने के लिए बेटा जरूरी है की धारणा को भी तोड़ा।