नौकरी करेंगी तो फायदे में रहेंगी

अकसर महिलाओं को आगे बढ़ाने और उनके अधिकारों की बात होती रहती है। इसके लिए तरह-तरह की नीतियां भी बनाई जाती रहती हैं, लेकिन सामाजिक परिप्रेक्ष्य में यदि इस बात पर गौर किया जाए तो आप पाएंगी कि इस मुद्दे के धरातल पर सच्चाई कुछ और ही है। महिलाओं को संबल प्रदान करने के लिए बहुत जरूरी है कि वह घर की चौखट से बाहर निकलें और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनें। लेकिन अकसर कुछ  हालात जैसे शादी, बच्चे का जन्म या परिवार की अन्य जिम्मेदारियों के चलते महिलाओं को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ती है और अपने सपनों को मारना पड़ता है।
जरूरी नहीं है कि नौकरी छोड़ने के लिए महिला पर हर बार समाज या परिवार द्वारा दबाव ही बनाया जाता हो। कई मामलों में महिलाएं यह निर्णय अपनी मर्जी से भी लेती हैं और इसका कारण साफ है। हमारे देश में लड़कियों को शुरू से ही सिखाया जाता है कि वह खुद से आगे परिवार को रखें, फिर चाहे उन्हें इसके लिए अपने सपनों की ही कुर्बानी क्यों न देनी पड़े। लेकिन मौजूदा समय में यह बात बेमानी सी ही लगती है, क्योंकि ऐसे कई कारण हैं, जो इस बात की पैरवी करते हैं कि महिलाओं को बाहर निकलकर काम जरूर करना चाहिये।

ज्यादा खुशमिजाज होती हैं कामकाजी महिलाएं
आमतौर पर लोग मानते हैं कि घर और बाहर की जिम्मेदारी अच्छी तरह संभालना बेहद जटिल काम है। महिलाओं को शादी के बाद सिर्फ घर ही संभालना चाहिये, यह सलाह देने वाले लोग आपको अपने आसपास आसानी से मिल जाएंगे,  जबकि वास्तविकता यह है कि यदि घर पर रहने का कोई विशेष कारण नहीं है, तो आपको बाहर निकलकर नौकरी जरूर करनी चाहिये। यह आपको न सिर्फ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाएगी, बल्कि आप ज्यादा खुशमिजाज भी रहेंगी। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार, कामकाजी महिलाओं को गृहिणियों की अपेक्षा अवसाद और तनाव का खतरा कम होता है और वो ज्यादा खुश रहती हैं।

वैवाहिक जीवन बनेगा मधुर
आज के इस महंगाई वाले समय में जब पति-पत्नी दोनों गृहस्थी चलाने में अपना योगदान देते हैं, तो जीवन आसान और सुखमय हो जाता है। घर पर रहने वाली महिलाओं का पूरा ध्यान परिवार पर ही लगा रहता है, तो एक समय बाद उनमें भी एक तरह की उकताहट सी आ जाती है। इसके विपरीत कामकाजी महिलाओं को अपने घर के अलावा अपने काम पर भी उतना ही ध्यान देना पड़ता है, जिससे जीवन में संतुलन बना रहता है।

स्वावलंबन की भावना
अपने पैरों पर खड़े होने से ज्यादा खुशी और आत्मविश्वास किसी अन्य चीज से नहीं मिल सकते। जब आप किसी और पर निर्भर नहीं रहतीं, तो आपको अपने महत्व के बारे में पता चलता है और आप खुद से प्यार करना सीखती हैं। अपनी छोटी-बड़ी जरूरतों के लिए पति या परिवार के किसी और सदस्य पर निर्भर नहीं रहतीं।

रिश्तों में आता है निखार
बाहर निकलकर काम करने का एक सबसे बड़ा फायदा यह है कि जब आप कुछ हासिल करती हैं या किसी कार्य पर दफ्तर में आपकी सराहना की जाती है, तो उससे आत्मविश्वास को बल मिलता है, जिसका सीधा-सीधा असर आपके निजी जीवन पर पड़ता है। विभिन्न शोध भी इस बात को प्रमाणित कर चुके हैं कि प्रोफेशनल लाइफ में सफल महिलाओं का निजी जीवन भी बहुत खुशनुमा होता है।

खुद की पहचान होती है मजबूत
जब दुनिया आपको किसी की बेटी, बहन या पत्नी होने की बजाय आपके खुद के नाम से जानती है, तो यह बहुत अलग किस्म का एहसास होता है। सभी रिश्तों में बंधे रहने के बावजूद हर महिला का अपना एक अलग अस्तित्व भी होता है, जिसे किसी भी सूरत में मिटने नहीं देना चाहिये। जब किसी महिला के लिए उसका काम ही आपकी पहचान बन जाता है, तो वह मानसिक रूप से भी मजबूत महसूस करने लगती है।

मजबूत मां की छवि
हर मां का सपना होता है कि उसका बच्चा बड़ा होकर एक सफल और बेहतर इंसान बने। इसके लिए हर मां अपने बच्चे के पालन-पोषण और पढ़ाई पर भी खूब ध्यान देती है। पर किसी भी बच्चे के व्यक्तित्व विकास में पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ उसके पारिवारिक माहौल का भी बहुत बड़ा योगदान होता है।  जब बच्चा अपनी मां को एक मजबूत कामकाजी महिला के रूप में देखता है, तो शुरू से ही उसे यह समझ आने लगता है कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना कितना ज्यादा जरूरी है। यही वजह है कि कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों के सामने अकसर एक आदर्श बन जाती हैं। इसके अलावा अगर कोई परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है या घर-परिवार में किसी प्रकार का कलह या तनाव आदि रहता है और ऐसे परिवार की महिला इन तमाम चुनौतियों के बीच नौकरी करती है, तो इसका प्रभाव भी बच्चों की मानसिक स्थिति पर पड़ता है। इससे उनके इरादों में मजबूती आती है।

आयेगी आर्थिक मजबूती भी
आर्थिक आत्मनिर्भरता एक ऐसा एहसास है, जो हर व्यक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। सिर्फ घर संभालने वाली महिलाओं को हर खर्चे के लिए पति की तरफ देखना पड़ता है, जबकि कामकाजी महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत होने के कारण न केवल घर के खर्चों में अपना योगदान देती हैं, बल्कि अपने निजी खर्चों का निपटारा भी अपने स्तर पर कर लेती हैं। यदि लड़की के माता-पिता बुजुर्ग हैं, जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है तो वह ससुराल वालों से आर्थिक सहायता लिये बिना भी अपने माता-पिता की देखभाल सम्मानजनक रूप से कर सकती है।
बुढ़ापा भी कटेगा सुकून से बुढ़ापा, उम्र का एक ऐसा दौर होता है जब ना चाहते हुए भी आप अपने बच्चों पर निर्भर हो जाते हैं। ऐसे में घरेलू महिलाएं जहां अकेलापन और अवसाद का शिकार होने लगती हैं, वहीं कामकाजी महिलाएं खुद को किसी न किसी रूप में व्यस्त रखने का साधन निकाल ही लेती हैं। अपने परिवार के अलावा इस उम्र तक आते-आते, कामकाज के स्तर पर भी उनका एक परिवार बन चुका होता है, जिसमें उनके कुछ बहुत अच्छे मित्र और सहकर्मी शामिल होते हैं, जो समय पड़ने पर हर संभव तरीके से साथ देते हैं।

बदलता है नजरिया
 घर से बाहर निकलकर काम करने वाली महिलाओं की सोच और नजरिया, दोनों कहीं ज्यादा विस्तृत होते हंै। वह घर से बाहर निकलकर पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलती हैं और इस वजह से किसी भी स्थिति को पुरुष और महिला के नजरिये से देखने में वह सक्षम हो जाती है।  सोचने-समझने के नजरिये में आए इस विस्तार का असर जीवन के हर पहलू पर नजर आता है। कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों और परिवार के हित के लिए सभी फैसले खुले दिल और दिमाग से लेने में सक्षम होती हैं।

आप भी सीखती हैं कुछ नया
कहते हैं कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। यह बात कामकाजी महिलाओं पर बिल्कुल सटीक बैठती है। नौकरी के लिए घर से बाहर निकलने पर अलग-अलग तरह के लोगों और माहौल में काम करने के दौरान कई तरह के अनुभव मिलते हैं। ये अनुभव पर्सनैलिटी में एक ऐसा आयाम लाते हैं, जो घर बैठे संभव नहीं है। नौकरी के दौरान हर परिस्थिति में  शांत और संयमित रहने का गुण विकसित होता है। इससे विपरीत परिस्थितियों में भी सही फैसला लेने की क्षमता विकसित होने लगती है।

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