नीतीश को मनाने का राग क्यों अलापने लगे हैं शिवानंद?

पटना
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM of Bihar, Nitish Kumar) को विपक्ष की राजनीति का नेतृत्व स्वीकार करने की बात कह शिवानंद तिवारी (Shivanand Tiwari) ने आरजेडी (RJD) और अन्य विपक्षी पार्टियों के असली दर्द को बयां कर दिया है. वैसे शिवानंद तिवारी कब क्या बोलेंगे, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है.

लेकिन राज्य के राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर डालें तो ये साफ ज़ाहिर होता है कि हताश विपक्ष अपने नेतृत्व से नाउम्मीद होकर एनडीए (NDA) के घटक दल के एक नेता को विपक्ष का नेतृत्व संभालने का आमंत्रण दे रहा है.

दरअसल शिवानंद आरजेडी (RJD) के पहले नेता नहीं, बल्कि इससे पहले रघुवंश प्रसाद सिंह भी नीतीश कुमार को बीजेपी विरोधी मंच पर आने का निमंत्रण दे चुके हैं. आरजेडी के कई सीनियर नेता मुख्य राजनीति प्लेटफॉर्म से तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के गायब होने की वजह नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं. हाल के दिनों में कई सीनियर नेता तेजस्वी को नेतृत्व प्रदान नहीं करने को लेकर मीडिया में खुल्लम खुल्ला बयान तक दे चुके हैं. शिवानंद तिवारी कह चुके हैं कि तेजस्वी अगर अपने को शेर का बेटा कहते हैं तो उन्हें मांद से बाहर निकलना चाहिए.

वहीं रघुवंश प्रसाद सिंह (Raghuvansh Prasad Singh) से जब पत्रकारों के समुह ने तेजस्वी के गायब होने की खबर पूछी तो उन्होंने चिढ़कर कह दिया कि तेजस्वी सीधा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने बिहार पहुंचेंगे. ज़ाहिर है, 16 अगस्त को राबड़ी के घर पर बुलाई गई मीटिंग में आधे से ज्यादा एमएलए, एमएलसी और राज्यसभा सदस्यों के गायब होने की खबर आरेजडी के अंदर की कहानी बखूबी बयां करती हैं. खासकर इस मीटिंग में तेजस्वी और मीसा दोनों के नहीं आने की खबर से पार्टी के वफादार नेताओं और कार्यकर्ताओं में बेचैनी बढ़ गई है.

सूत्रों की मानें तो आरजेडी के कई मुस्लिम नेता, जिनमें अब्दुल बारी सिद्दीकी (Abdul Bari Siddiqui), शाहीन जैसे नेताओं का नाम है जो जेडीयू के खेमे में जाने का इंतज़ार कर रहे हैं. दरअसल, इन नेताओं में आरजेडी नेतृत्व की उदासीनता को लेकर खासी नाराजगी है. विधानसभा कार्रवाई से लेकर एईएस जैसी बीमारी से हुई सैकड़ों बच्चों की मौत पर तेजस्वी की चुप्पी आरजेडी में कई नेताओं को साल रही है. ऐसे में दबी जुबान में ही सही, पार्टी के अंदर और बाहर इस तरह के आरोप लगते रहे हैं कि कहीं पिता लालू प्रसाद के जेल चले जाने के कारण तेजस्वी बीजेपी के सामने घुटने तो नहीं टेक चुके हैं.

आरजेडी नेता मानने लगे हैं कि बीजेपी ने आरजेडी के वोट बैंक में सेंधमारी करने में कामयाबी हासिल कर लिया है. लोकसभा चुनाव में यादव मतदाताओं के खिलाफ गोलबंदी और यादव के वोटबैंक में सेंधमारी की वजह से आरजेडी अपना खाता तक खोल पाने में नाकायाब रही थी.

बीजेपी (BJP) के अंदर और बाहर ये सुगबुगाहट तेज हो चुकी है कि अगर आनेवाले चुनाव में बीजेपी नित्यानंद राय को अपने नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करती है तो यादव मतदाता आरजेडी छोड़कर बीजेपी की तरफ अपना रुख कर सकते हैं. ऐसे में आरजेडी नेताओं में अपने कोर वोटर को लेकर इस बात की बेचैनी है कि नेतृत्व में शून्यता की वजह से राज्य में ही नहीं, बल्कि देश में भी नीतीश कुमार को नेतृत्व सौंपा जाए जो नरेंद्र मोदी को टक्कर देने की क्षमता बखूबी रखते हैं.

साल 2015 में नीतीश और लालू की जोड़ी ने कांग्रेस का साथ लेकर मोदी के विजय रथ को रोकने में कामयाबी हासिल की थी, लेकिन साल 2017 तक राजनीति ने ऐसी करवटें ली कि नीतीश वापस एनडीए के कुनबे में शामिल हो गए. लेकिन ट्रिपल तलाक, अनुच्छेद 370 जैसे संवेदनशील मुद्दे पर जेडीयू ने अलग स्टैंड लिया. इतना ही नहीं महागठबंधन को फिर से खड़े करने की बात कर जिनमें शिवानंद तिवारी, हम पार्टी के नेता जीतन राम मांझी शामिल हैं, ने इशारा कर दिया कि अगर नीतीश चाहें तो वो महागठबंधन के नेता हो सकते हैं.

महागठबंधन का नेतृत्व संभालने की बात शिवानंद इस आधार पर कर रहे हैं कि नीतीश के नाम पर अकेले चलने का फैसला कर चुकी कांग्रेस भी महागठबंधन में शामिल हो जाएगी और एक बार फिर विपक्ष बीजेपी के खिलाफ गोलबंद होकर उन्हें हार का स्वाद चखाने में कामयाब रहेगी.

अगर ऐसा नहीं हो सका और आरजेडी नेतृत्व विहीन रहा तो आरजेडी कई नेता पार्टी बदल नीतीश का दामन थाम सकते हैं. ज़ाहिर है, परिस्थितियों के खेल के चलते राजनीति में कौन किधर जाएगा, ये कहना आसान नहीं है. लेकिन आरजेडी उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी के बयान से साफ है कि आरजेडी लालू प्रसाद के अभाव में दिशाहीन हो चुका है और पार्टी के कई नेता अलग-अलग राग अलापना शुरू कर चुके हैं. पार्टी के अंदर वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा और पार्टी पर वर्चस्व को लेकर उत्पन्न हो रहा विवाद भी पार्टी के धुंधले भविष्य की कहानी गढ़ रहा है. ऐसे में आरजेडी के कई नेता आने वाले दिनों में पार्टी छोड़ नीतीश कुमार का दामन थाम लें तो इसमें हैरतअंगेज कुछ भी नहीं.

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