देशभक्ति की मिसाल: यहां देवता की तरह पूजा जाता है आजादी की खबर लाने वाला अखबार

धमतरी
भारत में देश को मां का दर्जा दिया गया है. पूजनीय माना गया है. जब भारत अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ तो देश भर में जश्न ही जश्न का माहौल था, लेकिन उस दौर में देश के एक कोने में आजादी की खबर के बाद जो घटा. वैसी मिसाल शायद दुनिया भर में शायद की कहीं मिले. वो कोना छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में है. सुदूर जंगल के बीच पानी से घिरे उस गांव में पहुंच कर लगता है कि देशभक्ति भारत के डीएनए में है.

धमतरी जिला मुख्यालय से लगभग 60-65 किलोमीटर दूर बसा ये गांव है सटियारा. यहां एक ऐसा मंदिर है, जहां अखबार की पूजा होती है. न्यूज पेपर यहां भगवान माना जाता है. आखिर क्यों ये जानना बेहद दिलचस्प है. इस गांव में केवल 19 परिवार है, जो सदियो से यहां बसे हुए हैं. पहले यहां के लोगों का जीवन खेती और जंगलो पर निर्भर था, लेकिन गंगरेल बांध बनने के बाद सिर्फ मछली मार कर ही ये अपना जीवन चलाते है.

गांव में आज की पीढ़ी थोड़ी पढ़ी लिखी है, लेकिन बात अगर 70-80 साल पहले की करें तो यहां शिक्षा नहीं के बराबर थी. टीवी, रेडियो तो दूर अखबार भी यहां कभी कभी आता था, लेकिन तब भी अंग्रेज यहां मौजूद थे. ग्रामीण व गांधी संस्था के सदस्य रमेश राम और तिजई बाई बताती हैं कि 15 अगस्त को जब देश आजाद हुआ तब उसकी खबर 16 अगस्त के अखबार में छपी और 16 अगस्त का वो अखबार इस इलाके में लगभग एक माह बाद पहुंचा. तब यहां के लोगों को पता चला कि भारत माता के पैरों सें गुलामी की जंजीरें काट दी गई हैं. पहले एक हजार साल तक मुगलो की. फिर 200 साल अंग्रेजो की गुलामी से मुक्ति की खबर लाने वाला वो नवभारत अखबार. उसी दिन से पूजनीय हो गया. बिल्कुल एक देवता की तरह.​

ग्रामीण दीपक व आरके ध्रुव कहते हैं कि आजादी के हीरो महात्मा गांधी थे. अखबार में उनकी तस्वीर भी छपी थी. इसलिये लोगों ने यहां एक मंदिर बनवाया. जहां हर 15 अगस्त और 26 जनवरी को मेला लगता है. गांव-गाव से लोग आते हैं. बांध बनने के कारण जो परिवार विस्थापित होकर दूसरे गांव में बस गए. उन्होंने एक गांधी संस्था बनाई और सभी अपने घरों में भगवान के साथ अखबार की पूजा करते हैं. सटियारा की नई पीढ़ी को उनके बुजुर्ग विरासत में ये देश भक्ति का पाठ जरूर पढ़ाते है.

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