दूरी इतनी कि पास न आ पाएं तो शादी खत्म: SC

नई दिल्ली
वैवाहिक संबंध अगर इतने खराब हो जाए कि उन्हें दोबारा ठीक न किया जा सके, तब भी यह हिंदू मैरिज ऐक्ट और स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत तलाक का आधार नहीं हो सकता। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी स्थिति में विवाह को खत्म करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि अगर विवाह पूरी तरह से असाध्य, भावनात्मक तौर पर मृत और बचाव से परे हो तो तलाक दिया जा सकता है।
22 साल तक कानूनी लड़ाई के बाद तलाक
पिछले 2 दशकों से तलाक के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे एक शख्स को 'संपूर्ण न्याय' देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 के तहत मिले विशेष अधिकारों को इस्तेमाल कर शादी को खत्म करने का आदेश दिया। शख्स की तलाक की अर्जी को निचली अदालत और आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था क्योंकि उसकी पत्नी ने अलग होने के लिए अपनी सहमति देने से इनकार कर दिया था। दंपती पिछले 22 सालों से अलग-अलग रह रहा था और 1993 में उनकी शादी के कुछ ही सालों बाद उनके रिश्तों में बहुत खटास आ चुकी थी।

केंद्र को कानून में बदलाव के लिए कई बार कह चुका है सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट कई फैसलों में केंद्र सरकार से कह चुका है कि वह तलाक के कानून में बदलाव करे ताकि अगर संबंधों में इस हद तक खटास हो कि दोबारा साथ रहने की कोई गुंजाइश न हो तो यह भी तलाक का आधार हो सके। हालांकि, कानून में अभी तक कोई बदलाव नहीं हुआ है यानी अगर कोई दंपती सालों से साथ नहीं रह रहा हो और रिश्तों के पटरी पर आने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं हो तब भी तलाक नहीं सकता। यहां तक कि विधि आयोग ने भी 1978 और 2009 में अपनी रिपोर्ट्स में केंद्र सरकार से कानून में बदलाव के लिए तुरंत कदम उठाने की सिफारिश की थी।

SC ने आर्टिकल 142 के तहत मिले विशेष अधिकार का किया इस्तेमाल
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एम. आर. शाह की बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को मिले विशेष अधिकार का इस्तेमाल करते हुए कहा कि यह ऐसा मामला है जिसमें वैवाहित रिश्ते जुड़ नहीं सकते हैं। बेंच ने कहा कि इस वैवाहिक रिश्ते को बनाए रखने और संबंधित पक्षों में फिर से मेल मिलाप की सारी कोशिशें नाकाम हो गई हैं। बेंच ने कहा कि ऐसा लगता है कि अब इस दंपती के बीच रिश्ते जुड़ने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि वे पिछले 22 साल से अलग-अलग रह रहे हैं और अब उनके लिए एक साथ रहना संभव नहीं होगा।

'भावनात्मक रिश्ते खत्म तो शादी का कोई मतलब नहीं'
बेंच ने अपने फैसले में कहा, 'इसलिए, हमारी राय है कि प्रतिवादी पत्नी को भरण पोषण के लिए एक मुश्त राशि के भुगतान के माध्यम से उसके हितों की रक्षा करते हुए इस विवाह को खत्म करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त अधिकार के इस्तेमाल का सर्वथा उचित मामला है।' सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कई मामलों में विवाह खत्म करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 में दिए गए अधिकारों का इस्तेमाल किया है जिनमें कोर्ट इस नतीजे पर पहुंचा कि उनमें वैवाहिक संबंधों को बचाकर रखने की कोई संभावना नहीं है और दोनों पक्षों के बीच भावनात्मक रिश्ते खत्म हो चुके हैं।

पत्नी की दलील खारिज कि दोनों पक्षों की सहमति के बिना नहीं खत्म हो सकता विवाह
कोर्ट ने अपने फैसले में पत्नी की इस दलील को खारिज कर दिया कि दोनों पक्षों की सहमति के बगैर संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल करके भी विवाह इस आधार पर खत्म नहीं किया जा सकता कि अब इसे बचाकर रखने की कोई गुंजाइश नहीं हैं। बेंच ने कहा कि यदि दोनों ही पक्ष स्थायी रूप से अलग-अलग रहने या तलाक के लिए सहमति देने पर राजी होते हैं तो ऐसे मामले में निश्चित ही दोनों पक्ष आपसी सहमति से विवाह खत्म करने के लिए सक्षम अदालत में याचिका दायर कर सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *