डिंपल यादव हारीं, बीजेपी के सुब्रत पाठक ने जीती कन्नौज सीट

 
नई दिल्ली   
 
17वीं लोकसभा चुनाव के तहत उत्तर प्रदेश की कन्नौज सीट पर बीजेपी के सुब्रत पाठक ने जीत दर्ज की. उन्होंने समाजवादी पार्टी उम्मीदवार डिंपल यादव को मात दी. सुब्रत को 5,61, 286 वोट मिले. जबकि डिंपल को 5,49,200 वोटों से संतोष करना पड़ा. इस हाई प्रोफाइल सीट पर सबकी निगाहें टिकी हुई थीं.

इस सीट पर सपा की डिंपल यादव और बीजेपी के सुब्रत पाठक के बीच शुरुआत से ही जोरदार टक्कर चल रही थी. कभी सुब्रत तो कभी डिंपल आगे हुईं. लेकिन आखिर में बाजी सुब्रत के हाथ में आई.
कब  और  कितनी  हुई  वोटिंग

कन्नौज  सीट  पर  वोटिंग चौथे चरण  में 29 अप्रैल  को  हुई  थी,  इस सीट पर 60.81 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार  का  इस्तेमाल  किया  था. इस सीट पर कुल  1870347 मतदाता हैं, जिसमें से 1137426 मतदाताओं ने अपने वोट डाले हैं.

कौन-कौन  हैं  प्रमुख  उम्मीदवार

सामान्य वर्ग वाली इस सीट पर  यूं  तो  सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी सुब्रत पाठक चुनाव लड़ रहे हैं, जिनका मुख्य मुकाबला सपा की डिंपल यादव से है.  इस सीट पर कुल 10 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. जबकि कांग्रेस ने इस सीट पर अपना प्रत्याशी नहीं उतरा है.

2014 का चुनाव

2014 के लोकसभा चुनाव में कन्नौज सीट पर 62.91 फीसदी वोटिंग हुई थी, जिसमें सपा की डिंपल यादव को  43.89 फीसदी (4,89,164) वोट मिले थे और और उनके निकटतम बीजेपी प्रत्याशी सुब्रत पाठक को 42.11 फीसदी (4,69,257) वोट  मिले थे. इसके अलावा बसपा के निर्मल तिवारी को 11.47 फीसदी (1,27,785) वोट मिले थे. इस सीट पर सपा की डिंपल यादव ने 19,907 मतों से जीत दर्ज की थी.

कन्नौज का सियासी इतिहास

आजादी के बाद 1952 में पहली बार हुए चुनाव में कन्नौज लोकसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार शंभूनाथ मिश्रा ने जीत दर्ज करके बाजी मारी. इसके बाद 1957 में वो दोबारा चुने गए और साल 1962 में मूलचंद्र दुबे जीते, लेकिन 1963 में शंभूनाथ मिश्रा एक बार फिर सांसद बने. 15 साल तक कांग्रेस की तूती बोलती रही, जिस पर समाजवादी विचारधारा के जनक डॉ. राम मनोहर लोहिया ने ब्रेक लगाया और 1967 के चुनाव में कांग्रेस के शंभूनाथ को करारी मात देकर वह संसद बनें.

हालांकि 1971 में कांग्रेस ने एक बार फिर से जीत हासिल की, लेकिन 1977 में जनता पार्टी के रामप्रकाश त्रिपाठी, 1980 में छोटे सिंह यादव जीते. 1984 में शीला दीक्षित ने कन्नौज से चुनावी मैदान में उतरकर कांग्रेस की इस सीट पर वापसी कराई. 1989 और 1991 में छोटे सिंह यादव ने लोकदल का झंडा बुलंद करते हुए जीत हासिल की.

बता दें कि कन्नौज सीट पर 1996 में बीजेपी चंद्रभूषण सिंह (मुन्नू बाबू) ने पहली बार कमल खिलाकर भगवा ध्वज फहराया, लेकिन दो साल बाद 1998 के चुनाव में प्रदीप यादव ने बीजेपी से यह सीट छीनी और उसके बाद से लगातार हुए 6 चुनाव से यह सीट सपा की झोली में है. 1999 में सपा के तत्कालीन मुखिया मुलायम सिंह यादव जीते, लेकिन उन्होंने बाद में इस्तीफा दे दिया. अखिलेश यादव ने अपनी सियासी पारी का आगाज कन्नौज संसदीय सीट पर 2000 में हुए उपचुनाव से किया. इसके बाद 2004, 2009 में लगातार जीत कर अखिलेश यादव ने हैट्रिक लगाकर इतिहास रचा, लेकिन 2012 में यूपी के सीएम बनने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. जिसके बाद उनकी पत्नी डिंपल यादव निर्विरोध चुनकर लोकसभा पहुंचीं.

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