जानें पूजा विधि, कथा और काल भैरव को प्रसन्न करने का सरल मार्ग

कालाष्टमी का दिन भगवान भैरव को समर्पित होता है। हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव की पूजा की जाती है। उनके लिए उपवास रखा जाता है। इस महीने (अप्रैल में) ये पूजा 26 तारीख को की जाएगी। काल भैरव शिव शंकर का ही रूप माने जाते हैं। इस दिन मां दुर्गा की भी पूजा अर्चना की जाती है। इस लेख के माध्यम से जानते हैं इस खास दिन की कथा, महत्व और काल भैरव को प्रसन्न करने के विशेष उपाय। ये उपाय व्यक्ति को अनगिनत लाभ पहुंचा सकते हैं।

कालाष्टमी की व्रत कथा
शिव पुराण में जिक्र है कि देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु जी से बारी बारी पूछा कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन है। इसके उत्तर में दोनों ने ही खुद को सर्व शक्तिमान और श्रेष्ठ बताया और इसके बाद दोनों में युद्ध होने लगा। इस स्थिति से घबराए देवताओं ने फिर वेदशास्त्रों से इसका जवाब मांगा। इसके जवाब में उन्हें बताया गया कि जिनके भीतर ही पूरी सृष्टि, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है वह कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव हैं।

ब्रह्मा जी इस जवाब से खुश नहीं हुए और उन्होंने भगवान शिव के बारे में बुरा भला कह दिया, ये सुनकर वेद दुखी हो गए। इस दौरान दिव्यज्योति के रूप में भगवान शिव प्रकट हो गए। ब्रह्मा स्वयं की प्रशंसा में लगे रहे और भोलेनाथ को कह दिया कि तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि ज्यादा रुदन करने की वजह से मैंने तुम्हारा नाम ‘रुद्र' रख दिया और तुमको तो मेरी सेवा करनी चाहिए।

इन सब बातों को सुकर भगवान शिव क्रोधित हुए और इससे उन्होंने भैरव को उत्पन्न किया। शिव ने भैरव को हुक्म दिया कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो। बस इतना सुनते ही भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा का 5वां सिर काट दिया, जो भगवान शिव को अपशब्ध कह रहा था।

इस घटना के बाद शिव जी ने भैरव को काशी जाने के लिए कहा और ब्रह्म हत्या से मुक्ति प्राप्त करने का मार्ग बताया। शंकर भगवान ने उन्हें काशी का कोतवाल बना दिया और आज भैरव काशी में कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। भोले बाबा के दर्शन से पहले भैरव के दर्शन किए जाते हैं वरना विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है।

जानें चमत्कारिक उपाय
कालाष्टमी की रात आप उड़द के आटे की मीठी रोटी बना लें। उस रोटी पर तेल लगाकर किसी कुत्ते को खिला दें। अगर कुत्ता काला है तो ज्यादा अच्छा है। माना जाता है इससे काल भैरव प्रसन्न हो जाते हैं।

कालाष्टमी की खास रात को आप काल भैरव को सवा सौ ग्राम साबुत काली उड़द चढ़ाएं। इसके पश्चात 11 दाने अलग रख लें और इन दानों को अपने दफ्तर या कार्यस्थल पर रख लें। इससे आपको अपने कामकाज में लाभ तथा उन्नति मिलेगी।

इस रात आप काल भैरव को साबुत उड़द दाल, लाल फूल, लाल मिठाई चढ़ाएं। इसके बाद इसे परिवार के सदस्यों के बीच बांट दें। इससे परिवार में कलह क्लेश नहीं होगा और घर में लक्ष्मी का वास होगा।

आप किसी ऐसे भैरव मंदिर में जाएं जिसमें कम ही लोग जाते हों। आप वहां रविवार की सुबह सिंदूर, तेल, नारियल, पुए और जलेबी ले जाएं। भैरव नाथ की पूजा करें। पूजा के बाद 5 से 7 साल तक के लड़कों को चने-चिरौंजी, तेल, नारियल, पुए और जलेबी प्रसाद के रूप में दें।

कालाष्टमी पूजन से मिलते हैं अनगिनत लाभ
माना जाता है कि काल भैरव की पूजा और भक्ति करने से भूत, पिशाच तथा काल भी दूर रहते हैं। सच्चे मन से भैरव जी की पूजा करने और शुद्ध मन से उपवास रखने से सभी तरह के कष्ट कट जाते हैं। रुके हुए कार्य पूरे होने लगते हैं। मगर प्रभु की कृपा पाने के लिए आपको उपवास अष्टमी में ही रखना है।

जानें पूजन विधि
कालाष्टमी की पूजा रात में करने से बहुत लाभ मिलता है। काल भैरव जी की पूजा करके उन्हें जल अर्पित करें। इस मौके पर भैरव कथा का पाठ करना चाहिए। इसके साथ ही भगवान शिव-पार्वती जी की पूजा भी अनिवार्य मानी जाती है।

 

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