घर से दूर रहने वाले युवा हो रहे हाइपरटेंशन के शिकार

 
लखनऊ 

घर से दूर रहकर पढ़ना या नौकरी करना युवाओं को भारी पड़ रहा है। ऐसे युवा अब हाइपरटेंशन का शिकार हो रहे हैं। पीजीआई की कार्डियॉलजी की ओपीडी पर हुई स्टडी में यह बात सामने आई है। इसका प्रमुख कारण है कि स्ट्रेस और अनियंत्रित खानपान, जिससे ब्लड प्रेशर का तालमेल बिगड़ जाता है और लोग हाइपरटेंशन इसकी चपेट में आ जाते हैं। अब तक सिर्फ 45 के पार वालों को ही यह बीमारी होती थी, लेकिन अब यह दायरा 30 साल तक पहुंच गया है। 
 

पीजीआई की कार्डियॉलजिस्ट डॉ पारुल खन्ना ने बताया कि ओपीडी में रोजाना आने वाले मरीजों में लगभग 30 प्रतिशत संख्या युवाओं की है। हाइपरटेंशन की बड़ी दिक्कत ये है कि इसके कोई लक्षण नहीं है। इसलिए जब वो क्लिनिक में आते हैं तब ही उन्हें भी पता चलता है कि वो हाइपरटेंशन की चपेट में आ गए हैं। 

बदले मानकों से बढ़ी मरीजों की संख्या 
डॉ पारुल के मुताबिक अमेरिकन कॉलेज ऑफ कॉर्डियॉलजी ने हाइपरटेंशन के मानक भी कम कर दिए हैं। इससे मरीजों की संख्या और बढ़ गई है। पहले ब्लड प्रेशर 140-90 एमएमएचजी होने पर ही हाइपरटेंशन का दायरा माना जाता था, लेकिन अब ये दायरा 130-80 एमएमएचजी हो गया है। इससे अधिक होने पर मरीज हाइपरटेंशन का शिकार माना जाएगा। 
 
बिना दवा के ठीक करना प्राथमिकता 
डॉ पारुल ने बताया कि हमारी पहली प्राथमिकता होती है कि मरीज को बिना दवा के ठीक किया जाए। ऐसे में पहल पहले मरीज के लाइफस्टाइल में परिवर्तन लाते हैं। युवाओं को जंक फूड और नमक कम करने और फलों के सेवन ज्यादा करने की सलाह दी जाती है। जब इससे कंट्रोल नहीं होता है तो पारिवारिक हिस्ट्री देखी जाती है, कोई रिस्क फैक्टर होता है तो उसके मुताबिक दवा शुरू की जाती है। 

रेग्युलर चेक करवाएं बीपी 
डॉ पारुल ने बताया कि दो तरह का हाइपरटेंशन होता है। एक इसेंशियल जो आयु के साथ होता है, दूसरा सेकंड्री जो बच्चों में कम आयु में या बुजुर्गों में होता है। ज्यादातर दूसरी कैटेगरी के मरीज आ रहे हैं। इसे कंट्रोल करने के लिए रेग्युलर बीपी चेक करवाएं। 30 साल से ज्यादा आयु है तो साल में एक बार बीपी चेक करवाएं। वहीं, गुर्दे की बीमारी है, सिर दर्द होता हो या मोटापा हो तो कुछ महीनों में बीपी चेक करवाते रहें। 

दिल के 60% मरीज हाइपरटेंशन के शिकार 
डॉ पारुल के मुताबिक दिल के जितने भी मरीज आते हैं उसमें 60% हाइपरटेंशन के शिकार होते हैं। उन्हें इसका पता नहीं चल पाता, जिस कारण वह दिल की बीमारी की चपेट में आ जाते हैं। 
 

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