गरीब बच्चों का मखौल उड़ा रहा राज्य शिक्षा केंद्र

 भोपाल
गरीब बच्चे भी बड़े स्कूलों में पढ़कर अपने सपनों को पूरा कर सकें। इसके लिए आरटीई एक्ट के तहत निजी स्कूलों में शुरुआती कक्षा की 25 फीसदी सीटें रिक्त रखी जाती हैं। इन सीटों पर गरीब बच्चों को  एडमिशन दिया जाता है साथ ही यह प्रावधान है कि इन बच्चों के साथ किसी तहत का भेदभाव न किया जाए। इन्हें भी स्कूल के अन्य बच्चों की तरह ही शिक्षा प्रदान की जाए। यहां तक कि पिछले 9 वर्षों में इन बच्चों के फोटो तक अखबारों या अन्य सोशल साइट पर वायरल नहीं किए गए। इसके लिए अधिकारियों का मत था कि पहचान सार्वजनिक होने से बच्चों में हीनभावना आ सकती है और अन्य बच्चे भी इनसे भेदभाव करेंगे। 

लेकिन अब शिक्षा विभाग खुद इन बच्चों के फोटो सार्वजनिक कर इनका मखौल उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। राज्य शिक्षा केंद्र (आरटीई) के निर्देश अनुसार इस साल विद्यालय में बैनर लगाकर एक-एक बच्चे को खड़ा कर शिक्षा मित्र पोर्टल पर फोटो खींचकर अपलोड करना है। आरएसके के इस कदम की पालक महासंघ और अशासकीय संघ ने निंदा की है।

स्कूल प्राचार्यों का कहना है कि गरीब बच्चों के अशासकीय स्कूलों में प्रवेश के समय निर्देश दिए जाते हैं कि इन बच्चों में एवं शुल्क जमा कर पढऩे वाले बच्चों में कोई भिन्नता नहीं होनी चाहिए, लेकिन आज इनको बाल अपराधी की तरह देखा जा रहा है।

इस साल निजी स्कूलों में खाली 3 लाख 58 हजार 887 सीटों के लिए 2 लाख 35 हजार अभिभावकों ने आवेदन किया था। दस्तावेजों के सत्यापन के बाद 2 लाख 3 हजार 447 बच्चे पात्र हुए। इन बच्चों को ऑनलाइन लॉटरी में शामिल किया गया। प्रदेश में एक साथ 1 लाख 77 हजार से अधिक बच्चों को स्कूलों का आवंटन किया गया। इसमें से 95,495 बालक तथा 82,340 बालिकाएं हैं।

नौ साल में 17 लाख से अधिक प्रवेश
ज्ञात हो कि नि:शुल्क प्रवेश की प्रक्रिया वर्ष 2011-12 में प्रारंभ की गयी। अब तक 17 लाख से अधिक विद्यार्थी को निजी स्कूलों में प्रवेश दिलाया जा चुका है। इस साल 1 लाख 77 हजार बच्चों का चयन किया गया है। 2010 से लागू हुए आरटीई के तहत निजी स्कूलों को शुरुआती कक्षा में 25 फीसदी बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाना है। इसके एवज में फीस सरकार को देना थी। इसके लिए 4 हजार 209 रुपए प्रति विद्यार्थी फीस देने का प्रावधान भी किया गया था।

 

स्कूल एसोसिएशन शिक्षा विभाग के इस कदम का विरोध करता है और मांग करता है कि यदि शिक्षा अधिकार अधिनियम में प्रवेशित इन बच्चों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है तो ऐसी शिक्षा में ऐसा भेदभाव करने से अच्छा है कि यह अधिनियम ही बंद कर दिया जाए , लेकिन बच्चों के अंदर ऐसी भावना न डाली जाए ।

अजीत सिंह, प्रदेश अध्यक्ष,  प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन

 

जब आधार कार्ड से बच्चे को वेरिफाई किया जा रहा है तो सार्वजनिक तौर पर फोटो डालकर दुनिया को तमाशा दिखाने की क्या जरूरत है। यह गरीबों का मजाक उड़ाना है। 

पालक महासंघ, महासचिव, प्रबोध पंड्या 

 

गरीबी-अमीरी का भेद मिटाने के लिए आरटीई के तहत निजी स्कूलों में गरीब बच्चों को एडमिशन दिलाने की व्यवस्था की गई थी, लेकिन यदि शिक्षा विभाग खुद इन बच्चों को अलग दिखाता है तो यह निदंनीय है। मैं इस संबंध में राज्य शिक्षा केंद्र को पत्र भेजकर जानकारी लेता हूं। 

ब्रजेश चौहान, सदस्य, मध्य प्रदेश बाल संरक्षण आयोग

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