गगनयान: मुश्किल मुकाम पाने के लिए इसरो इन मोर्चों पर करना होगा काम

 
बेंगलुरू 

अंतरिक्ष में मानवयान भेजने की भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की एक दशक पुरानी योजना को कैबिनेट ने शुक्रवार को मंजूरी दे दी। हालांकि अंतरिक्ष में इस मुश्किल मकाम को हासिल करने और सबसे सस्ता 'गगनयान' भेजने के दावे पर अमल करने के लिए इसरो को कुछ जरूरी कदम उठाने की दरकार है।  
 
लॉन्च वीकल : इसरो को सबसे पहले एक रॉकेट की दरकार है। GSLV मार्क 2, जो दो दफा अंतरिक्ष की उड़ान भर चुका है, उसे मानव लेने जाने लायक बनने के लिए कम-से-कम चार बार और कामयाबी से उड़ान भरना होगा। इसरो इसके लिए सुरक्षा उपायों को बढ़ाने की योजना बना रहा है। 

क्रू इस्केप सिस्टम : अंतरिक्ष में मानव ले जाने वाले यान को एक क्रू इस्केप सिस्टम विकसित करने की दरकार होती है। यह सिस्टम विपरीत परिस्थतियों में मिशन की नाकामी का अनुमान लगाने और यान में लगे क्रू मॉड्यूल को निकालने में मदद करता है। इस सिस्टम की बारंबार परख के लिए इसरो को एक नए स्पेस वीकल की दरकार होगी, जिसे वह विकसित कर रहा है। 

पर्यावरण नियंत्रण और लाइफ सपोर्ट सिस्टम : यह इसरो के लिए एक नई तकनीक है। इस तकनीक के जरिये यान में मौजूद लोगों को एक आरामदेह वातावरण मिलता है। इसरो इसे विकसित करने में रूस की मदद ले सकता है। 

2 साल की क्रू ट्रेनिंग : गगनयान में जानेवाले लोगों को चुनने, ट्रेनिंग देने के साथ-साथ मिशन पूरा होने के बाद उन्हें अलग रखने और उनकी काउंसलिंग करने की दरकार होगी। ऐसी ट्रेनिंग कम-से-कम दो बरस चलती है। ऐसा अनुमान है कि इसके लिए करीब 200 IAF पायलट का टेस्ट लिया जाएगा, जिनमें से कुछेक को अंतिम चयन के लिए रखा जाएगा। 

ग्राउंड स्टेशन : चूंकि मानव ले जानेवाले यान पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं, यह जरूरी है कि उन पर नजर रखी जाए। इसके लिए इसरो को भारत में कुछ ग्राउंड स्टेशन बनाने की दरकार होगी। इसके अलावा इसरो को मॉनिटरिंग सैटलाट्स छोड़ने की भी दरकार होगी। इंडियन डेटा रिले सैटलाइट सिस्टम (IDRSS) के तहत इसे विकसित करने की प्रक्रिया जारी है। 

इसरो की मानवयान में दिलचस्पी क्यों? 
तकनीक के विकास में मानवयान एक बड़ा किरदार अदा करते हैं। अगर इसरो मानवयान की योजना पर अमल नहीं करता, तो भारत स्पेस तकनीक के कुछ अहम मोर्चों पर पिछड़ जाएगा। आज की तारीख में मानवयान की कामयाबी एक मुल्क की प्रेरणा का बड़ा सबब है। इसरो ऐसे अभियान के जरिये युवाओं को प्रेरित कर सकता है। वे इसरो से जुड़ने के लिए आगे आएंगे। इसकी कामयाबी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसरो की प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी। 
 

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