खो दिया इकलौता बेटा, पिता को बेटे पर गर्व, ‘देश के लिए दिया सबसे बड़ा बलिदान’
हैदराबाद
लद्दाख में 15 जून की रात भारत और चीन की सेनाओं के बीच हुई हिंसा में भारत के 20 जवान शहीद होने की खबर सुनकर किसी की आंखों में आंसू हैं तो किसी के सीने में गुस्सा लेकिन एक शख्स ऐसा भी है जिसे सिर्फ गर्व है। सीमा पर देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए कर्नल संतोष बाबू के पिता बी उपेंदर बेटे के जाने से टूट जरूर गए हैं लेकिन हारे नहीं हैं। वह कहते हैं, 'देश के लिए मरना सम्मान की बात है और मुझे मेरे बेटे पर गर्व है।' कर्नल संतोष की पत्नी संतोषी को सबसे पहले उनके शहीद होने की सूचना दी गई। उनका पार्थिव शरीर आज शम्साबाद एयरपोर्ट से सूर्यपेट सड़क के रास्ते लाया जाएगा।
पता था ऐसा दिन आएगा…
बैंक से रिटायर हो चुके कर्नल संतोष के पिता बताते हैं कि कर्नल ने अपने 15 साल के सेना के करियर में कुपवाड़ा में आतंकियों का सामना किया है और आर्मी चीफ उनकी तारीफ कर चुके हैं। उपेंदर ने ही कर्नल को सेना जॉइन करने के लिए प्रेरित किया था और उन्हें पता था कि इसमें खतरे भी हैं। वह कहते हैं, 'मुझे पता था कि एक दिन आएगा जब मुझे यह सुनना पड़ सकता है जो मैं आज सुन रहा हैं और मैं इसके लिए मानसिक रूप से तैयार था। मरना हर किसी को है लेकिन देश के लिए मरना सम्मान की बात है और मुझे अपने बेटे पर गर्व है।'
'…वापस आकर बात करूंगा'
कर्नल संतोष ने आंध्र प्रदेश के कोरुकोंडा में सैनिक स्कूल जॉइन किया था और उसके बाद सेना के नाम अपना जीवन कर दिया था। उन्होंने 14 जून को अपने घर पर बात की थी और जब पिता ने उनसे सीमा पर तनाव के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, 'आपको मुझसे यह नहीं पूछना चाहिए। मैं आपको कुछ नहीं बता सकता हूं। हम तब बात करेंगे जब मैं वापस आ जाऊंगा।' यह उनकी अपने घरवालों से आखिरी बातचीत थी। अगली रात को ही कर्नल संतोष गलवान घाटी में शहीद हो गए। कर्नल ने अपने पैरंट्स को बताया था कि जो टीवी पर दिखाई दे रहा है, जमीन पर सच्चाई उससे अलग है।
'देश के लिए सबसे बड़ा बलिदान दिया'
कर्नल संतोष के पिता ने बताया, 'मैं सेना जॉइन करना चाहता था लेकिन कर नहीं सका। जब मेरा बेटा 10 साल का था तब मैंने उसमें यूनिफॉर्म पहनकर देश की सेवा करने का सपना जगाया।' सैनिक स्कूल में पढ़ने के बाद कर्नल संतोष NDA चले गए और फिर IMA। कर्नल के पिता और मां मंजुला तेलंगाना के सूर्यपेट में रहते हैं। उनकी पत्नी संतोषी 8 साल की बेटी और 3 साल के बेटे के साथ दिल्ली में रहती हैं। कर्नल के पिता कहते हैं, '15 साल में मेरे बेटे को चार प्रमोशन मिले। पिता के तौर पर मैं चाहता था कि वह खूब ऊंचाइयां चूमे। मैं जानता था कि सेना के जीवन में अनिश्चितता होती है, इसलिए हमें संतोष है कि उसने देश के लिए सबसे बड़ा बलिदान दे दिया।' चीन के संदर्भ में गलवान नदी के क्षेत्र का बेहद दर्दनाक इतिहास है। पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने जुलाई 1962 में भारतीय सेना के पोस्ट को घेर लिया था। यह उन घटनाओं में से एक थी जिनके बाद चीन और भारत के बीच हुए भयानक युद्ध की नींव रखी गई थी। 1962 में गलवान के आर्मी पोस्ट में 33 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और कई दर्जनों को बंदी बना लिया गया था।
पहले भी हो चुका है ऐसे हथियारों का इस्तेमाल
लद्दाख में हुई ताजा झड़पों में गोली नहीं चली लेकिन इतनी जानें चली गईं। दरअसल, चीन के सैनिकों ने कांटेदार डंडों से भारतीय सेना पर हमला किया। चीन ऐसा पहले भी कर चुका है। इससे पहले डोकलाम में 2017 में जब तनावपूर्ण स्थिति बनी थी तब भी पैन्गॉन्ग सो झील के पास डंडों और पत्थरों का ही सहारा लिया गया था।
पूर्वी लद्दाख में हालात हैं गंभीर
पूर्वी लद्दाख में बने हालात को ज्यादा गंभीर माना जा रहा है। करीब 6000 चीनी टुकड़ियां टैंक और हथियारों के साथ भारतीय सेना के सामने खड़ी हैं। सिर्फ लद्दाख ही नहीं हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्कम और अरुणाचल में भी सैन्य तैनाती की जा चुकी है। 5 मई से दोनों देशों के बीच लद्दाख में तनाव जारी है और दोनों देशों के अधिकारी शांति स्थापना की कोशिश में वार्ता कर चुके हैं। इसी दौरान इस बात पर सहमति जताई गई थी कि LAC पर सेनाएं पीछे हटेंगी। लद्दाख में बॉर्डर पर भारत और चीन के बीच कब, क्या हुआ
'खो दिया इकलौता बेटा'
कर्नल की मां अपने बेटे की राह देख रही थीं। वह उनसे हैदराबाद ट्रांसफर लेने के लिए कहती थीं ताकि वह परिवार के पास आ सकें। वह कहती हैं, 'मैं खुश हूं कि उसने देश के लिए अपना जीवन दे दिया लेकिन मां के तौर पर दुखी हूं। मैंने अपने इकलौता बेटा खो दिया।' वह याद करती हैं, 'उसकी पढ़ाई के लिए पिता ने कोरुकोंडा के पास ट्रांसफर ले लिया। लॉकडाउन से पहले वह दिल्ली में छुट्टी पर था। लॉकडाउन की वजह से छुट्टी एक्सटेंड हो गई और एक महीने पहले लेह के पास ड्यूटी पर चला गया।'