क्या नीतीश के कैबिनेट विस्तार की टाइमिंग है बीजेपी के लिए बड़ा संदेश

 
नई दिल्ली 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल विस्तार में सोशल इंजीनियरिंग का पूरा ध्यान रखा है. मंत्रिमंडल में शामिल किए 8 मंत्रियों में से 2 दलित समाज से 2-2 अतिपिछड़ी व पिछड़ी जातियों से और 2 मंत्री ऊंची जाति के कोटे से बनाए हैं. इस तरह जेडीयू के 21 मंत्रियों का कोटा अब पूरा हो गया हैं. जबकि भाजपा के कोटे के 2 मंत्रियों की जगह अभी खाली है.

बिहार में सीटों के अनुपात के हिसाब से 36 मंत्री बनाए जा सकते हैं. जुलाई 2017 में जब एनडीए की सरकार बनी थी, तब जेडीयू के कोटे से 15 बीजेपी के कोटे से 13 व एक मंत्री एलजेपी से बनाया गया था. लेकिन हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में बिहार सरकार के तीन कैबिनेट मंत्री सांसद बन गए, इसलिए यह विस्तार जरूरी माना जा रहा था.

हालांकि मंत्रिमंडल विस्तार के टाइमिंग को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के गठन के तीन दिन बाद ही विस्तार कर नीतीश कुमार बीजेपी को संदेश देना चाह रहे हैं. उसको हवा तब और मिली जब जेडीयू कोटे से 8 मंत्री बनाए गए. बीजेपी से इस विस्तार में कोई शामिल नहीं हुआ. हालांकि पटना राजभवन के दरबार हॉल में बीजेपी के सारे वरिष्ठ नेता मौजूद थे. इन सवालों का बिहार के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने भी जवाब दिया लेकिन बावजूद ये सवाल उठते रहे.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद कहा कि मंत्रिमंडल विस्तार का फैसला सहयोगी दलों के साथ मिल बैठकर किया गया है. चूंकि 26 से बिहार विधानसभा का सत्र शुरू होने वाला है इसलिए मंत्रियों का होना जरूरी हो गया था. तीन कैबिनेट मंत्री सांसद बनने की वजह से इस्तीफा दे चुके थे. दूसरी तरफ जो मंत्री सांसद बने उसमें ललन सिंह जल संसाधन मंत्री और दिनेश चंद्र यादव आपदा प्रबंधन मंत्री थे. ये दोनों आने वाले समय के महत्वपूर्ण विभाग हैं क्योंकि बिहार में बाढ़ की समस्या हो या फिर सूखे की, दोनों सूरत में इन दो मंत्रालयों में मंत्रियों का होना बहुत जरूरी है.

दूसरी तरफ मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा काफी पहले से हो रही थी. पिछले साल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आश्वासन दिया था कि दशहरा के बाद मंत्रिमंडल का विस्तार होगा. लेकिन बाद में कहा कि इस साल दशहरा से पहले विस्तार कर देंगे और उन्होंने लोकसभा चुनाव के ठीक बाद अपना वादा निभाया. कई पूर्व मंत्री पिछले दो वर्षों से मंत्री पद की आस में थे. जिसमें कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी जो महागठबंधन की सरकार में शिक्षा मंत्री थे, बाद में वो जेडीयू में शामिल हो गए.

दूसरे श्याम रजक जो कई बार मंत्री रह चुके हैं लेकिन महागठबंधन सरकार में उन्हें मंत्री पद नहीं मिला. कहा जाता है कि उस समय लालू प्रसाद यादव ने इनके मंत्रिमंडल में शामिल होने का विरोध किया था. इस बीच श्याम रजक जेडीयू में संगठन का काम देख रहे थे. संजय कुमार झा दरभंगा के लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन टिकट बीजेपी के खाते में गए, इसलिए वह बेहद आहत थे, उन्हें भी मंत्री पद मिला.

जेडीयू में प्रखर प्रवक्ता रहे नीरज कुमार को उनके लोकसभा क्षेत्र मुंगेर में की गई मेहनत की वजह से मंत्री पद मिला. अति पिछड़ी जाति से आने वाली वीमा भारती जीतनराम मांझी के मंत्रिमंडल में कुछ समय के लिए मंत्री बनी थीं. तब से लगातार सोशल मीडिया पर अपने मंत्रीपद के लेकर सक्रिय दिख रही थीं. उन्हें भी मंत्री पद से नवाजा गया. दूसरी तरफ मंजू वर्मा के इस्तीफे के बाद नीतीश कुमार की कैबिनेट में कोई महिला मंत्री भी नहीं थी.

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