केवल व्याख्यान देने या बातें करने से नहीं बचेगी पृथ्वी

भोपाल।
विश्व पृथ्वी दिवस पर केवल व्याख्यान देने अथवा बातें करने से कुछ नहींहोगा। इसके लिए त्याग और संयम की आवष्यकता है। अपनी जीवन शैली को बदलने की आवश्यकता है। ये विचार इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ फारेस्ट मैनेजमेंटभोपाल के डॉ.योगेश दुबे ने मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् (मैपकास्ट) द्वारा विश्व पृथ्वी दिवस पर आयोजित विशेष व्याख्यान के दौरान व्यक्तकिये।

उन्होंने कहाकि जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए गंभीर और उचित कदम नहीं उठाये, तो सन 2050 तक पृथ्वी के तापमान में डेढ़ सेतीन डिग्री तक बढ़ जाएगा। जलवायु परिवर्तन से सन 2050 में मप्र और छत्तीसगढ़ के सकल घरेलू सूचकांक मेंभारी गिरावट होगी। उन्होंने कहाकि हथियारों के निर्माण से भी जलवायु परिवर्तन हो रहा है। डॉ. दुबे ने कहाकि विज्ञान की सीमायें हैं। विज्ञान चमत्कार नहीं है। परिषद् के महानिदेषक डॉ. राजेश शर्मा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए  कहाकि पृथ्वी के सभी घटकों का किसी-न-किसी रूप में उपयोग कर हमलोग हर रोज पृथ्वी दिवस मनाते हैं। वर्षमें एक बार पृथ्वी दिवस मनाने का मुख्य कारण इसके संसाधनों की रक्षा पर ध्यान केंद्रित करना है।

उन्होंने कहा कि दुनिया के कुछ देशों में पूरे साल इस संदर्भ में कोई-न-कोई कार्यक्रम आयोजित किया जाताहै। सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड केडॉ. एसपी परांजपे ने मप्र में भूमिगत जल का परिदृष्य और चुनौतियों पर व्याख्यान देते हुए कहाकि वर्तमान में भूमिगत जल पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। खेती के लिए 85 प्रतिशत से अधिक भूमिगत जल का उपयोग हो रहा है। उन्होंने बतायाकि मप्र में मार्च 2013 में ग्रांउड वॉटर डेवलपमेंट 56.7 प्रतिशत था, जो मार्च 2017 में घटकर 54.82 प्रतिशत रह गया है। कार्यक्रम का संचालन प्रधान वैज्ञानिक विकास शेंडे ने किया।

 

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