किसके सिर सजेगा मध्य प्रदेश का ताज, नरेंद्र तोमर या शिवराज!

भोपाल
मध्य प्रदेश में कमलनाथ (Kamalnath) की सरकार गिराने के बाद अब मुख्यमंत्री को लेकर बीजेपी के अंदर गतिविधियां तेज हो गई हैं. माना जा रहा है कि सोमवार को अपना नेता चुनने के बाद नवरात्र के पहले दिन मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी जाएगी. चूंकि इस बार सामान्य विधानसभा चुनाव के बाद के हालात नहीं है, बल्कि पूरा ऑपरेशन दिल्ली से ही हुआ था, लिहाज़ा नाम भी दिल्ली ही तय करेगा.

हालांकि, अभी तक दिल्ली में इसके लिए संसदीय बोर्ड की बैठक नहीं हुई है. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा (J P Nadda), प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और गृह मंत्री अमित शाह की हरी झंडी वैसे तो अभी किसी एक नाम पर एक राय होकर नहीं लगी है. लेकिन, विचार जिन तीन नामों पर प्रमुखता से हुआ, उनमें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और इस पूरे ऑपरेशन के सूत्रधार रहे नरोत्तम मिश्रा का नाम सबसे आगे चल रहा है.

मध्य प्रदेश में अभी भी शिवराज के समर्थक पीछे हटते नहीं दिख रहे हैं. मामा जी के रूप में मशहूर शिवराज के विरोधी भी बीजेपी में कम नहीं हैं और वे लोग उनकी जगह प्रदेश की कमान दूसरे हाथों में सौंपने की मुहिम में लगे हुए हैं.

जानकारों का ये भी दावा है कि विधानसभा के नतीजे आने के बाद से ही शिवराज को मध्य प्रदेश की राजनीति से अलग करने के लिए ही उन्हें केंद्र की राजनीति में लाया गया. शिवराज के पक्ष में जाने वाली जो बातें हैं, वो ये कि वे पार्टी के जनाधार वाले नेता हैं और पूरे प्रसाशनिक सिस्टम से बखूबी वाकिफ़ हैं. हर अधिकारी की खूबी और कमज़ोरी से वे बख़ूबी परिचित हैं. ऐसे में पहले दिन से सरकार की रफ्तार बढ़िया होगी. दूसरा, जो पहली बार प्रदेश की 24 और यदि शरद कोल का इस्तीफ़ा वापस नहीं हुआ तो 25 सीटों के चुनाव में, वे बेहतर नतीज़े दिला सकते हैं. दूसरे धड़े की तरफ़ से नरोत्तम मिश्रा और नरेंद्र सिंह तोमर का नाम भी बहुत मजबूती से लिया जा रहा है. बीजेपी नेताओं का एक बड़ा वर्ग नरेंद्र सिंह को कमान सौंपने की वकालत कर रहा है.

नरेंद्र सिंह के हक में ये भी है कि वे उसी ग्वालियर इंदौर क्षेत्र से हैं जहां सिंधिया का असर है. सत्ता के गलियारों में ये भी फुसफुसाहट है कि सिंधिया भी तोमर के ही हक में है. वैसे बीजेपी संगठन के नेताओं की सोच है कि इस संभाग के नेता को कमान देने से राज्य में अच्छा संदेश जाएगा. इसके पीछे बहुत तर्क मजबूत यह है कि ग्वालियर—चंबल में एक म्यान में दो तलवार नहीं रखा जाना. सिंधिया राज्यसभा के ज़रिए केंद्रीय मंत्रिमंडल में आएंगे तो उनका मंत्री बनना लगभग तय है. ऐसे में वहां केंद्रीय सत्ता के दो केंद्र बनाए जाएं, इसको लेकर सहमति नहीं है. एक और फ़ायदा इस संभाग को कमान देने के पीछे ये होगा कि उपचुनाव की अधिकतर सीटें इसी संभाग में होगी. ऐसी हालत में यहां के नेता का उपचुनाव में कांग्रेस की तुलना में "अपर हैंड" होगा.

सत्ता से नजदीकी रखने वालों का दावा है कि केंद्रीय नेतृत्व ने अपना मन बना लिया है और इन तीन नामों में से किसी एक लिए फैसला भी कर सकता है।बस औपचारिक घोषणा की जानी है. सूत्रों की माने तो लंबे समय तक शिवराज के राज के बाद बीजेपी के बड़े नेता भी बदलाव की दलील को पूरी तरह नकार नहीं पा रहे हैं. यही दलील नरेंद्र सिंह तोमर के हक में भी जा रही है. हालांकि पार्टी के  एक वर्ग मानना ये है कि राज्यसभा चुनाव यानी 26 मार्च से पहले कोई एक नाम  घोषित न किया जाए, ताकि  इससे राज्यसभा चुनाव के दौरान कोई गतिरोध न पैदा हो पाए.

नरोत्तम मिश्रा भी ग्वालियर-चंबल से ही आते हैं और कांग्रेस की सरकार के सबसे ज़्यादा निशाने पर रहे हैं. उनके ख़िलाफ़ कमलनाथ सरकार ने कुछ मुकदमे भी दर्ज़ कराए लेकिन वे मज़बूती से खड़े रहे. सदन में नेता विपक्ष से लेकर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष तक के पद उनके हाथ उनके हाथ से आते आते फिसले लेकिन उन्होंने अपने प्रयासों में और कांग्रेस सरकार के ख़िलाफ़ मुहिम के उत्साह में कोई कमी नहीं आने दी. ऐसा करके उन्होंने केंद्रीय नेताओं के सामने अपनी दावेदारी को बखूबी "रजिस्टर" भी कराया है. ऐसी सूरत में उनके नाम पर भी विचार चल रहा है.

तोमर की हिमायत करने वाले नेताओं का कहना है कि अगर शिवराज को फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी दी जाती है तो हालात विधान सभा चुनाव के पहले जैसे ही हो सकते हैं. इस लिहाज से किसी तरह के विवाद से बचने के लिए एक अलग चेहरे को अगुवाई सौंपी जानी चाहिए और नरेंद्र सिंह तोमर इसके लिए बहुत उपयुक्त हो सकते हैं. संसदीय बोर्ड कल तक किसी एक नाम पर अंतिम मोहर लगाकर आगे की औपचारिकता के लिए पर्यवेक्षक भोपाल भेज सकते हैं. हालांकि बीजेपी नेता साफ तौर पर अभी कुछ कहने से

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