कारणवश श्राद्ध करना संभव न हो तो … ?
कारणवश श्राद्ध करना संभव न हो तो … ?
श्राद्ध के विषय में शास्त्रों में अनेक विकल्प उपलब्ध हैं। सर्वप्रथम हमारे मन में पितरों के प्रति श्रद्धा होनी चाहिए, यह मूलभूत आवश्यक बात है। यदि श्रद्धा- मान न हो तो प्राप्त परिस्थितियों के अनुसार शास्त्र में बताए गए विकल्पों का अवलंबन अवश्य करना चाहिए। यदि सपिंड श्राद्ध (ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद पिंड पूजा करके किया गया श्राद्ध) करना असंभव हो तो ब्रह्मार्पण श्राद्ध (ब्रह्मा को अर्पण करने के उद्देश्य से किया गया पिंड रहित श्राद्ध) करना चाहिए। अगर पके अन्न से किया जाने वाला श्राद्ध करना भी संभव न हो तो आमान्न श्राद्ध करें। यदि श्राद्ध में अनेक ब्राह्मण हों तो हिरण्य श्राद्ध (केवल दक्षिणा देकर किया गया श्राद्ध) करें। श्राद्ध में अनेक ब्राह्मणों की उपस्थिति न होने पर एक ब्राह्मण को पितृ स्थान पर बैठाकर देवस्थान पर गोपालकृष्ण की मूर्ति रखें। अगर एक भी ब्राह्मण उपलब्ध न हो तो देवस्थान पर गोपालकृष्ण की मूर्ति रखकर ऐसे समय जो भी ब्राह्मण मिले; उसे दूध, केले एवं दक्षिणा दें या मंदिर में जाकर अपने पितरों का स्मरण करके दक्षिणा अर्पण करें। यदि यह भी संभव न हो तो गाय को घास खिलाएं एवं पितरों के नाम से तिल तर्पण करें। अगर आप स्वयं श्राद्ध प्रयोग बोल सकते हों तो बोलें। यदि कुछ भी संभव न हो तो घर के बाहर जाकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके यह प्रार्थना करें- मेरे पास धन नहीं है। श्राद्ध के लिए उपयुक्त चीजें भी नहीं हैं। परंतु मैं पूर्ण मनोभाव के साथ अपने पितरों को नमस्कार करता हूं। मेरी इस भक्ति से मेरे सभी पितृ संतुष्ट हों। इसलिए मैंने अपने दोनों हाथ हवा की दिशा में ऊपर फैला दिए हैं।इसके बाद दोनों हाथ हवा की दिशा में ऊपर की ओर करके बगलें झांककर अपनी विवशता बताएं। ऐसे वक्त कुछ लोग शंखनाद भी करते हैं। संक्षेप में, अपनी पूर्वापर परंपरा को अविच्छिन्न रखें। अपने पूर्वजों का ऋण व्यक्त करने हेतु उनका स्मरण उनकी निधन तिथि को अवश्य करें।