एनसीपी के साथ मुख्यमंत्री पद साझा करेगी शिवसेना?, बड़ा सवाल
मुंबई
महाराष्ट्र में 24 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से जारी राजनीतिक गतिरोध अब खत्म होता नजर आ रहा है। बुधवार को एनसीपी और कांग्रेस के नेताओं के बीच काफी देर तक चली बैठक के बाद जल्द ही राज्य में सरकार बनाने का ऐलान किया गया। माना जा रहा है कि अब एनसीपी अगले दो दिनों तक शिवसेना के साथ बातचीत करेगी। इस दौरान एनसीपी मुख्यमंत्री पद 2.5-2.5 साल के बीच बांटने पर जोर दे सकती है। उधर, सूत्रों के मुताबिक एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना के बीच गठबंधन में एक बड़ा पेच 'हिंदुत्व' बनाम 'सेकुलर' को लेकर भी फंसा हुआ था जिसे अब सुलझा लिया गया है।
सूत्रों के मुताबिक सरकार बनाने को लेकर अगले दो दिनों तक चलने वाली बातचीत में एनसीपी अब शिवसेना के साथ मुख्यमंत्री पद बांटने के लिए मोलभाव पर ज्यादा जोर देगी। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि शिवसेना मोलभाव की एनसीपी की ताजा कोशिशों पर किस हद तक सहमत होती है। बता दें कि एनसीपी ने विधानसभा चुनाव में शिवसेना से मात्र दो सीटें कम जीती हैं। एनसीपी के 54 और शिवसेना के 56 विधायक हैं।
अब मंत्रालयों के बंटवारे पर होगी चर्चा
एनसीपी-कांग्रेस और शिवसेना की एक 'समन्वय समिति' भी काम कर रही है जो गठबंधन को अंतिम रूप दे सकती है। यही समिति हिंदुत्व जैसे कठिन मुद्दों का भी हल निकाल सकती है। अगले दो दिनों तक चलने वाली इस बातचीत में ही एनसीपी-कांग्रेस और शिवसेना के बीच मंत्रालयों के बंटवारे पर भी चर्चा की जाएगी। बता दें कि एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के घर पर दो दौर की बातचीत के बाद सरकार बनाने का ऐलान किया गया।
दिल्ली में मीटिंग के बाद कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि राज्य में एक स्थिर सरकार की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमारे बीच सकारात्मक बात हुई है। राज्य में राष्ट्रपति शासन हटाने की जरूरत है। इसके अलावा एनसीपी लीडर नवाब मलिक ने कहा कि राज्य में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के बिना स्थिर सरकार नहीं बन सकती है। दोनों नेताओं के बयानों से माना जा रहा है कि कांग्रेस ने शिवसेना के साथ गठबंधन को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है।
'सेकुलर' बनाम 'हिंदुत्व' पर फंसा था पेच
बताया जा रहा है कि कॉमन मिनिमम प्रोग्राम को लेकर शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस के बीच पेच फंसा हुआ था। तीनों के गठबंधन के लिए बातचीत करने वाले नेताओं के बीच 'सेकुलर' और 'हिंदुत्व' ताकतों को एक मंच पर लाना बड़ी चुनौती था। कांग्रेस-एनसीपी चाहती थीं कि 'सेकुलरिज्म' को गठबंधन का आधार बनाया जाय वहीं शिवसेना हिंदुत्व को छोड़ने को तैयार नहीं थी। सूत्रों के मुताबिक इस गतिरोध का समाधान करते हुए इस बात पर जोर दिया गया कि सरकार 'संविधान की आत्मा' के मुताबिक काम करेगी।