आसान शब्दों में समझें कॉरपोरेट को सरकार की सौगातें और उनका इकोनॉमी पर असर

 
नई दिल्‍ली 

दिवाली से पहले मोदी सरकार ने कारोबार जगत को बड़ा गिफ्ट दिया है. सरकार की ओर से कॉरपोरेट इनकम टैक्स में कटौती कर दी गई है तो वहीं मिनिमम अल्टरनेट टैक्स से राहत दी गई है. इसके अलावा निवेशकों को भी बड़ा तोहफा दिया गया है. लेकिन सवाल है कि सरकार के इन फैसलों का क्‍या असर होगा. आइए समझते हैं….

1.कॉरपोरेट टैक्‍स पर राहत

सरकार का सबसे बड़ा ऐलान कॉरपोरेट टैक्‍स को लेकर है. शुक्रवार को प्रेस कॉन्‍फ्रेंस करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि अब घरेलू कंपनियों पर बिना किसी छूट के इनकम टैक्स 22 फीसदी लगेगा. वहीं इसमें सरचार्ज और सेस जोड़ने के बाद कंपनी को 25.17 फीसदी टैक्‍स देना होगा.

इसका फायदा देश की उन बड़ी कंपनियों को मिलेगा जो 30 फीसदी के कॉरपोरेट टैक्‍स स्‍लैब में आती हैं. यहां बता दें कि कंपनियों की जो भी कमाई होती है, कॉरपोरेट टैक्स उस पर ही लगता है. इसके दायरे में प्राइवेट, लिमिटेड या लिस्टेड और बिना लिस्‍ट वाली सभी तरह की कंपनियों आती हैं. कॉरपोरेट टैक्स को सरकार के रेवेन्यू का अहम हिस्सा माना जाता है. बहरहाल, सरकार के नए फैसले के बाद राजस्‍व पर 1.45 लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ने की आशंका है.

2. नए निवेश पर राहत

सरकार ने नए निवेश करने वाली घरेलू कंपनियों को भी राहत दी है. दरअसल, अब 1 अक्टूबर 2019 के बाद मैन्युफैक्चरिंग कंपनी स्थापित करने वाले कारोबारियों को 15 फीसदी की दर से इनकम टैक्स देना होगा. वहीं सभी तरह के सरचार्ज और सेस लगने के बाद टैक्‍स की दर 17.10  फीसदी हो जाएगी. वर्तमान में नए निवेशकों को 25 फीसदी की दर से टैक्‍स देना होता है.

इस फैसले से मोदी सरकार के मेक इन इंडिया प्रोजेक्‍ट को बूस्ट मिलने की उम्‍मीद है. ऐसा माना जा रहा है कि अब कारोबारी नई कंपनियों पर जोर देंगे. वहीं सुस्‍त पड़ चुकी स्‍टार्टअप योजना को भी बढ़ावा मिल सकता है. ऐसी स्थिति में नए रोजगार का सृजन होगा. हालांकि जो घरेलू कंपनी अपना प्रोडक्शन 31 मार्च 2023 के बाद करेगी, उसे सरकार की राहत का फायदा नहीं मिलेगा.    

3.MAT पर राहत

​सरकार ने मिनिमम अल्टरनेट टैक्स (MAT) में राहत दी है. कंपनियों को अब मौजूदा 18.5 फीसदी की बजाय 15 फीसदी की दर से मैट देना होगा. दरअसल, MAT उन कंपनियों पर लगाया जाता है जो मुनाफा तो कमाती हैं लेकिन रियायतों की वजह से इन पर टैक्‍स की देनदारी कम होती है. वर्तमान में मुनाफे पर कंपनियों को 18.5 फीसदी तक मैट देना होता है.

सरकार के इस फैसले से विदेशी कंपनियों में ज्‍यादा उत्‍साह देखने को मिल सकता है. दरअसल, विदेशी कंपनियां इस टैक्‍स की वजह से भारत में ज्‍यादा निवेश करने से कतराती हैं. अगर विदेशी निवेशकों का भारतीय बाजार की ओर रुझान बढ़ता है तो मोदी सरकार का 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी का टारगेट आसानी से हासिल हो सकेगा. 

4.कैपिटल गेंस पर राहत

सरकार ने शेयर बाजार में निवेश करने वाले निवेशकों को राहत देते हुए कैपिटल गेंस पर से सरचार्ज हटाने का ऐलान किया है. बीते 5 जुलाई को आम बजट में विदेशी और घरेलू निवेशकों को झटका दिया गया था. इनके शेयर बाजार में निवेश पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस सरचार्ज बढ़ा दिया गया था.

सरकार के इस फैसले का मतलब है कि जो लोग शेयर बेचने या इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं उन्‍हें राहत मिलेगी. दरअसल, कोई निवेशक जब शेयर या म्‍यूचुअल फंड बेचता है तो उसे यूनिट में मुनाफा होता है. इस मुनाफे को कैपिटल गेंस कहते हैं और इसी पर सरकार सरचार्ज वसूलती है.

कैपिटल गेंस टैक्स क्‍या होता है?

यहां बता दें कि कैपिटल गेन 2 तरह के होते हैं- पहला लॉन्ग टर्म और दूसरा शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन. वर्तमान में 3 साल से कम समय में बेचे जाने वाली रकम पर मुनाफे को शॉर्ट टर्म जबकि 3 साल से ज्यादा समय के बाद बेचे जाने वाली संपत्‍त‍ि पर के मुनाफे को लॉन्ग टर्म कैपिटल कहा जाता है. वहीं शेयर के मामले में लॉन्‍ग टर्म कैपिटल 1 साल से अधिक को माना जाता है. आम बजट में लॉन्‍ग टर्म के कैपिटल गेन पर सरचार्ज को बढ़ा दिया गया था. असर ये हुआ कि कम फायदे की वजह से नए निवेशक शेयर खरीदने से बच रहे थे. इस वजह से जुलाई में शेयर बाजार अपने 17 साल के बुरे दौर में पहुंच गया था.

5. बायबैक पर राहत

सरकार ने 5 जुलाई 2019 से पहले शेयर बायबैक का ऐलान करने वाली लिस्टेड कंपनियों पर बायबैक टैक्स से छूट देने का भी ऐलान किया है. इसका सबसे अधिक फायदा उन कंपनियों को होगा जो शेयर बायबैक करती हैं.

क्‍या होता है शेयर बायबैक
कंपनी जब अपने ही शेयर निवेशकों से खरीदती है तो इसे बायबैक कहते हैं. यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद इन शेयरों का वजूद खत्म हो जाता है. आमतौर पर कंपनियों की बैलेंसशीट में अतिरिक्त नकदी होता है तभी बायबैक पर जोर देती हैं. कंपनी के पास बहुत ज्यादा नकदी का होना अच्छा नहीं माना जाता है. इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि कंपनी अपने नकदी का इस्तेमाल नहीं कर पा रही है. यही वजह है कि बायबैक के जरिए कंपनी अपने अतिरिक्त नकदी का इस्तेमाल करती है.

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