आपके इक्विटी फंड से आपका रिटर्न कम है? ऐसे घटाएं अंतर

 मुंबई 
क्या आपके म्यूचुअल फंड अकाउंट स्टेटमेंट में जो रिटर्न दिखाया गया है, वह आपके फंड के दिखाए गए रिटर्न से काफी कम है? अगर ऐसा है तो सिर्फ आप इससे पीड़ित नहीं हैं। ईटी वेल्थ के विश्लेषण से पता चलता है कि इन्वेस्टर रिटर्न गैप की समस्या सभी इक्विटी फंड और अलग-अलग टाइम पीरियड के साथ जुड़ी हुई है। मिसाल के लिए, ICICI प्रूडेंशियल वैल्यू डिस्कवरी ने पिछले पांच साल में 24.3 पर्सेंट का सालाना रिटर्न दिया है, इसके बावजूद इसके निवेशकों को बहुत फायदा नहीं हुआ है। फंड की नेट ऐसेट वैल्यू (एनएवी) को अगर रेग्युलर इनफ्लो और आउटफ्लो से अजस्ट किया जाए तो इस दौरान निवेशकों को सिर्फ 13 पर्सेंट का रिटर्न मिला है। 

ऐक्सिस म्यूचुअल फंड की एक हालिया स्टडी में भी फंड और इन्वेस्टर रिटर्न में इसी तरह का अंतर पाया गया। इक्विटी फंड ने जहां 2003 से 2018 के बीच सालाना 20.7 पर्सेंट का रिटर्न दिखाया था, वहीं फंड के निवेशकों को इस बीच 14.9 पर्सेंट का सालाना रिटर्न ही मिला था। तय अवधि में कुछ निवेशकों को अपने फंड पर कम रिटर्न क्यों मिला? कुछ निवेशकों को उसी फंड के दूसरे निवेशकों से एक बराबर अवधि में कम रिटर्न क्यों मिला? 

एकमुश्त निवेश पर इन्वेस्टर रिटर्न्स के मुकाबले फंड रिटर्न्स बेहतर
अगर फंड अच्छा रिटर्न देने में संघर्ष कर रहा होता तो और बात होती। हालांकि, जब फंड अच्छा परफॉर्म कर रहा हो तो कम रिटर्न के लिए आपकी आदत कसूरवार है। कोटक महिंद्रा म्यूचुअल फंड में इक्विटी के चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर हर्ष उपाध्याय ने बताया, 'निवेशकों के लिए मार्केट के अलग-अलग चक्र में लालच और भय से बचना जरूरी है। अक्सर वे गलत समय पर बाजार से निकलते हैं और गलत समय पर निवेश करते हैं।' 
मार्केट में निवेशक का तजुर्बा कैसा रहता है, यह टाइमिंग और होल्डिंग पीरियड पर निर्भर करता है। इसी वजह से एक ही स्कीम के अलग-अलग निवेशकों का तजुर्बा अलग-अलग है। निवेशकों को अक्सर फंड की नियमित ग्रोथ का फायदा नहीं मिलता क्योंकि वे गलती करते हैं। वे एसआईपी शुरू करते हैं, उसे एक या दो साल तक जारी रखते हैं और उसके बाद एसआईपी को भुना लेते हैं या उसे बंद कर देते हैं। फिर कुछ समय के गैप के बाद वे दोबारा फंड में निवेश शुरू करते हैं। इस कारण उनके रिटर्न में कमी आती है। 

मार्केट की टाइमिंग करना छोड़ दें 
निवेशकों की टाइमिंग अक्सर गलत साबित हुई। उन्होंने इक्विटी फंड में पैसे तब लगाए जब मार्केट में तेजी थी और तब निवेश निकाल लिया जब मार्केट में गिरावट थी।

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