‘आर्टिमिसिया अनुआ’ चीनी पौधा लेगा मलेरिया टक्कर

चीन के अत्यधिक ठंडे क्षेत्र में पाया जाने वाला मलेरियारोधी पौधा आर्टिमिसिया अनुआ अब भारत के गर्म स्थानों में भी उग सकेगा। बीएचयू के वनस्पति विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने टिशू कल्चर के जरिए इसकी प्रकृति में बदलाव कर दिया है। इस पौधे की पत्ती का काढ़ा काफी फायदेमंद है और इसमें एलर्जीरोधी तत्व पाए गए हैं।

आर्टिमिसिया अनुआ को प्रयोगशाला में सफलतापूर्वक उगाने का प्रयोग वनस्पति विभाग की प्रो. शशि पाण्डेय के नेतृत्व में हुआ। इस दौरान पौधे में आर्टिमिसिया रसायन समुचित मात्रा में मौजूद रहा।

इसे पराबैगनी किरणों से उपचारित किया गया तो रसायन की मात्रा दोगुनी हो गई। इसे क्षारीय भूमि में भी उगने लायक बना लिया गया है। इसकी खेती बंजर जमीन पर भी की जा सकेगी। इस शोध में डॉ. नेहा पाण्डेय, डॉ. अंजना कुमारी, नीरज गोस्वामी, निधि राय तथा राम प्रसाद मीना शामिल हैं। औषधीय पौधे की पत्तियों व फूल से मस्तिष्क ज्वर व मलेरिया की दवा बनाई जाती है। मलेरिया के बैक्टीरिया इस दवा के खिलाफ अभी प्रतिरोधी क्षमता विकसित नहीं कर पाए हैं। आर्टिमिसिया की प्रजातियों में अनुआ विशेष है।

चीन, वियतनाम में 70 प्रतिशत उत्पादन
इसकी खोज चीनी वैज्ञानिक यूयूतू ने की थी। वैश्विक स्तर पर चीन व वियतनाम आर्टिमिसिया का 70 फीसदी उत्पादन करते हैं। मलेरिया के अतिरिक्त इसका उपयोग जीवाणुओं, कवकों, कैंसर तथा अस्थमा में भी किया जाता है।आर्टिमिसिया अनुआ की पत्तियों में मलेरियारोधी तत्व मौजूद हैं। इससे खाने की गोली व इंजेक्शन तैयार किए जाते हैं। इसका उत्पादन कम होने से मांग पूरी नहीं हो पा रही है। पौधे की उत्पादन क्षमता बढ़ा कर कमी पूरी की जा सकती है।
 
मलेरिया से जूझ रहा भारत
1880 में पहली बार चार्ल्स अल्फोंसे लुईस लारेवान ने मलेरिया रोग का कारण खोजा। दक्षिण एशिया, भारत, अफ्रीका, प्यूपा, न्यूनिया में इसका ज्यादा प्रकोप है। भारत कई दशकों से मलेरिया से जूझ रहा है। 1953 में पहली बार भारत सरकार ने राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम बनाया। 1958 में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली की ओर से राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम शुरू हुआ।
 
हर वर्ष पांच करोड़ लोगों को मलेरिया

दुनिया भर में तीन से पांच करोड़ लोग प्रतिवर्ष मलेरिया से ग्रसित होते हैं। इनमें से 30 लाख की मौत हो जाती है। वर्तमान समय में विश्व की कुल आबादी का 40 प्रतिशत भाग मलेरिया से प्रभावित है। इसमें ज्यादातर पांच साल से कम उम्र के बच्चे हैं। मलेरिया एक परजीवी के कारण होने वाला रोग है। इसका संचरण मादा एनाफीलीज मच्छर से होता है। यह भौगोलिक क्षेत्र व क्षेत्रीय जलवायु पर निर्भर होता है।

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