आजमगढ़ सीट पर 2014 में मुलायम सिंह जैसा कमाल कर पाएंगे अखिलेश?

 
आजमगढ़ 

2019 लोकसभा चुनाव को लेकर यूपी में आजमगढ़ सीट की खूब चर्चा है। 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद एसपी संरक्षक मुलायम सिंह यादव यह सीट बचा पाने में सफल रहे थे। समाजवादियों का गढ़ माने जाने वाले आजमगढ़ में इस बार मुलायम के बेटे और सूबे के पूर्व सीएम अखिलेश यादव खुद मैदान में है। दूसरी तरफ अभी बीजेपी ने यहां कोई उम्मीदवार घोषित नहीं किया है।  

उधर, बीजेपी की तरफ से भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' के मैदान में उतरने की चर्चा जरूर है। आजमगढ़ में अभी राजनीतिक पार्टियों की तरफ से कोई खास हलचल चुनाव को लेकर नहीं दिख रही है। हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया की टीम जब यहां पहुंची तो पार्टियों की राजनीतिक हलचल जरूर कम दिखी लेकिन चुनाव को लेकर स्थानीय लोगों का मूड खूब समझ आया। 
12 मई को आजमगढ़ में चुनाव है। हालांकि यहां राजनीतिक हलचल काफी कम है। राजनीतिक पार्टियों और प्रत्याशियों के पोस्टर्स ना के बराबर हैं। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि बीजेपी ने अभी तक अपना प्रत्याशी उतारा नहीं है। गठबंधन की तरफ से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का नाम जरूर यहां से फाइनल है। यहां के करीब 136 साल पुराने शिबली नैशनल कॉलेज के शिक्षकों के एक ग्रुप का मानना है कि अखिलेश की जीत यहां से तय है। 

आजमगढ़ में करीब 16 फीसदी मुसलमान
2011 की जनगणना के मुताबक आजमगढ़ में करीब 16 फीसदी मुसलमान हैं। वहीं करीब 25 फीसदी दलित हैं। अगर चुनावों जातिगत आंकड़े हावी होते हैं तो निश्चित रूप से गठबंधन में साथ आने का फायदा एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव को मिलना तय है। चुनावी इतिहास को भी देखें तो भी इस क्षेत्र में 70 के दशक के बाद एसपी-बीएसपी का बोलबाला रहा है। 2014 के मोदी लहर में भी मुलायम सिंह भी जीत दर्ज कर एसपी के गढ़ को बचाए रखने में कामयाब हुए थे। 

हालांकि कुछ जानकार इस बात को लेकर अभी संशय में हैं कि क्या चुनाव बाद भी एसपी-बीएसपी का गठबंधन बरकरार रहेगा या फिर मौका मिलने पर दोनों अलग हो जाएंगे। शिबली कॉलेज में लॉ के टीचर खालिद शमीम कहते हैं, 'ऐसे समय में जबकि सांप्रदायिक तापमान बढ़ रहा है, हम दोहरे संशय में हैं। हमें इस बात का भी डर है कि कहीं हम जिन पार्टियों को वोट दे रहे हैं, वही बाद में हमें धोखा ना दे दें।' 

'कांग्रेस को मजबूत करना चाहते हैं' 
एक अन्य टीचर एसजेड अली कहते हैं, 'राष्ट्रीय स्तर के चुनावों (आम चुनाव) में मुस्लिम अक्सर कांग्रेस के साथ जाते हैं। लेकिन सवाल हमेशा हमारे सामने यही होता है कि क्या कांग्रेस इतनी मजबूत है कि वह जीत सके। हम कांग्रेस को मजबूत करना चाहते हैं। पर, कई बार हमें लगता है कि कांग्रेस को हमारे वोट से बीजेपी की राह आसान हो जाएगी।' 

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