आखिर सपा-बसपा का वोट एक-दूसरे को क्या ट्रांसफर नहीं हो पाए
नई दिल्ली
उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती ने वर्षों पुरानी दुश्मनी को भुलाकर साथ आ गए. साथ तो आए लेकिन कोई करिश्मा होता नहीं दिख रहा. आजतक-एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल के मुताबिक मोदी-शाह की जोड़ी के सामने अखिलेश-मायावती की जोड़ी पूरी तरह से धराशाई हो ती नजर आ रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सपा-बसपा का वोट एक दूसरे को ट्रांसफर नहीं हो पाया, जिसके चलते गठबंधन का प्रयोग पूरी तरह से फेल होता दिख रहा है.
एग्जिट पोल के नतीजे
आजतक-एक्सिस माई इंडिया एग्जिट पोल के मुताबिक सूबे की 80 लोकसभा सीटों में से बीजेपी गठबंधन को 62-68 सीटें मिलती हुई नजर आ रही हैं. जबकि सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन को 10 से 16 सीटें और कांग्रेस को 1 से दो सीटें मिलने का अनुमान है. बीजेपी को अकेले दम पर 60 से 66 सीटें और अपना दल को 2 सीटें मिल रही हैं. जबकि सपा को 4 से 7 और बसपा को 3 से 7 सीटें मिल रही हैं. वहीं, कांग्रेस को एक से दो सीटें मिल सकती है.
एग्जिट पोल में वोट शेयर
एग्जिट पोल के लिहाज से उत्तर प्रदेश में वोट शेयर को देखें तो बीजेपी गठबंधन को 48 फीसदी वोट मिल रहे हैं. जबकि सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन को 39 फीसदी वोट मिल रहे हैं. वहीं, कांग्रेस को महज 8 फीसदी और अन्य को 5 फीसदी वोट मिलता दिख रहा है. इस तरह से सपा-बसपा के दलित, यादव और मुस्लिम मतों का समीकरण कोई असर दिखाता नजर नहीं आ रहा. जबकि बीजेपी के 50 फीसदी वाला दावा सच साबित होता दिख रहा है. यही नहीं इससे यह बात भी साबित हो रही है कि जिस मंसूबे के साथ दोनों नेता एक साथ आए थे वह भी सफल होता नहीं दिख रहा.
2014 में वोट शेयर और सीटें
दिलचस्प बात यह कि 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में एनडीए 42.30 फीसदी वोटों के साथ 73 सीटें जीतने में सफल हुई. जबकि सपा 22.20 फीसदी वोटों के साथ 5 सीटें और बसपा 19.60 फीसदी वोटों के साथ खाता खोलने में नाकाम रही. वहीं, कांग्रेस 7.50 फीसदी वोटों के साथ 2 सीटें जीतने में कामयाब हुई. इसी चुनाव में सपा-बसपा के कुल वोटों को यदि मिला दिया जाए तो वोट शेयर एनडीए के लगभग पहुंचता दिखा.
UP का जातीय समीकरण
सूबे में इस समय 22 फीसदी दलित वोटर हैं, जिनमें 14 फीसदी जाटव हैं. ये बसपा का सबसे मजबूत वोटबैंक है. जबकि बाकी 8 फीसदी दलित मतदाताओं में पासी, धोबी, खटीक मुसहर, कोली, वाल्मीकि, गोंड, खरवार सहित 60 जातियां हैं. वहीं, 45 फीसदी के करीब ओबीसी मतदाता हैं. इनमें यादव 10 फीसदी, कुर्मी 5 फीसदी, मौर्य 5 फीसदी, लोधी 4 फीसदी और जाट 2 फीसदी हैं. बाकी 19 फीसदी में गुर्जर, राजभर, बिंद, बियार, मल्लाह, निषाद, चौरसिया, प्रजापति, लोहार, कहार, कुम्हार सहित 100 से ज्यादा उपजातियां हैं. 19 फीसदी के करीब मुस्लिम हैं.
क्या यादव-दलित-मुस्लिम फॉर्मूला फेल?
ऐसे में सपा -बसपा का मूल वोटबैंक यादव, मुस्लिम और जाटव माना जाता है. इन तीनों समुदाय के वोटों को मिलाते हैं तो 43 फीसदी होता है. लेकिन एग्जिट पोल में सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन को 39 फीसदी वोट ही मिलने का अनुमान है. ऐसे में सीधे तौर पर 4 फीसदी वोट कम हो रहा है.
जबकि दूसरी ओर बीजेपी अपने मूलवोट बैंक सवर्ण के अलावा गैर-यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों को अपने खेमें में जोड़ने की कवायद की है. बीजेपी सूबे में लगातार यह बात कहती रही है कि हम 50 फीसदी से ज्यादा वोटर्स को अपने जोड़ने पर काम कर रहे हैं. ऐसे में एग्जिट पोल में बीजेपी गठबंधन को करीब 48 फीसदी वोट मिलता नजर आ रहा है. एग्जिट पोल के नतीजे को सही माने तो एक तरह से बीजेपी जहां अपने लक्ष्य को साधने में सफल रही, वहीं, गठबंधन पूरी तरह से फेल रहा.
हालांकि लोकसभा सीटों के हिसाब से मुस्लिम-यादव-दलित आबादी के गणित को देखते हैं तो यूपी में हर लोकसभा सीट पर 40 फीसदी से अधिक आबादी मुस्लिम-यादव-दलित की है. यूपी की कुल 80 सीटों में से 10 सीटों पर मुस्लिम-यादव-दलित की आबादी 60 फीसदी से भी अधिक है. ये सीटें आजमगढ़, घोसी, डुमरियागंज, फिरोजाबाद, जौनपुर, अंबेडकर नगर, भदोही, बिजनौर, मोहनलालगंज और सीतापुर हैं.
इसके अलावा 37 सीटों पर मुस्लिम-यादव-दलित की आबादी 50-60 फीसदी के बीच है, जिसमें मुलायम सिंह का चुनाव क्षेत्र मैनपुरी और कांग्रेस की अमेठी-रायबरेली जैसी सीटें आती हैं. बाकी की 33 सीटों पर मुस्लिम-यादव-दलित आबादी लगभग 40-50 फीसदी है, जिसमें पीएम मोदी की वाराणसी सीट भी आती है. एग्जिट पोल के हिसाब से गठबंधन पूरी तरह से मोदी-शाह के विजय रथ को सूबे में रोक पाने में सफल नहीं हो सका है. ऐसे में सीधे तौर पर माना जा रहा है कि दोनों पार्टियों के वोट एक दूसरे को ट्रांसफर नहीं हो सके.