अमेठी में हर 21 साल के बाद आखिर क्यों हार जाती है कांग्रेस, तीसरी बार मिली पार्टी को मात

अमेठी
यूपी में कांग्रेस का भले ही कितना भी खराब वक्त रहा हो, लेकिन रायबरेली और अमेठी संसदीय सीटों पर उसे जीत मिलती रही है। रायबरेली से सोनिया गांधी और अमेठी से राहुल गांधी जीत दर्ज करते रहे हैं। लेकिन इस बार बीजेपी की दिग्गज महिला नेता स्मृति इरानी अमेठी में राहुल को मात देने के करीब हैं। खुद राहुल गांधी ने अमेठी सीट पर परिणाम घोषित होने से पहले ही पराजय स्वीकार कर ली है। 1967 में अस्तित्व में आई अमेठी सीट पर यह तीसरा मौका है, जब कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है।

इस हार में एक दिलचस्प आकड़ा 21 नंबर का भी है। हर 21 साल बाद कांग्रेस का यहां हारने का इतिहास रहा है और यह बात राहुल गांधी की हार में भी कायम रही है। पहली बार 1977 में इंदिरा गांधी की ओर से आपातकाल लगाए जाने के विरोध में देश भर में कांग्रेस विरोध लहर के दौरान संजय गांधी इस सीट से परास्त हुए थे। यह पहला मौका था, जब अमेठी सीट कांग्रेस के हाथ से छिनी थी। उन्हें जनता पार्टी के रविंद्र प्रताप सिंह ने परास्त किया था।

इसके ठीक 21 साल बाद 1998 में कैप्टन सतीश शर्मा को पराजय झेलनी पड़ी थी। उन्हें बीजेपी कैंडिडेट संजय सिंह ने परास्त किया था। 1998 के बाद अब फिर 21 साल पूरे हुए हैं और कांग्रेस के लिए नतीजा पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की हार के तौर पर सामने आया है।

गौरतलब है कि बीजेपी की स्मृति इरानी ने राहुल गांधी को 19,000 से ज्यादा वोटों से मात दी है। इससे पहले 2014 में भी स्मृति ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन वह दूसरे स्थान पर रही थीं। पराजय के बाद भी स्मृति इरानी लगातार 5 सालों तक यहां ऐक्टिव रहीं और अब अमेठी की जनता ने उन्हें जीत के तौर पर आशीर्वाद दिया है।

अमेठी का गढ़ उखड़ने के साथ ही कांग्रेस उत्तर प्रदेश में महज एक सीट पर ही सिमट गई है। रायबरेली सीट से सोनिया गांधी जीत हासिल करने में सफल रही हैं। हालांकि उनकी जीत का अंतर भी पिछले आम चुनावों के मुकाबले कम हुआ है।

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