अब बिना चीड़-फाड़ होगा पोस्टमॉर्टम, बन रही नई तकनीक

नई दिल्ली 
उस परिवार पर क्या बीतती होगी, जिसका कोई अपना किसी ऐक्सिडेंट में मर जाए या फिर सूइसाइड कर ले। उस दुख का अंदाजा लगाना तब और मुश्किल है जब उसी मृत व्यक्ति का पोस्टमॉर्टम किया जाए। ऑटोप्सी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें शरीर की चीर-फाड़ कर अंदरूनी और बाहरी अंगो की जांच कर यह पता लगाया जाता है कि मौत कैसे हुई। कई परिवार इसके लिए तैयार नहीं होते और अपने मृत प्रियजन की ऑटोप्सी की इजाज़त भी नहीं देते। हालांकि अब ऐसा नहीं होगा। 

एम्स और आईसीएमआर अब एक ऐसी टेक्नॉलजी के साथ प्रयोग कर रहे हैं, जिसमें ऑटोप्सी को वर्चुअल तरीके से किया जाएगा। यानी अब ऑटोप्सी के दौरान न तो मृत व्यक्ति के शरीर पर किसी तरह का चीर-फाड़ का निशान होगा और न ही इससे उसके घरवालों की भावनाएं आहत होंगी। एम्स के प्रफेसर और फरेंसिक मेडिसिन के डॉक्टर सुधीर गुप्ता ने बताया कि कई परिवार वाले इस प्रक्रिया के लिए तैयार नहीं होते। चूंकि ऑटोप्सी पुलिस जांच की एक अभिन्न प्रक्रिया है इसलिए इसे नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है। 

इसलिए डॉ़ गुप्ता और उनकी टीम इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के साथ मिलकर एक ऐक्सपेरिमेंट करने जा रही है, जिसमें ऑटोप्सी को वर्चुअली कंडक्ट किया जाएगा। बता दें कि इस प्रक्रिया को स्विटजरलैंड के अलावा कई पश्चिमी देशों में पहले से फॉलो किया जा रहा जा रहा है। 

जैसा कि नाम से ही जाहिर है, इसमें इसमें मृत शरीर में आंतरिक अंगों, टिशूज़ और हड्डियों को बिना छुए जांचा जाता है। शरीर को एक बैग में पैक किया जाता है, जिसे बाद में एक सीटी स्कैन मशीन में रखा जाता है और फिर कुछ सेकंड के भीतर, आंतरिक अंगों की हजारों छवियां कैप्चर की जाती हैं, जिनका आगे फरेंसिक विशेषज्ञों द्वारा विश्लेषण किया जाता है। 

एम्स हर साल लगभग 3,000 ऑटोप्सी करता है। मामले की जटिलता और विशेषज्ञों की उपलब्धता के आधार पर, ऑटोप्सी करने में 30 मिनट से तीन तक का समय लग जाता है। 

फरेंसिक विभाग के प्रमुख डॉ. सुधीर गुप्ता ने कहा कि उन्होंने दुर्घटना के बाद हड्डी की चोट या फ्रैक्चर के साथ मरने वाले लोगों की ऑटोप्सी के लिए पहले से ही एक डिजिटल एक्स-रे मशीन स्थापित कर रखी है। उन्होंने आगे कहा, 'हम वर्चुअल ऑटोप्सी पर काफी रिसर्च कर रहे थे। हालांकि इस प्रॉजेक्ट में काफी निवेश करने की जरूरत है। मसलन, नई सीटी स्कैन मशीनें खरीदनी होंगी और एक नया पोस्टमॉर्टम रूम बनाना होगा। डॉ. गुप्ता ने कहा कि वर्चुअल ऑटोप्सी में मृत व्यक्ति के रेकॉर्ड डिजिटल फॉर्मेट में उपलब्ध होते हैं और इस तरह एक ही शरीर पर अन्य फरेंसिक विशेषज्ञों द्वारा विश्लेषण किया जा सकता है। 

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