UPSSSC परीक्षाः सॉल्वर गैंग ने खरीद लिए थे शहर के 3 सेंटर, KGMU का डॉक्टर था सरगना

 
लखनऊ 

उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (यूपीएसएसएससी) की तरफ से शनिवार को शुरू हुई दो दिवसीय भर्ती परीक्षा में एसटीएफ ने सेंधमारी की बड़ी साजिश का खुलासा किया है। ग्राम विकास अधिकारी, समाज कल्याण पर्यवेक्षक व ग्राम पंचायत अधिकारी के पदों के लिए हुई परीक्षा में नकल करवाने के लिए सॉल्वर गैंग ने लखनऊ में तीन सेंटरों को खरीद लिया था। एसटीएफ ने गैंग के सरगना केजीएमयू के डॉक्टर समेत 20 लोगों को गिरफ्तार किया है। एक अन्य कार्रवाई में लखनऊ से तीन सॉल्वर, गैंग के सरगना सहित पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है। एसटीएफ ने कानपुर और गोरखपुर से भी तीन सॉल्वर सहित प्रदेशभर से 30 लोगों की गिरफ्तारी हुई है। 
 
एसएसपी एसटीएफ अभिषेक सिंह ने बताया कि लखनऊ में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की सूचना मिली थी। इसके बाद एएसपी विशाल सिंह की टीम ने फैजुल्लागंज के ब्राइट सन पब्लिक स्कूल, कृष्णा नगर की सिटी मॉडर्न अकैडमी और हरिहर नगर के लाल बहादुर सिंह इंटर कॉलेज में छापा मारकर 20 लोगों को गिरफ्तार किया। इन सेंटरों में प्रिंसिपल, प्रबंधक और कक्षनिरीक्षक की मिलीभगत से सामूहिक नकल करवाने की तैयारी थी। इस गैंग को मीरजापुर के चुनार का रहने वाला केजीएमयू का डॉक्टर शरद सिंह और बाराबंकी का उत्तम कुमार लीड कर रहे थे। एसटीएफ ने आरोपितों के कब्जे से 14 लाख रुपये, 9 वोटर कार्ड, 12 आधार कार्ड, 5 ड्राइविंग लाइसेंस, 9 पैन कार्ड, 21 डेबिट कार्ड, 7 प्रवेश पत्र, 21 मोबाइल फोन बरामद किए हैं। 
 
ये पकड़े गए 
स्कूल प्रबंधक : नरेंद्र कुमार श्रीवास्तव (ब्राइट सन पब्लिक स्कूल), मुकेश पटेल (सिटी मॉडर्न ऐकडेमी), अनिल कुमार सिंह (लाल बहादुर सिंह इंटर कॉलेज के प्रबंधक का भाई) 

कक्ष निरीक्षक : मनोज कुमार सिंह (इंदिरानगर), आनंद कुमार, आनंद वर्मा, वैभव कुमार, प्रांशु वर्मा, संदीप कुमार (सभी बाराबंकी), चंद्र प्रकाश शुक्ला (हमीरपुर), आंनद पटेल (प्रयागराज), धनंजय चौधरी (गोरखपुर), शैलेंद्र यादव (हरदोई) 

अभ्यर्थी : परमात्मा प्रसाद (बस्ती), शैलेंद्र वर्मा (फैजाबाद), कमलेश कुमार और नीरज पाल (जौनपुर), धर्मेंद्र गुप्ता (गोरखपुर) 

10 से 12 लाख रुपये लेते थे 
गैंग के सरगना डॉ. शरद सिंह ने एसटीएफ को बताया कि पूरे प्रदेश में उसका नेटवर्क है। अभ्यर्थियों से परीक्षा पास करवाने के एवज में 10 से 12 लाख रुपये लिए जाते थे। पहले अभ्यर्थी से उसके प्रवेश पत्र के दो लाख रुपये लिए जाते थे। इसके बाद स्कूल प्रबंधकों की मिलीभगत से परीक्षा हॉल में अपने लोगों की ड्यूटी लगवाई जाती थी। कक्ष निरीक्षक अभ्यर्थी को मिला पेपर वॉट्सऐप करते थे और बाहर से सॉल्वर के जरिए आंसर-की निरीक्षक को भेजी जाती थी। परीक्षा खत्म होने के बाद निरीक्षक ओएमआर शीट भरता था और उसकी फोटो खींच कर गैंग को भेज देता था। रिजल्ट के बाद अभ्यर्थी से बाकी रकम वसूली जाती थी। 
 

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