UPSC सिविल सेवा परीक्षा: जानें IAS बनने के लिए क्यों दिल्ली का रुख कर रहे हैं प्रतियोगी

 प्रयागराज
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा का अंतिम परिणाम अमूमन अप्रैल में घोषित होता है। तब तक अगले वर्ष की प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी शुरू हो चुकी होती है। प्रयागराज के रहने वाले या यहां पढ़ाई करने वाले ज्यादातर सफल छात्रों के बारे में जानकारी मिलती है कि वो दिल्ली में हैं, तैयारी कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रयागराज के रहने वाले और यहां बाहर से आकर पढ़ाई करने वाले ज्यादातर प्रतियोगी छात्र तैयारी के लिए दिल्ली का ही रुख कर लेते हैं। प्रयागराज से इनका मोहभंग 1990 से ही शुरू हो गया था। कई कोचिंग से जुड़े रहे इतिहास के विशेषज्ञ रनीश जैन कहते हैं कि यह वह वक्त था जब प्रयागराज में मंडल आंदोलन चरम पर था। उग्र आंदोलन से उन अभिभावकों के मन में प्रयागराज की नराकात्मक छवि बनी, जो बच्चों को यहां तैयारी के लिए भेजते थे। उन्होंने बच्चों को मुखर्जी नगर और करोलबाग भेजना शुरू कर दिया। 

सेवानिवृत आईएएस अफसर बादल चटर्जी कहते हैं कि सिविल सेवा का पेपर सेट करने में जेएनयू के शिक्षकों के बढ़े हस्तक्षेप के बाद दिल्ली का परिणाम बेहतर आने लगा क्योंकि बाकी विवि की तुलना में जेएनयू की पढ़ाई का ढर्रा अलग था। इसबीच इविवि के शैक्षिक स्तर में गिरावट हुई तो जो प्रतियोगी छात्र पढ़ाई करने के लिए भी दिल्ली ही जाने लगे। विशेषज्ञ नवीन पंकज कहते हैं कि 2000-01 से इंजीनियरिंग, मेडिकल, एमबीए करने वाले अंग्रेजी माध्यम के छात्रों की सफलता का ग्राफ तेजी से चढ़ा। जो दिल्ली के राजेन्द्र नगर, करोल बाग में रहकर तैयारी करते थे। परिणाम से प्रभावित होकर प्रयागराज के प्रतियोगी दिल्ली के मुखर्जी नगर जाने लगे।
 
बदला मन 
– उच्च शिक्षा के लिए भी दिल्ली ही जाने लगे प्रतियोगी छात्र 
– मंडल आंदोलन से खराब हुई प्रयागराज की छवि, हुआ मोहभंग
 
दिल्ली क्यों बनी पसंद
– प्रयागराज की तुलना में विशेषज्ञों से स्तरीय मार्गदर्शन
– दिल्ली में पीसीएस के बजाए सिविल सेवा को एक मात्र लक्ष्य बनाकर तैयारी किया जाना
– सिविल सेवा पर फोकस करते हुए तैयारी से प्रतिस्पर्धा का माहौल
– जेएनयू, डीयू, आईआईटी, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स जैसी संस्थाओं से मदद मिलना
 
प्रतिस्पर्धा के साथ अब विकल्प भी बढ़े
कई उच्च पदों पर सेवाएं दे चुके 1982 बैच के आईएएस अफसर रोहित नंदन कहते हैं कि सिविल सेवा में प्रयागराज के सफलता दर में कमी के लिए इविवि की शिक्षा की गुणवत्ता में कमी को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है। जिस दौर में यहां से सर्वाधिक सिविल सेवक निकलते थे, उस वक्त इविवि के स्तर के विवि कम थे। ऐसे विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ने से प्रतिस्पर्धा बढ़ी है। इविवि ने सिविल सेवा के अनुरूप अपने पाठ्यक्रम को नहीं बदला। शुरू से इसका उद्देश्य बौद्धिक लोगों को तैयार करना था। नंदन कहते हैं कि अब 60 से 70 प्रतिशत सिविल सेवक मेडिकल, इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से आने लगे हैं तो मानविकी के छात्रों का प्रतिशत तो खुद ब खुद कम हो जाएगा। पहले छात्रों के पास विकल्प कम थे, इसलिए फोकस सिविल सेवा पर होता था अब न्यायिक सेवा सहित अन्य कई विकल्पों को भी छात्र ज्यादा महत्व देते हैं। प्रयागराज में अच्छे कोचिंग सेंटर का अभाव भी प्रमुख कारण है।

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