Article 370: पर्दे के पीछे अमित शाह के साथ काम कर रहे थे ये तीन मंत्री

नई दिल्ली 
केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया। गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में इसका ऐलान किया। उन्हानें बताया कि राज्य को दो हिस्सो में विभाजित किया जाएगा। इसके लिए सरकार ने पुनर्गठन बिल राज्यसभा में पेश किया, जिसे बहुमत से पारित करा लिया गया। सूत्रों के अनुसार, संसद सत्र शुरू होने के साथ ही पर्दे के पीछे तीन केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, पियूष गोयल और प्रहलाद जोशी की अहम भूमिका रही। खास बात यह रही कि अमित शाह खुद सोमवार को संसद में संकल्प व विधेयक को लाने से पहले राजग के सभी प्रमुख नेताओं को विश्वास में ले चुके थे, लेकिन सभी स्तर पर भारी गोपनीयता बरती गई। 

इसी बीच सरकार को लगा कि राज्यसभा की सभी बाधाएं दूर हो गई हैं, तो उसने संसद सत्र बढ़ाने का फैसला किया। ताकि पहले ही सत्र में बड़ा काम कर लिया जाए। इसमें तीन तलाक को लाया गया। नंबर पूरा हो गया था, कुछ दलों को गैर हाजिर, कुछ को समर्थन व कुछ को साथ लेने का काम हो गया था। सूत्रों के अनुसार, तीन केंद्रीय मत्री पियूष गोयल, धर्मेंद्र प्रधान, प्रहलाद जोशी, महासचिव भूपेंद्र यादव की टीम लगातार काम कर रही थी। तीन तलाक पर जब बड़ी सफलता मिल गई तो अनुच्छेद 370 को हटाने, जम्मू-कश्मीर के विभाजन की तैयारी की गई। 

खंगाले गए राज्यसभा के आंकड़े
सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार में शामिल होते ही शाह ने राज्यसभा के आंकड़े को खंगाला। विधानसभा के दलीय आंकडों के साथ यह भी देखा गया कि राज्यसभा में राजग व भाजपा का अपना बहुमत कब तक हो सकेगा? उसके पहले क्या क्या हो सकता है। सूत्रों के अनुसार विपक्षी दलों में कमजोर कड़ी खोजने और अपने साथ लाने के मोर्चे पर तीन केंद्रीय मंत्री, एक पार्टी पदाधिकारी जुटे। कमान शाह खुद संभाले थे। सोची समझी रणनीति के तहत आरटीआई व तीन तलाक विधेयक को पहले लाया गया। 

दलों की कमजोर कड़ी से निकाला तोड़ : 
कांग्रेस अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के भीतर मची उहापोह में कई सांसदों ने खुद भी भाजपा के मंत्रियों से संपर्क किया। तेलुगुदेशम का पहला ऑपरेशन हुआ और उसमें दो तिहाई विभाजन से चार सांसद भाजपा में आ गए। इनेलो का एक मात्र सांसद भी भाजपा में आ गया। दरअसल राज्यसभा के उन सांसदों ने ज्यादा रुचि दिखाई जहां पर भाजपा की सरकारें थी, जिससे उपचुनाव होने पर वे चुन कर आ सकें। इससे कांग्रेस, सपा के पांच सांसदों ने अपनी पार्टियों से इस्तीफा दे दिया। 

रविवार दोपहर से शुरू हुई कवायद :
सूत्रों के अनुसार, इसकी किसी को भनक नहीं लगने दी गई। कानून मंत्री से सलाह मशविरा किया गया। चुनिंदा मंत्रियों को यह तो पता था कि इस बारे में बिल आना है, लेकिन कब यह नहीं बताया गया। सूत्रों के अनुसार रविवार की दोपहर के बाद से एक एक कर कुछ नेताओं को इस कवायद से जोड़ा गया। सोमवार सुबह कैबिनेट में ही सभी मंत्रियों को इसका पता चल सका। इसके पहले शाह ने राजग के दो दलों के नेताओं से बात कर उनको भरोसे में लिया। कुछ दलों के नेताओं से प्रहलाद जोशी ने बात की। सुबह ही विपक्ष के दो और सांसदों के इस्तीफे तय हो गए। 

संसद में 23 बार एक ही दिन में पेश कर पारित हुए हैं विधेयक :
भाजपा के एक नेता ने कहा कि एक ही दिन में विधेयक लाने और उसे पारित कराने का यह पहला मौका नहीं है। इसके पहले 23 मौकों पर ऐसा हो चुका है। इसकी शुरुआत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में की थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट से इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द होने के बाद सात अगस्त 1975 को लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक लाया गया, जिसमें हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करने के साथ लोकसभा का कार्यकाल छह साल कर दिया गया। इस संविधान संशोधन विधेयक को उसी दिन पारित भी किया गया था। लोकसभा में 18 बार व राज्यसभा में पांच बार एक ही दिन में विधेयक पेश कर पारित किए गए। 
 

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