भारत के ज्वालामुखी बने 6.5 करोड़ साल पहले डायनासोरों की मौत की वजह

 
लॉस एंजलिस

अब तक शोधकर्ताओं का मानना था कि 6.5 करोड़ साल पहले डायनासोरों की मौत धरती से एक क्षुद्रग्रह (एस्टेराइड) टकराने के चलते हुई। लेकिन हाल ही में जर्नल साइंस में छपे शोध के मुताबिक, इतने साल पहले धरती से क्षुद्रग्रह टकराया था और इसके चलते भारत में कई सुप्त ज्वालामुखी भड़क गए जो डायनासोरों की मौत की वजह बने। 1980 के दशक से पहले प्रमुख सिद्धांत यह था कि एक बड़े ज्वालामुखी विस्फोट की वजह से लंबे समय तक वायुमंडल में राख, गैस और धूल का गुबार छाया रहा। इसके बाद वैज्ञानिकों ने मैक्सिको के पास एस्टेराइड का बड़ा क्रेटर खोजा।
 
 माना गया कि वायुमंडल में छायी धूल के चलते पेड़ों में प्रकाश संश्लेषण खत्म हो गया, जिससे धरती का एक तिहाई जीवन खत्म हो गया। अब दो रिपोर्ट्स में अत्यधिक लावा बहने और उसके चलते पैदा हुई गर्मी को डायनासोरों की मौत के लिए जिम्मेदार बताया जा रहा है। फिलाडेल्फिया यूनिवर्सिटी के प्रो.लॉइक वेंडरक्लाइसेन मुताबिक, "हम क्रिटेशस काल के अंत तक हुई घटनाओं को रीक्रिएट करने में कामयाब रहे हैं।" एक शोधकर्ता का कहना है कि करोड़ों साल पहले डेक्कन ट्रैप (वर्तमान महाराष्ट्र और कर्नाटक तक का इलाका) में 1200 मीटर मोटाई का लावा बहा। इतने लावा से फ्रांस के क्षेत्रफल के जितनी सैकड़ों मीटर गहराई को भरा जा सकता है। ज्वालामुखियों का फटना डायनासोरों के विलुप्त होने के कुछ समय पहले ही हुआ था। एक अन्य शोधकर्ता के मुताबिक- धरती से क्षुद्रग्रह टकराने के बाद अधिकांश लावा बहा।

इसके चलते एक बड़ा भूकंप आया जिसकी तीव्रता संभवत: 11 रही होगी। ऐसा भूकंप मानव इतिहास में अब तक नहीं देखा गया। ज्वालामुखी से लावा निकलने की प्रक्रिया कोई 3 लाख साल पहले बंद हुई। वेंडरक्लाइसेन कहते हैं कि एक बड़ी घटना ने बड़े परिणाम दिए। यह सोडे की बोतल को हिलाकर खोलने जैसा था जिसने वॉल्कैनिक एक्टिविटी को तेज कर दिया। प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी के प्रो. ब्लेयर शोन कहते हैं कि अन्य समय हुई तीव्र ज्वालामुखी गतिविधि भी बड़े पैमाने पर विलुप्त होने की घटनाओं के साथ मेल खाती है। शोन के मुताबिक- बड़ा सवाल यह है कि क्या विलुप्त होने के प्रभाव के बिना जीवों विलुप्ति हुई या ज्वालामुखी विस्फोट के बिना जीव विलुप्त हुए होंगे? मुझे नहीं लगता कि हम उस जवाब को जानते हैं। अभी तो बस यही कहा जा सकता है कि प्रकृति को समझना काफी मुश्किल है। हमें अभी भी काफी अध्ययन करना होगा।

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