370 हटने के बाद क्या है माहौल, क्या है लोगों का कहना?

 
श्रीनगर 

जम्मू-कश्मीर के लेथपोरा, पुलवामा में इस साल 14 फरवरी को जहां आत्मघाती हमला हुआ था, वहां अब सन्नाटा पसरा है. धमाके वाली जगह पर राष्ट्रीय राजमार्ग पर वाहनों की आवाजाही नहीं के बराबर है. सीआरपीएफ की टुकड़ी पर हुए हमले में 20 किलोग्राम विस्फोटक से राजमार्ग पर जो बड़ा गड्ढा हुआ था वो तो कब का भर गया लेकिन उस हमले में 40 जवानों की शहादत को भारत कभी नहीं भूल पाएगा. उस हमले को एक हफ्ते बाद छह महीने पूरे होने वाले हैं. ऐसे में अनुच्छेद 370 और 35-ए को रद्द किए जाने के बाद पुलवामा के लोगों का क्या कहना है, ये 'आजतक/इंडिया टुडे'  ने जानने की कोशिश की.    

कोकेरनाग की रहने वाली आसिफा का कहना है, 'मुझे त्रासदी (पुलवामा हमला) के बारे में कुछ नहीं कहना है, वो बहुत खौफनाक था. लेकिन अनुच्छेद 370 और 35ए पर फैसले ने  हमारी जिंदगी पर असर डाला है. कोई मोबाइल या लैंडलाइन संपर्क नहीं है. हम दिल्ली में अपनी बेटी से बात नहीं कर पा रहे हैं. उसे आज ईद के लिए लौटना है. हमें नहीं पता कि हम उसे लेने के लिए एयरपोर्ट तक पहुंच पाएंगे या नहीं.'

पुलवामा में जहां हमला हुआ था वहां बंद दुकानों के बाहर कुछ युवक बैठे दिखे. 20-30 साल उम्र के इन युवाओं का कहना था, 'हम सरकार के खिलाफ कुछ नहीं बोलेंगे. जो कुछ भी हम कहेंगे वो हमारे खिलाफ इस्तेमाल होगा.' कुछ मीटर की दूरी पर  मौजूद युवाओं के एक और ग्रुप ने कहा,  'फैसले से ठीक पहले हमारे इलाके के 2-3 पुरुषों को उठाया गया और गिरफ्तार किया गया. हम इस अनुच्छेद को खत्म करने के खिलाफ हैं.'

एक और शख्स तीखे लहजे में कहता है, 'क्या सरकार हमें बंदूक उठाने के लिए मजबूर कर रही है.'  वहीं वो शख्स कुछ और बुदबुदाते हैं, 'हमारा केबल काम नहीं कर रहा है, कुछ घरों में ही कर रहा है.'  

एक सरकारी कर्मचारी कहता है, 'हमें बोलने की अनुमति नहीं है, लेकिन उन्होंने विशेष दर्जा क्यों रद्द किया. हम भारतीय हैं, लेकिन इससे हिंसा का एक लंबा दौर चलेगा.' वहीं केसर उत्पादक किसान नजीर खांडे नए केसर सीजन के लिए अपने खेतों को तैयार कर रहे हैं.

परेशान नजर आ रहे खांडे ने कहा, हम इसे (370 हटाना) कबूल नहीं करेंगे. उन्होंने मुख्यधारा के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया है. ये बुरा संकेत है. हमारी आवाजाही पर रोक है और हमारे कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं. आने वाला वक्त मुश्किल है.'

खांडे के केसर के खेत में काम करने वाला दक्षिण कश्मीर का एक मजदूर कहता है, 'इस फैसले न हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पर असर डाला है.' थोड़ी दूरी पर जम्मू कश्मीर पुलिस, सीआरपीएफ और भारतीय सेना के जवानों की साझा तैनाती नजर आती है. ये दूर-दूर तक फैले केसर के विशाल खेतों पर सतर्क निगाहें रखें हुए हैं.

सीआरपीएफ के एक अधेड़ सिख इंस्पेक्टर के मुताबिक वे कश्मीर घाटी में मुश्किल से मुश्किल हालात देख चुके हैं. उनके रिटायरमेंट को छह महीने ही बचे हैं. उनका कहना है, मेरा परिवार कनाडा शिफ्ट हो गया है. मेरे दो बेटे, पत्नी और मेरे माता-पिता टोरंटो में हैं. कानून और व्यवस्था की स्थिति बेहतर होने के बाद मैं परिवार से जुड़ सकूंगा.  इंस्पेक्टर ने ताज़ा हालात पर कहा, 'ये भी देख लेंगे.'

उम्मीद और निराशा के बीच कश्मीर एक बार फिर फोकस में है. हर किसी के जेहन में यही है कि ये बेचैनी का दौर कितना लंबा चलेगा.

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