हापुड़: ऑस्कर जीतने वाली यूपी की ‘पैड विमिन’ ने गंवाई नौकरी

 हापुड़ 
सैनिटरी नेपकिन बनाने को लेकर बनी फिल्म 'पीरियड: द एंड ऑफ सेंटेंस' को लेकर ऑस्कर अवॉर्ड जीतने वालीं सुमन तथा स्नेहा के लिए पूर्व सीएम अखिलेश यादव का 1-1 लाख रुपये देना परेशानी का कारण बन गया। ऐक्शन इंडिया ने दोनों पर संस्था के नियमों को तोड़ने का आरोप लगाते हुए नौकरी से निकाल दिया है। बता दें कि स्नेहा और सुमन डॉक्युमेंट्री में ऐक्टिंग की थी।  

हापुड़ के गांव काठीखेड़ा ने सैनिटरी नेपकिन बनाने वाली महिलाओं पर बनी डॉक्युमेंट्री को ऑस्कर अवॉर्ड मिला है। 'पीरियडः इंड ऑफ सेन्टेंस' को बेस्ट डॉक्युमेंट्री शॉर्ट सब्जेक्ट वर्ग में यह अवॉर्ड मिला था। इस पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ऑस्कर विजेताओं सुमन और स्नेहा और उनकी टीम को लखनऊ बुलाकर एक-एक लाख रुपये का चेक दिया था। 

गत 15 मार्च को कंपनी ने उन्हें संस्था के नियमानुसार चेक लौटाने या फिर संस्था में जमा करने को कहा, जिस पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। संस्था ने 29 अप्रैल को सुमन को काम करने से मना कर दिया। वहीं, संस्था की प्रॉजेक्ट को-ऑर्डिनेटर सुलेखा ने बताया कि सुमन ने चेक वापस न करने पर स्वयं नौकरी छोड़ी है और संस्था में उनकी सैलरी बकाया नहीं है। स्नेहा यहां कर्मचारी नहीं थीं। 6 महीने पहले ही उसने नौकरी छोड़ दी थी। 

आरोप-प्रत्यारोप 
सुमन ने आरोप लगाते हुए कहा, 'एनजीओ की तरफ से हमें कहा गया कि चूंकि यह पूरी डॉक्युमेंट्री उनके प्रयास और कामों के इर्द-गिर्द घूमती है। इसलिए उन्हें पैसा दिया जाना चाहिए।' वहीं दूसरी तरफ ऐक्शन इंडिया के प्रॉजेक्ट मैनेजर देवेंद्र कुमार ने आरोप को निराधार बताते हुए कहा कि अवॉर्ड जीतकर लौटने के बाद से उनका रवैया बदल गया और काम पर आना भी बंद कर दिया। इस वजह से यूनिट चलाने में दिक्कत होने लगी। 

बता दें कि सुमन की शादी 2010 में काठीखेड़ा गांव में सुरक्षा गार्ड बलराज से हुई थी। जल्द सुमन गांव में एक एनजीओ 'ऐक्शन इंडिया' से जुड़ी, जो महिलाओं के लिए काम करता था। वहीं से सुमन को गांव में सैनिटरी पैड बनाने की प्रेरणा मिली। इस काम में उन्होंने रिश्ते में ननद स्नेहा और उनकी सहेलियों को भी जोड़ा। स्नेहा ने बताया कि समाज में मौजूद तमाम पाबंदियों और शर्म के कारण शुरू में इन्होंने परिवारवालों को बताया तक नहीं कि वे पैड बनाती हैं। जब पता चला तो इन्होंने किस तरह घर-परिवार को समझाया, यह फिल्म उसी संघर्ष को बयां करती है। गांव पर बनी फिल्म की इस सफलता से वहां के लोग बेहद खुश हैं। 
 

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