हाजीपुर लोकसभा सीट पर लालू यादव और रामविलास पासवान में छद्म चुनावी जंग

 
हाजीपुर (बिहार) 

केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के लिए हाजीपुर लोकसभा सीट का नतीजा बेहद अहम होगा। बिहार में आम धारणा है कि इस सीट से रामविलास पासवान की राजनीति की दिशा और दशा तय होनी है। बेटे चिराग पासवान की जमुई सीट को लेकर राजनीतिक गलियारों में चल रही अटकलबाजी के बाद तो रामविलास पासवान ने हाजीपुर को जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। माना जा रहा है कि इस सीट से भले ही पासवान भले ही चुनाव नहीं लड़ रहे हों, लेकिन असली लड़ाई उनकी उनके धुर विरोधी लालू यादव से है। 

इस सीट पर सोमवार को मतदान होना है। रामविलास पासवान के लिए यह सीट इसलिए अहम है, क्योंकि यह उनकी परंपरागत सीट रही है। 1977 में उन्होंने इस सीट पर पहली बार जीत दर्ज की और उसके बाद 2014 तक वह आठ बार यहां से सांसद निर्वाचित हुए। सिर्फ दो मौकों पर उन्हें इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा, एक बार 1984 में और दूसरी बार 2009 में। लोकसभा चुनाव की तारीख घोषित होने से पहले ही रामविलास पासवान ने चुनाव न लड़ने और राज्यसभा जाने की इच्छा जता दी थी, तब यह माना जा रहा था कि इस सीट पर वह अपनी पत्नी या बेटे को चुनाव लड़ा सकते हैं। 

हाजीपुर से भाई को मैदान में उतारा
हालांकि बाद में उन्होंने इस सीट पर अपने भाई पशुपति कुमार पारस को उम्मीदवार बनाया है, जो कि बिहार सरकार में मंत्री हैं। पारस 1977 से बिहार विधानसभा का चुनाव जीतते आ रहे थे। उनकी पहली हार आरजेडी-जेडीयू का गठबंधन होने के बाद 2015 में हुई थी, लेकिन पिछले साल जब नीतीश कुमार ने आरजेडी से अलग होने के बाद बीजेपी के सहयोग से सरकार बनाई तो उन्होंने पारस को मंत्री तो बनाया ही, साथ ही विधान परिषद के लिए भी नामित किया। स्थानीय लोगों का कहना है कि रामविलास जब खुद उम्मीदवार होते थे तो इतनी ज्यादा मेहनत नहीं करते थे, जितनी इस बार कर रहे हैं। 
  
चुनाव हमेशा जीतने के लिए लड़ा जाता है, यह बात कई मायनों में सच है लेकिन देश में कुछ लोग ऐसे भी हुए हैं जो चुनावी दंगल में हारने के लिए ही खड़े होते हैं। इन्हें 'धरती पकड़' के नाम से जाना जाता है। इनमें से कोई मनोरंजन के लिए तो कोई राष्ट्रवाद की भावना फैलाने के उद्देश्य से मैदान में होता है। यहां जानिए प्रमुख पांच 'धरती पकड़' के बारे में

बरेली के रहनेवाले थे। वार्ड पार्षद से लेकर राष्ट्रपति तक का चुनाव लड़ा। जवाहर लाल नेहरू ने विधानसभा टिकट देने की पेशकश की थी, लेकिन काका ने मना कर दिया। जमानत राशि जब्त होने पर वह कहते कि यह देश के फंड में उनका योगदान है।
 भागलपुर के रहनेवाले हैं। इन्होंने लगभग हर राज्य से चुनाव लड़ा हुआ। इसबार दिल्ली और पटना से लड़ रहे हैं। नामांकन में अपने साथ गधों को ले जाते थे। कहते कि यह दिखाता है कि नेता कैसे लोगों को मूर्ख बनाते हैं। तमिलनाडु का यह शख्स इलेक्शन किंग के नाम से मशहूर है। पद्मराजन अपने नाम गिनेस रेकॉर्ड दर्ज कराना चाहते हैं और वह भी सबसे ज्यादा चुनाव हारने वाले प्रत्याशी के तौर पर। इसबार धर्मपुरी सीट से चुनावी मैदान में।
हाजीपुर में चुनौती क्यों बढ़ी 
वैसे एक नजर में देखा जाए तो हाजीपुर सीट पर रामविलास पासवान के जरिए पशुपतिकुमार पारस ‘सेफ जोन’ में दिख रहे हैं। बीजेपी से लेकर जेडीयू का पूरा समर्थन उनके साथ है। नीतीश कुमार खुद हाजीपुर में पारस के लिए वोट मांगने आ चुके हैं। जातीय समीकरण भी पासवान के अनुकूल है। पासवान वोटर्स की तादाद ही यहां 13 से 15 प्रतिशत बताई जाती है। बीजेपी का समर्थन होने से उसके परंपरागत वोट बैंक- भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ, वैश्य का समर्थन भी मिलेगा, लेकिन आरजेडी ने हाजीपुर संसदीय सीट के तहत आने वाली एक विधानसभा सीट से विधायक शिवचंद को मैदान में उतार दिया है। 

शिवचंद्र रविदास जाति के हैं। उनकी जाति के लोगों की तादाद यहां एक से सवा लाख है। यादव और मुस्लिम वोट उनके साथ चट्टान की तरह खड़ा दिख रहा है। शिवचंद की एक पहचान यह है कि वह इलाके के विधायक हैं, दूसरा उन्हें लालू यादव और राबड़ी देवी का विश्वसनीय माना जाता है। आरजेडी के एक नेता ने कहा, 'यहां पर लालू यादव की प्रतिष्‍ठा दांव पर लगी है।' उधर, आरजेडी के स्थानीय कार्यकर्ता इस सीट के नतीजे अपने पक्ष में आने का दावा कर रहे हैं, उसके पीछे उनका तर्क यह है कि अब रामविलास पासवान चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। अब उनका मुकाबला शिवचंद बनाम पारस का है। 

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