सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी, बुधवार सुबह 10.30 बजे फैसला
नई दिल्ली
कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन के बागी विधायकों और स्पीकर की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली है। मंगलवार को कोर्ट में संबंधित पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलें रखीं और कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। सुप्रीम कोर्ट अब बुधवार को सुबह 10:30 बजे इस मामले में फैसला सुनाएगा। बागी विधायकों ने कोर्ट से मांग की है कि वह स्पीकर को उनके इस्तीफों को स्वीकार करने का निर्देश दे जबकि स्पीकर ने आज कोर्ट से यथास्थिति बरकरार रखने के आदेश को वापस लेने की मांग की।
बागी विधायकों की तरफ से कोर्ट में दलील पेश करते हुए मुकुल रोहतगी ने कहा, 'विधायकों को इस्तीफा देने का मौलिक अधिकार है, इसे रोका नहीं जा सकता है। संवैधानिक व्यवस्था के मुताबिक इस्तीफा तुरंत स्वीकार करना होगा। जबतक इसपर फैसला नहीं होता तक तक उन्हें सदन में पेशी से छूट दी जाए।'
स्पीकर की दलील
स्पीकर की तरफ से दलील रखते हुए अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, 'अयोग्यता और इस्तीफा पर फैसले का अधिकार स्पीकर का है। जबतक स्पीकर अपना फैसला नहीं दे देते तब तक सुप्रीम कोर्ट उसमें दखल नहीं दे सकता।' कुछ ऐसी ही दलील सीएम एचडी कुमारस्वामी की तरफ से राजीव धवन ने भी रखी।
गुरुवार को सदन में बहुमत परीक्षण
कर्नाटक के सियासी संग्राम और गुरुवार को होने वाले बहुमत परीक्षण से पहले सुप्रीम कोर्ट में कानूनी दांवपेच का दौर जारी रहा। मंगलवार को कोर्ट में बागी विधायकों की अर्जी पर सुनवाई हुई। बागी विधायकों ने अपना पक्ष रखते हुए स्पीकर की भूमिका पर सवाल उठाए। बागी विधायकों ने कहा कि वह इस्तीफा दे चुके हैं, लेकिन स्पीकर जानबूझकर स्वीकार नहीं कर रहे हैं। इस बीच, स्पीकर केआर रमेश कुमार ने कोर्ट को बताया कि वह बुधवार तक बागी विधायकों की अयोग्यता और त्यागपत्र के मामले पर फैसले ले लेंगे।
बागी विधायकों ने स्पीकर की मंशा पर उठाए सवाल
बागी विधायकों ने कोर्ट से कहा कि अध्यक्ष ने उन्हें अयोग्य घोषित करने की मंशा के साथ उनके त्यागपत्र लंबित रखे हैं। उन्होंने कहा कि अयोग्यता से बचने के लिए त्यागपत्र देने में कुछ भी गलत नहीं है। बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि अध्यक्ष को इन विधायकों के इस्तीफों पर अपराह्न दो बजे तक निर्णय लेने का निर्देश दिया जा सकता है और वह उनकी अयोग्यता के मसले पर बाद में निर्णय ले सकते हैं। पीठ ने रोहतगी से सवाल किया कि क्या अयोग्यता के बारे में निर्णय लेने के लिए अध्यक्ष की कोई संवैधानिक बाध्यता है जो इन विधायकों के इस्तीफे के बाद शुरू की गई है। रोहतगी ने कहा कि नियमों के अनुसार इस्तीफे पर ‘अभी निर्णय’ लें।
सिंघवी ने विधायकों पर उठाए सवाल
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ के समक्ष स्पीकर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कोई यह नहीं कह सकता कि अध्यक्ष से गलती नहीं होती लेकिन उन्हें समय सीमा के भीतर मामले का फैसला लेने के लिए नहीं कहा जा सकता। सिंघवी ने पीठ से सवाल किया, ‘अध्यक्ष को यह निर्देश कैसे दिया जा सकता है कि मामले पर एक विशेष तरह से फैसला लिया जाए? इस तरह का आदेश तो निचली अदालत में भी पारित नहीं किया जाता है।’ उन्होंने कहा कि वैध त्यागपत्र व्यक्तिगत रूप से अध्यक्ष को सौंपना होता है और ये विधायक अध्यक्ष के कार्यालय में इस्तीफा देने के पांच दिन बाद 11 जुलाई को उनके समक्ष पेश हुए।
रोहतगी बोले- बीजेपी ने नहीं रची साजिश
बागी विधायकों की तरफ से दलील रखते हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा, ‘अध्यक्ष इन्हें लंबित कैसे रख सकते हैं?’ बागी विधायकों ने कहा कि राज्य सरकार अल्पमत में आ गई है और उनके इस्तीफे स्वीकार नहीं करके अध्यक्ष विश्वासमत के दौरान सरकार के पक्ष में मत देने के लिए दबाव बना रहे हैं। रोहतगी ने कहा कि संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत अयोग्यता की कार्यवाही संक्षिप्त सुनवाई है और इस्तीफे का मामला अलग है और इन्हें स्वीकार करने का एकमात्र आधार होता है कि ये स्वेच्छा से दिए गए हैं या नहीं। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई भी तथ्य नहीं है जिससे यह पता चलता हो कि बीजेपी ने इन बागी विधायकों के साथ मिलकर कोई साजिश की है। रोहतगी ने कहा कि अयोग्यता की कार्यवाही और कुछ नहीं बल्कि बागी विधायकों के इस्तीफों को निष्प्रभावी बनाने का प्रयास है।