सरकार मीसाबंदी पेंशन कानून को खत्म करेगी

भोपाल
कमलनाथ सरकार मीसाबंदी पेंशन कानून को खत्म करने जा रही है। इसके लिए विधानसभा के बजट सत्र में लोकतंत्र सम्मान निधि निरसन विधेयक लाने की तैयारी है। मीसा बंदी कानून खत्म करने के मामले में भाजपा का कड़ा विरोध कर सकती है। ऐसे में राज्यसभा चुनाव से पहले इस कानून की आड़ में सरकार फ्लोर टेस्ट पास कर कांग्रेसी विधायकों में उत्साह भर सकती है। इस कानून को अभी लाने के पीछे मुख्यमंत्री कमलनाथ की मंशा फ्लोर टेस्ट के जरिए रणनीतिक जीत हासिल करने की है। इसके चलते सामान्य प्रशासन विभाग ने इस कानून को खत्म करने का मसौदा तैयार कर लिया है।

उल्लेखनीय है कि इसके पहले भी सरकार ने विधानसभा में इस निरसन विधेयक को लाने की तैयारी की थी। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस जनता में किसी को नाराज नहीं करना चाहती थी।

इस कारण विधेयक को रोककर पेंशन लेने वाले हितग्राहियों की सूची का रिव्यू करने तक 28 दिसंबर 2018 अस्थाई रुप से पेंशन रोकने के आदेश जारी किए थे।

सरकार के इस कदम को देखते हुए लोकतंत्र सेनानी संघ ने आंदोलन कर राज्यपाल को ज्ञापन सौंपने का ऐलान किया है। इसके बाद सरकार ने पेंशन चालू कर दी थी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान वर्ष 1975 से 1977 के बीच लगे आपातकाल के दौरान जेल में डाले गए लोगों को मीसाबंदी पेंशन योजना के तहत करीब 4000 लोगों को 25,000 रुपये मासिक पेंशन दी जाती है।

– क्या है पेंशन और कौन ले रहा
तत्कालीन भाजपा सरकार ने मीसाबंदी पेंशन के लिए 2008 में लोकतंत्र सेनानी पेंशन अधिनियम बनाया था। चुनाव के पहले इसे विधानसभा से पारित कराकर कानून की शक्ल दी थी, ताकि इसे सदन में लाए बिना निरस्त नहीं किया जा सके। इसके तहत आपातकाल में जेल जाने वालों को पेंशन की पात्रता है।

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत सहित कई भाजपा बड़े नेता इस पेंशन का लाभ ले रहे हैं। पहले पेंशन के लिए न्यूनतम एक महीने जेल में रहने का प्रावधान था, लेकिन केंद्रीय मंत्री गेहलोत के 13 दिन जेल में रहकर भी पेंशन लेने के विवाद के बाद भाजपा सरकार ने आपातकाल में एक दिन भी जेल में रहने पर पेंशन का लाभ देने का नियम बना दिया था।

 

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