सरकारें बदलती रहीं, सूबे में अराजक तत्व हावी रहे: पश्चिम बंगाल 

 कोलकाता
बीजेपी चीफ अमित शाह के कोलकाता में मंगलवार को रोड शो के दौरान जिस तरह से हिंसा का तांडव हुआ, उससे पश्चिम बंगाल की राजनीति का कड़वा सच सामने आता है। इस हिंसा के दौरान उपद्रवी तत्वों ने समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति को भी तोड़ दिया था। यह हिंसा लगातार जारी है और बंगाल की चुनावी राजनीति में एक तरह से अराजक तत्व हावी हो गए हैं। 

सीपीएम के दौर में ऐसे अराजक तत्व कैडर कहलाते थे, लेकिन 2011 में वामपंथ का किला ढहा तो फिर सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस की ओर ऐसे लोगों ने रुख कर लिया। अब इस चुनाव की बात की जाए तो ऐसे अराजक तत्व तृणमूल कांग्रेस के साथ ही बीजेपी में भी शामिल हो गए हैं। भले ही इस हिंसा में किसी भी दल की जय या पराजय हो, लेकिन आम नागरिकों के लिए चिंता की बात है। भविष्य में यदि कभी बीजेपी का भी शासन पश्चिम बंगाल में आता है तो फिर ऐसे गुंडों के उसमें भी ऐक्टिव हो सकते हैं। 
पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण में ममता बनर्जी के लिए काफी कुछ दांव पर है। ममता बनर्जी के सामने बीजेपी के आक्रामक उभार से निपटते हुए अपना किला बचाने की चुनौती है। कोलकाता और उसके आसपास के इलाके तृणमूल के समर्थन वाले मान जाते रहे हैं, लेकिन अमित शाह के रोड शो में जिस तादाद में लोग जुटे थे, उससे यह लड़ाई उतनी भी आसान नहीं लगती। 

इस रविवार को पश्चिम बंगाल की 9 लोकसभा सीटों पर चुनाव होना है। इन सीटों में से एक पर भी 2014 के आम चुनाव में बीजेपी को जीत नहीं मिली थी। सीपीएम को उम्मीद है कि वह जाधवपुर लोकसभा सीट में कड़ी टक्कर दे पाएगी, जबकि उसे डायमंड हार्बर में दूसरे नंबर पर रहने की उम्मीद है। यहां से ममता बनर्जी के भतीजे चुनावी समर में हैं। 

लेफ्ट और कांग्रेस की कीमत पर बढ़ रही बीजेपी
ममता को सबसे अधिक खतरा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी से है। ममता भी इस खतरे को भांप रही हैं। यह अकेली ऐसी पार्टी है, जो पश्चिम बंगाल में अपना जनाधार बढ़ा रही है, जबकि सूबे की सीपीएम और कांग्रेस जैसी परंपरागत पार्टियों का जनाधार सिमट रहा है। यही वजह है कि ममता ने बीजेपी से निपटने के लिए हर मोर्चे पर कोशिशें शुरू कर दी है। स्टेट मशीनरी का भी वह अपने लिए जमकर इस्तेमाल करती दिख रही हैं। दूसरी तरफ बीजेपी भी तृणमूल को पूरी टक्कर देती दिख रही है। 

मतदाताओं को दी जा रही हैं धमकियां 
हाल यह है कि मतदाताओं को धमकाने की भी कोशिश की जा रही है और इसके लिए हिंसा तक का सहारा लिया जा रहा है। यहां तक कि आधी रात को लोगों को दरवाजे खटखटाकर उनकी पोलिंग ड्यूटी याद दिलाई जा रही है। कई सुदूर ग्रामीण इलाकों में तो महिलाओं को सफेद साड़ी भी दी जा रही है, जिसका संकेत यह है कि यदि आपके पति ने कहीं और वोटिंग की तो फिर वह जिंदा नहीं लौटेगा। 

टीएमसी राज में करप्शन से परेशान हैं लोग 
टीएमसी यह मानती रही है कि वह सूबे की सभी 42 सीटों पर कब्जा जमाएगी, लेकिन यह आसान नहीं है। चुनाव जैसे-जैसे निपटने की ओर है, ममता बनर्जी का दर्द भी इस आशंका से बढ़ता जा रहा है। टीएमसी के लिए सबसे बड़ी समस्या करप्शन है। आम लोगों की बातचीत में करप्शन का दर्द उभरकर सामने आता है। लेफ्ट फ्रंट की सरकार के दौरान रिश्वतखोरी और करप्शन चलता था, लेकिन टीएमसी के दौर में यह रूटीन एक्सरसाइज बन गया है। खासतौर पर ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी भी इस करप्शन के लिए जिम्मेदार ठहराए जाते हैं। 

ममता को आशंका, बीजेपी संग जा सकते हैं इंटलेक्चुअल्स 
बीजेपी का पश्चिम बंगाल में भले ही स्थानीय संगठन बहुत मजबूत नहीं है, लेकिन मोदी ही पूरे अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि इस चुनाव में बीजेपी पर मारवाड़ी पार्टी का जो टैग लगा है, वह हट सकेगा। बीजेपी को खासतौर पर गैर-बंगाली मतदाताओं के वोट मिल सकते हैं। ममता के गुस्से की मूल वजह यह है कि उन्हें लगता है कि बीजेपी लंबा गेम खेल रही है। उन्हें आशंका है कि कोलकाता के बुद्धिजीवी भी बीजेपी का रुख कर सकते हैं, जिस तरह से वे सीपीएम को छोड़ टीएमसी के पाले में आए थे। भले ही अन्य राज्यों में बुद्धिजीवी वर्ग की यह स्थिति नहीं है कि वे चुनावों को प्रभावित कर सकें, लेकिन पश्चिम बंगाल में ऐसा नहीं है। 

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