सन 2100 तक पिघल जाएंगे हिमालय के आधे से ज्यादा ग्लेशियर, सूख जाएंगी नदियां
नई दिल्ली
दुनिया में तीसरे ध्रुव के तौर पर जाने जाने वाले हिमालय पर ग्लोबल वार्मिंग का जबरदस्त प्रभाव पड़ रहा है. हिंदुकुश हिमालय को लेकर हुए एक ताजा अध्ययन के मुताबिक पेरिस समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित किए जाने के लिए कदम उठाने के बावजूद तापमान में 2.1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी शताब्दी के अंत तक होगी. इसका असर हिमालय के ग्लेशियर पर पड़ेगा. अगर ऐसा हुआ तो इस इलाके के एक तिहाई ग्लेशियर पिघल जाएंगे और हिमालय में रहने वाले 25 करोड़ पहाड़ी लोग और इसी के साथ 165 करोड़ ऐसे लोग जो हिमालय के आसपास रहते हैं, उन पर बुरा असर पड़ेगा.
अध्ययन के मुताबिक अगर जलवायु परिवर्तन को काबू में रखने वाले मौजूदा कदम असफल रहते हैं तो इस समय के उत्सर्जन के मुताबिक सन 2100 तक हिमालय के दो तिहाई ग्लेशियर पिघल जाएंगे. इसकी वजह से नदियों में पानी तेजी से घट जाएगा और इससे हिमालय के आसपास के इलाकों में पानी का संकट खड़ा हो जाएगा. इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के फिलिप्स वेस्टर का कहना है कि यह ऐसी जलवायु त्रासदी होगी जिसे आपने कभी सुना नहीं होगा. उनके मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग का मौजूदा ट्रेंड इस तरीके का है कि इससे हिंदुकुश हिमालय की तमाम चोटियां बर्फविहीन हो जाएंगी.
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हिमालय के आसपास मौजूद सभी देशों में वायु प्रदूषण का स्तर और खतरनाक हो जाएगा. मौसम की गतिविधियां भी भयानक हो जाएंगी. कहीं पर बाढ़ तो कहीं पर सूखा तो कहीं पर जबरदस्त आंधियां. उन्होंने बताया कि ताजा अध्ययन के मुताबिक मानसून से पहले नदियों के बहाव में काफी कमी आ जाएगी. मानसून के पैटर्न में भी बदलाव देखा जा सकता है. इसकी वजह से शहरों में पानी की सप्लाई प्रभावित होगी और खाने पीने की किल्लत बढ़ सकती है.
क्या कहते हैं सीनियर साइंटिस्ट
नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट में सीनियर साइंटिस्ट रहे प्रोफेसर सैयद मसूद अहमद ने बताया कि आईपीसीसी की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग को रोकना आसान नहीं होगा. वायुमंडल में मानवीय गतिविधियों की वजह से ग्रीनहाउस गैसें लगातार बढ़ रही है. प्रोफेसर सैयद मसूद अहमद इन दिनों राजधानी दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में छात्रों को ग्लोबल वार्मिंग की खतरों से रूबरू करा रहे हैं. उनका कहना है कि पेरिस समझौते को अक्षरशः लागू करने के बावजूद 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी तो सिर्फ 2030 तक हो जाएगी. अमेरिका और चीन जैसे बड़े औद्योगिक देश जब तक ग्लोबल वार्मिंग को रोकने की जिम्मेदारी से बचते रहेंगे, तब तक यह समस्या बनी रहेगी. वायुमंडल के बढ़ते तापमान और ग्रीनहाउस गैसे के प्रभाव से हिमालय के ग्लेशियर निश्चित तौर पर तेजी से पिघल जाएंगे.
इन देशों पर पड़ेगा असर
हिंदुकुश हिमालय इलाका 3500 किलोमीटर तक फैला हुआ है. यह पहाड़ अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, इंडिया, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान में फैले हुए हैं. हिमालय के ऊंचे ऊंचे ग्लेशियर से दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण 10 नदियां निकलती हैं. इन नदियों में गंगा, सिंधु, येलो रिवर, इरावती मेकॉन्ग, ब्रह्मपुत्र, सतलुज, व्यास, रावी जैसी बड़ी नदियां हैं. इनमें हिमालय के ग्लेशियर से आ रहा पानी पूरे साल बहता रहता है. अगर हिमालय के ग्लेशियर सूख जाएंगे तो इन नदियों में 12 महीने पानी नहीं रहेगा.
भूगर्भ शास्त्र के मुताबिक हिमालय पर्वत श्रृंखला 7 करोड़ साल पहले बननी शुरू हुई थी. हिमालय पर्वत के ग्लेशियर बदलते मौसम के लिहाज से काफी संवेदनशील है. 1970 से इस इलाके में मौजूद ग्लेशियर पर ग्लोबल वार्मिंग के असर को लगातार रिकॉर्ड किया जा रहा है. हिमालय में मौजूद तमाम बड़े ग्लेशियर लगातार तेजी से पिघल रहे हैं. धीरे धीरे कई ऐसे इलाके जहां पर हमेशा बर्फ रहती थी, वहां से बर्फ पूरी तरह से हटनी शुरू हो गई है. हिमालय के वातावरण में आ रहे पर्यावरण के इन बदलाव का असर दिखना शुरू हो गया है.
इलाके में 25 करोड़ पहाड़ी लोग रहते हैं. इनमें एक तिहाई लोगों की कमाई प्रतिदिन महज 1.9 डॉलर है. इस इलाके में रहने वाले 30 फ़ीसदी लोग ऐसे हैं जिनके पास खाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं है. 50 फ़ीसदी लोग ऐसे हैं जो किसी ना किसी तरह के कुपोषण से प्रभावित हैं. ऐसे में ग्लोबल वार्मिंग इस इलाके में लोगों को बुरी तरह से प्रभावित करेगा.
इस अध्ययन में कहा गया है कि हिंदुकुश हिमालय में 500 गीगा वाट बिजली पैदा करने का सामर्थ्य है. इससे एक अरब लोगों के घरों में बिजली की सप्लाई दी जा सकती है. लेकिन इस इलाके में रहने वाले ज्यादातर लोग पारंपरिक ईंधन का इस्तेमाल करते हैं जिससे ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा मिलता है, लिहाजा इस तरफ ध्यान दिए जाने की जरूरत है.
सूख जाएंगी नदियां
ग्राउंड वाटर पर काम करने वाले साइंटिस्ट डॉक्टर शकील अहमद ने बताया कि निश्चित तौर पर हिमालय पर ग्लोबल वार्मिंग का असर पड़ रहा है. जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में ज्योग्राफी डिपार्टमेंट में पढ़ा रहे डॉक्टर शकील अहमद ने बताया कि आने वाले दिनों में हिमालय में जैसे-जैसे ग्लेशियर तेजी से पिघलने शुरू होंगे वैसे वैसे शुरुआत में नदियों में पानी का स्तर बढ़ जाएगा और इसकी वजह से बाढ़ का भी खतरा हो सकता है. लेकिन जब ग्लेशियर पूरी तरीके से पिघल जाएंगे तो नदियों में 12 महीने पानी नहीं रहा करेगा.