शादीशुदा हैं, लिव-इन में रहती हैं या कामकाजी हैं? महिलाएं जरूर जान लें अपने वित्तीय अधिकार

नई दिल्ली 
महिलाओं के लिए वैवाहिक रिश्ते में रुपये-पैसे से जुड़ी समस्याएं दो बातों से उभरती हैं। एक तो वित्तीय मामलों की जानकारी न होना और दूसरा रुपये-पैसे के मामले में पुरुष से तालमेल न बन पाना। पहले मामले से निपटने के लिए जरूरी है कि महिलाओं को वैवाहिक रिश्ते में अपने वित्तीय अधिकारों और कौशल की अच्छी जानकारी हो। महिलाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे शादी के बाद काम करना नहीं छोड़ेंगी और अपना एक अलग बैंक खाता चालू रखेंगी। अपने स्त्रीधन पर उनका कंट्रोल होना चाहिए, साथ ही इन्वेस्टमेंट्स और ऐसेट्स में उन्हें जॉइंट पार्टनर होना चाहिए। उन्हें हर तरह के इन्वेस्टमेंट्स की जानकारी होनी चाहिए, चाहे वह प्रॉपर्टी में किया गया हो या टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट में। उन्हें आंख मूंदकर किसी दस्तावेज पर दस्तखत नहीं करना चाहिए।
बाद वाले पहलू की बात करें तो अगर पार्टनर्स के बीच अच्छा तालमेल हो तो भी रुपये-पैसे को लेकर गतिरोध बनने से संबंधों पर आंच आ सकती है। पैसे के मसले प्राय: अलगाव का मुख्य कारण नहीं होते हैं, लेकिन वे अलगाव की प्रक्रिया को तेज कर सकते हैं। ऐसा तब होता है, जब कोई पक्ष पैसे के मामले में धोखा खाया हुआ महसूस करे।

सर्वे में क्या-क्या सामने आया?
ईटी वेल्थ और इकनॉमिकटाइम्सडॉटकॉम ने 2015 में एक सर्वे किया था, जिसमें 2934 लोगों ने हिस्सा लिया। उसमें से करीब 39 प्रतिशत लोगों का मानना था कि अपने जीवनसाथी से पैसे के बारे में झूठ बोलना कोई खराब बा नहीं है। वहीं 56 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे अपने पार्टनर को बताए बिना पैसे खर्च करते हैं। 27 प्रतिशत ने कहा कि वे पैसे के बारे में पार्टनर से चर्चा करने में हिचक महसूस करते हैं। लिहाजा यह जरूरी है कि गोल तय करने और उन्हें हासिल करने की योजना बनाने में पति-पत्नी की सोच एक हो। इसे पक्का करने के लिए खुलकर बातचीत होनी चाहिए और वित्तीय रूप से ईमानदारी दिखाई जानी चाहिए। आमदनी और खर्च के बारे में झूठ नहीं बोला जाना चाहिए।
 
जब आप पैसे की बात करती हैं तो क्या वह टॉपिक बदल देते हैं?
ऐसा होने का साफ मतलब यह है कि आपके पति ट्रांजैक्शंस या अपनी योजनाओं की जानकारी नहीं देना चाहते हैं या इसके बारे में सवाल-जवाब उन्हें पसंद नहीं है। हो सकता है कि उन्होंने कोई ऐसेट खरीदा हो या कोई लोन लिया हो या आपको बताए बिना कोई बड़ा खर्च किया हो।

क्या आमदनी से ज्यादा खर्च दिख रहा है?
अगर आप इस बात से हैरान हों कि आपके पति ने महंगा मोबाइल फोन या लैपटॉप क्यों खरीदा, जबकि उन्होंने बताया था कि कामकाज मंदा चल रहा है ता हो सकता है कि वह किसी बड़े बोनस या इनकम की जानकारी आपसे छिपा रहे हों या उनके पास ऐसा कैश हो जिसकी जानकारी उन्होंने आपको नहीं दी हो।

क्या बर्ताव में अचानक बड़ा बदलाव आया है?
क्या आपके पति चिड़चिड़े हो गए हैं? क्या आपके या अपने मॉनिटरी ट्रांजैक्शंस के बारे में उनका बर्ताव आक्रामक या रक्षात्मक हो गया है? इस पहलू पर गौर करना चाहिए। ये ऐसे संकेत हैं कि उन्होंने या तो कोई गलती कर दी है या आपसे कुछ छिपा रहे हैं।

क्या पति रुपये-पैसे का मामला अकेले संभालना चाहते हैं?
वह ऐसा इस सोच के साथ कर रहे होंगे कि पत्नी को अगर आमदनी और खर्च की पूरी जानकारी नहीं है तो वह यह तय नहीं कर सकती है कि कितन पैसा स्टॉक ट्रेडिंग और लॉस में जा रहा है या परिवार पर खर्च किया जा रहा है या लोन ईएमआई में जा रहा है।

क्या खर्च के पैटर्न में बदलाव आया है?
इसे पकड़ना आसान होता है क्योंकि पर्सनल परचेज में बढ़ोतरी या कर्ज देने वालों की ओर से कॉल बढ़ने को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। क्रेडिट कार्ड्स की संख्या अचानक बढ़ने के बारे में सावधान रहें। इससे नुकसान या इनकम में कमी का संकेत मिल सकता है।

तलाक
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में तलाकशुदा लोगों की संख्या 13.6 लाख है। यूनाइटेड नेशंस की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो दशकों में तलाकशुदा लोगों की संख्या दोगुनी हो गई है। विवाह से जुड़ी अनिश्चितता के कारण यह जरूरी है कि वित्तीय मामलों में शुरू से ही अलर्ट रहा जाए। अगर परेशानी का कोई भी संकेत दिखे तो फाइनैंशल प्लानर और वकील से संपर्क करें ताकि आपको पता चल सके कि किन दस्तावेजों की जरूरत होगी और आप कितना मेन्टिनेंस मांग सकती हैं।

उत्तराधिकार
आपको इससे जुड़ी कानूनी बारीकियां जानने की जरूरत तो नहीं है, लेकिन चल और अचल संपत्ति के बारे में अपने अधिकारों का पता आपको होना ही चाहिए। हिंदू उत्तराधिकार कानून 2005 में संशोधन के बाद बेटियों को अपने पिता की पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर ही अधिकार दिए गए हैं। हालांकि जब पति की प्रॉपर्टी की बात आती है तो जब तक उसे खरीदने में पत्नी ने योगदान न दिया हो, तब तक वे उस पर दावा नहीं कर सकती हैं।

स्त्री के वैवाहिक अधिकार
महिलाओं को छह ऐसे अधिकार दिए गए हैं, जिनका सहारा वे अपनी आर्थिक, शारीरिक और मानसिक सुरक्षा के लिए ले सकती हैं। इनमें उनके और उनके बच्चों के भरणपोषण, वैवाहिक घर, स्त्री धन, मान मर्यादा के साथ रहने, समर्पित संबध और माता-पिता की संपत्ति में अधिकार शामिल हैं। क्रिमिनल प्रसीजर कोड (CPC) के सेक्शन 125 के तहत महिलाओं को भरणपोषण का अधिकार दिया गया है। तलाक होने के बाद भरण पोषण का अधिकार हिंदू मैरिज ऐक्ट, 1955 (2) और हिंदू अडॉप्शन ऐंड मेन्टिनेंस ऐक्ट, 1956 में शामिल किया गया है। 

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