वोटिंग के ऐन पहले तक खामोश मुसलमान, किसी बड़ी मस्जिद से ‘सियासी ऐलान’ नहीं

नई दिल्ली 
रमजान शुरू होने के बाद दिल्ली के मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में चुनाव प्रचार लगभग थम सा गया था। मुसलमान दिनभर रोजा रखते हैं और शाम को इफ्तार और उसके बाद तरावीह की नमाज में मशगूल हो जाते हैं। इस दौरान राजनीति पर चर्चा करने का वक्त आम मुसलमान के पास नहीं था। अब जब रविवार को दिल्ली में वोट पड़ने हैं तो उससे पहले भी दिल्ली के मुस्लिम तबके में एक खामोशी सी छाई है। कांग्रेस, आप और कुछ हद तक बीजेपी भी अपने-अपने दावे कर रही है लेकिन मुस्लिम वोट किधर जा रहा है यह कह पाना अभी मुश्किल है। 
 
जामा मस्जिद के शाही इमाम का अपील से किनारा 
इस मामले में मुस्लिम उलमा भी खास एहतियात बरत रहे हैं। जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने कुछ दिन पहले ही यह ऐलान कर दिया था कि वो इस बार किसी भी राजनीतिक पार्टी के पक्ष या विपक्ष में अपील नहीं करेंगे। अपने इस स्टैंड पर वह कायम रहे क्योंकि शुक्रवार को रमजान के पहले जुमे की नमाज थी और कुछ लोगों को लग रहा था कि शायद कुछ ‘सियासी ऐलान’ हो लेकिन शाही इमाम ने अपने बयान को ऐसी किसी भी बात से दूर रखा। 
 
बुखारी ने एनबीटी को बताया कि उन्होंने जुमे के खुतबे में लोगों से वोट करने की भी अपील नहीं की क्योंकि लोग खुद समझदार हैं और लोकतंत्र की मजबूती के लिए जो जरूरी होगा करेंगे। हालांकि दिल्ली की दूसरी सबसे बड़ी मस्जिद फतेहपुरी के शाही इमाम डॉ. मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम ने जुमे के बयान में लोगों से अपील की कि वे जरूर वोट देने के लिए निकलें। उन्होंने कहा कि हर मुसलमान को सुबह 7 बजे अपने-अपने पोलिंग बूथ पर मौजूद होना चाहिए और बुजुर्गों, औरतों और बीमार लोगों की वोट डालने में मदद भी करनी चाहिए। उन्होंने भी किसी पार्टी के पक्ष में अपील नहीं की लेकिन यह जरूर कहा कि वोट बंटना नहीं चाहिए। 
 
किसे दें वोट, हर तरफ बहस 
भले ही मस्जिदों के अंदर कोई सियासी हलचल न हो लेकिन बाहर जरूर जोरदार बहस चल रही है। खासतौर से तरावीह के नमाज के बाद लोग जरूर छोटे-छोटे गुटों में दिल्ली की राजनीति पर बहस करते हुए नजर आ रहे हैं। फिरोजशाह कोटला किले के मस्जिद के बाहर तरावीह पढ़कर निकले पुरानी दिल्ली के कुछ लोगों से हमने बातचीत की तो उन्होंने बताया कि दिन में तो किसी के पास वक्त नहीं है लेकिन अब नमाज से फारिग होकर हम जरूर इस बात पर चर्चा करते हैं कि वोट किसे दिया जाए। यहां खड़े रहमत अली ने बताया कि मुस्लिम वोट किधर जाएगा कहना मुश्किल है क्योंकि जिस तरह से हम यहां बात करके मन बना रहे हैं वैसे ही पूरी दिल्ली में चल रहा है और वोटिंग के दिन सुबह फज्र की नमाज के बाद तक लोगों के मन बदल सकते हैं। 
 

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