विधानसभा चुनाव: अपनों के बीच उलझा ‘हाथी’, चलना भी हो रहा मुश्किल

ग्वालियर
विधानसभा चुनावों में ग्वालियर चम्बल अंचल में अच्छा प्रदर्शन करने वाली बहुजन समाज पार्टी लोकसभा चुनाव में शुरूआती दौर में ही अपनों के बीच उलझकर रह गई है। पार्टी सबसे अधिक फोकस शिवपुरी में कर रही थी लेकिन यहाँ पार्टी प्रत्याशी के कांग्रेस का दामन थाम लेने से पार्टी का पूरा गणित गड़बड़ा गया । उधर ग्वालियर,भिंड और मुरैना, में भी पार्टी प्रत्याशियों की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। पार्टी कार्यकर्ता यहाँ केवल रस्म अदायगी कर रहे हैं।

दरअसल ग्वालियर चंबल संभाग की सीमा उत्तर प्रदेश से सटी है, इसलिए यहां पर पार्टी हमेशा से तीसरे नंबर पर रही है। मुरैना-ग्वालियर में विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों का परफार्मेन्स भी शानदार रहा है। मगर इस बार लोकसभा चुनाव में पार्टी के सभी समीकरण गड़बड़ा गए हैं। क्योंकि विधानसभा चुनाव के पहले ही पार्टी के परंपरागत वोट बैंक में कांग्रेस सेंध लगा चुकी है, जिसका बसपा को काफी नुकसान हुआ है। इधर कुछ ताजा घटनाक्रम ऐसे हुए हैं, जिसके कारण पार्टी प्रत्याशियों को प्रचार-प्रसार छोड़कर पहले अपनों को मनाने में समय बर्बाद करना पड़ रहा है। पार्टी को सबसे बड़ा झटका गुना-शिवपुरी से प्रत्याशी लोकेन्द्र सिंह राजपूत ने दिया । पार्टी प्रत्याशी ने कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया को समर्थन देते हुए पाला बदलकर कांग्रेस का दामन थाम लिया है। चुनाव के ठीक पहले प्रत्याशी के इस निर्णय ने पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। साथ ही इससे कांग्रेस-बसपा के गठबंधन में भी दरार आई है। इस घटनाक्रम के बाद  बसपा सुप्रीमो मायावती ने चुनाव चिन्ह पर ही चुनाव लड़ने की घोषणा की है। इसके बाद शिवपुरी, गुना, अशोक नगर के जिलाध्यक्षों की बैठक भी हुई लेकिन बिना प्रत्याशी के बसपा अब फाइट में कहीं दिखाई नहीं दे रही है।

उधर ग्वालियर सीट पर भी पार्टी को शुरुआत में ही झटके लगे। बसपा ने पहले बलबीर सिंह कुशवाह को टिकट दिया था। नामांकन दाखिल करने से पहले ही पुलिस ने उनको धारा 307 के मामले में गिरफ्तार कर लिया। बलबीर 2009 से टिकट की दावेदारी कर रहे थे, तैयारी भी थी। उनके जेल जाने के बाद पार्टी ने उनकी पत्नी ममता कुशवाह को मैदान में उतारा है। जिनकी क्षेत्र में कोई खास पहचान नहीं है। वहीं विधानसभा चुनाव के बाद से ही पार्टी में अंदरूनी घमासान चल रहा है, इसलिए प्रत्याशी के लिए भीतरघात से निपटना बड़ी चुनौती बना हुआ है। ऐसे में पार्टी के स्टेट कोर्डिनेटर एवं जिलाध्यक्ष दिनेश मौर्य इस प्रयास में जुटे हैं कि किसी भी तरह से पार्टी के वोट बैंक को डायवर्ट होने से रोका जा सके। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्र की पिछड़ी बस्तियों में सभा के साथ ही रूठे नेताओं को मनाने का दौर भी चल रहा है। मुरैना-श्योपुर  लोकसभा सीट की बात करें तो पार्टी ने यहाँ से करतार सिंह भड़ाना को टिकट दिया है । भड़ाना का बाहरी होना यहाँ मुसीबत बना हुआ है वे  हमेशा अपनी सीट बदलते रहे हैं। इससे पहले वह बागपत, हरियाणा से चुनाव लड़ चुके हैं, एक बार विधायक भी रहे हैं। बाहरी प्रत्याशी को टिकट देने से स्थानीय नेता खासे नाराज हैं। जिस जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर टिकट दिया था, वह भी गड़बड़ाता नजर आ रहा है। क्योंकि बसपा से अधिक गुर्जर नेता भाजपा-कांग्रेस में हैं।  भिंड-दतिया सीट पर पार्टी ने बाबूलाल जामौर को टिकट दिया है । बसपा प्रत्याशी जिलाध्यक्ष के साथ ही लोकसभा प्रभारी भी रहे हैं। लेकिन जिम्मेदार पदों पर रहने के बाद भी वे कोई टीम नहीं खड़ी कर सके हैं। क्षेत्र में कोई खास पहचान नहीं होने से मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। एससी-एसटी एक्ट के बाद हुए हंगामे का इस सीट पर खासा प्रभाव रहा था, इसके बाद विधानसभा चुनाव में बसपा का परंपरागत वोट बैंक कांग्रेस की तरफ डायवर्ट हो गया था। ऐसे में लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए वोट बैंक को डायवर्ट होने से रोकना भी चुनौती है।

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