विज्ञान दिवस : विज्ञान में देश का मान बढ़ा रहीं ये महिलाएं

नई दिल्ली
 आज राष्ट्रीय विज्ञान दिवस है और इस बार की थीम है महिलाएं और विज्ञान। रिपोर्ट बताती हैं कि देश के वैज्ञानिक संस्थानों में महिलाओं की भागीदारी दुनिया में औसत हिस्सेदारी से आधी ही है। हालांकि, तमाम ऐसी महिला वैज्ञानिक हैं जो विभिन्न संस्थानों में नेतृत्व की भूमिका संभालकर देश का मान बढ़ा रही हैं। आइए जानें कौन हैं ये महिलाएं और कहां महिलाओं की भूमिका बढ़ाने की जरूरत है…..

रितु करिधल, वरिष्ठ वैज्ञानिक, इसरो :
इसरो में वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत रितु करिदल चंद्रयान -2 की मिशन निदेशक रही हैं। वह मार्स ऑर्बिटर मिशन की डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर भी रही हैं। करिधल ने चंद्रयान-2 की शुरुआत करने वाली महिला के रूप में प्रसिद्धि पाई। भारतीय विज्ञान संस्थान से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री करने वाली करिधल भारत के मंगल मिशन को डिजाइन करने के लिए काफी सराहना पा चुकीं हैं। 2007 में इसरो का यंग साइंटिस्ट अवार्ड जीत चुकीं करिधल इसरो में 22 साल से सेवाएं दे रही हैं।

नंदिनी हरिनाथ, रॉकेट वैज्ञानिक, इसरो :
बेंगलुरु में इसरो सैटेलाइट सेंटर के एक रॉकेट वैज्ञानिक, नंदिनी ने 20 वर्ष पहले यहां अपनी पहली नौकरी शुरू की थी। इस दौरान वह 14 मिशनों पर काम कर चुकीं हैं। वह मंगलयान मिशन के लिए डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर थी। नंदिनी का विज्ञान के प्रति झुकाव का पहला कारण लोकप्रिय टीवी कार्यक्रम स्टार ट्रेक था। शिक्षकों एवं इंजीनियरों के परिवार से होने के कारण विज्ञान के प्रति उनका झुकाव रहा।

डॉ. गगनदीप कांग, एफआरएस :
रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन और अमेरिकन एकेडमी ऑफ माइक्रोबॉयोलॉजी की फेलो बनने वाली पहली भारतीय महिला डॉ. कांग, ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट की कार्यकारी निदेशक हैं। देश में डायरिया रोकने के लिए भारतीय बच्चों के हिसाब से रोटावायरस वैक्सीन विकसित करने का श्रेय डॉ. गगनदीप कांग को जाता है। डॉ. कांग टाइफाइड निगरानी नेटवर्क और हैजा के लिए एक रोडमैप तैयार कर रही हैं। कांग अब दशकों से बच्चों में आंत के संक्रमण का अध्ययन कर रही है।

डॉ. टेसी थॉमस, विशिष्ट वैज्ञानिक, डीआरडीओ :
डीआरडीओ में वैमानिकी प्रणाली की महानिदेशक डॉ. टेसी थॉमस 1988 में रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला हैदराबाद से जुड़ीं। लंबी दूरी की मिसाइल प्रणालियों के लिए गाइडेड योजना तैयार की है, जिसका उपयोग सभी अग्नि मिसाइलों में किया जाता है। उन्हें 2001 में अग्नि आत्मनिर्भरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। डॉ. थामस ने अग्नि-4 की प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में काफी पहचान पाई। इसके बाद वह लंबी दूरी की अग्नि-5 मिसाइल प्रणाली के लिए परियोजना निदेशक (मिशन) भी थीं, जिसे सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया।  

डॉ. चंद्रिमा शाह, अध्यक्ष, राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी :
डॉ. चंद्रिमा शाह को भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की पहली महिला अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ है। चंद्रिमा राष्ट्रीय इम्यूनोलोजी संस्थान, दिल्ली में प्रोफेसर ऑफ एमिनेंस हैं और वे इस संस्थान की निदेशक भी रह चुकी हैं। उन्होंने 1980 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायोलॉजी से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी। वह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी में स्टाफ साइंटिस्ट के रूप में शामिल हुईं। उन्होंने 80 से अधिक शोध पत्र भी लिखे। उन्होंने भ्रूण प्रत्यारोपण के तंत्र पर काफी काम किया है। 

डॉ. अनुराधा टीके, वरिष्ठ वैज्ञानिक, इसरो :
इसरो सैटेलाइट सेंटर में  जियोसैट कार्यक्रम निदेशक डॉ. अनुराधा टीके उपग्रहों की निगरानी का काम करती हैं। वह 1982 से इसरो को सेवाएं दे रही हैं और सबसे वरिष्ठ महिला वैज्ञानिक हैं। उन्होंने इसरो संचार उपग्रह जीसैट-12 को विकसित करने और लांच करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अनुराधा ने सितंबर 2012 में जीसैट -10 के लॉन्च का नेतृत्व किया। इसरो में परियोजना निदेशक के रूप में उन्होंने जीसैट-9, जीसैट-17 और जीसैट-18 संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण की सफलता में योगदान रहा। 

डॉ. रंजना अग्रवाल, निदेशक, सीएसआईआर-निस्टैड्स :
सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और विकास अध्ययन संस्थान (सीएसआईआर-निस्टैड्स), नई दिल्ली की निदेशक डॉ. रंजना अग्रवाल ने  कैंब्रिज विश्वविद्यालय से इरिथ्रोमाइसिन बायोसिन्थेसिस पर दो वर्षीय शोध किया। कैंब्रिज में कॉमनवेल्थ फेलो, ट्रिनिटी कॉलेज डबलिन, आयरलैंड और यूनिवर्सिटी ऑफ ट्रिस्टे इटली में कार्य किया है। हाल ही में उनको कैंसर का उपचार करने के लिए नए तरीके विकसित करने हेतु हरियाणा सरकार ने शोध अनुदान दिया है। डॉ. रंजना ग्रामीण महिलाओं के कौशल विकास उन्नयन में योगदान दे रही हैं। 

डॉ. एन. कालीसल्ल्वी, निदेशक, सीएसआईआर-सीईसीआरआई :
सीएसआईआर-केंद्रीय विद्युत अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीईसीआरआई) की निदेशक डॉ. एन. कालीसल्ल्वी इस पदभार को संभालने वाली पहली महिला हैं। डॉ. कालीसल्ल्वी के 25 से अधिक वर्षों के अनुसंधान कार्य मुख्य रूप से विद्युत ऊर्जा प्रणालियों और विशेष रूप से केंद्रित हैं। डॉ. कालीसल्ल्वी अब तक 125 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत कर चुकी हैं और उनके पास छह पेटेंट हैं। वह कोरिया के ब्रेन पूल फेलोशिप और मोस्ट इंस्पायरिंग वुमन साइंटिस्ट अवार्ड से नवाजी जा चुकी हैं।

शोध-विकास में प्रतिनिधित्व बढ़ाने की जरूरत
14 फीसदी महिलाएं हैं कुल 2.8 लाख वैज्ञानिक, इंजीनियर व तकनीकी शोधकर्ताओं में 
28.4 फीसदी वैश्विक औसत है महिलाओं की भागीदारी का वैज्ञानिक संस्थानों में  
25 फीसदी महिला कर्मी हैं देश के वैज्ञानिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों में 
08 फीसदी महिलाएं इसरो के वैज्ञानिक और तकनीकी स्टॉफ में महज 

आईआईटी में नुमाइंदगी
10 फीसदी के करीब लड़कियां थीं आईआईटी के कुल छात्रों में 2017 में 
20 फीसदी तक ले जाने 

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