लोकसभा चुनाव: बिहार में जातीय गणित पर भारी पड़ेगा मोदी मैजिक?

छपरा 
सारण के खैरा इलाके में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब बीजेपी उम्मीदवार राजीव प्रताप रूडी के लिए वोट मांगते हैं तो सबसे पहले बालाकोट एयर स्ट्राइक का जिक्र करते हुए अपने संबोधन की शुरुआत करते हैं। वह बताते हैं कि कैसे इससे देशवासियों का मनोबल ऊंचा हुआ। अपनी सरकार की उपलब्धियां बताने से पहले वह मोदी सरकार की योजनाओं जैसे उज्ज्वला योजना और आयुष्मान भारत योजना की बात करते हुए कहते हैं कि किस तरह से इससे देश के लोगों को लाभ हुआ है। 

भाषण देते हुए नीतीश कुमार यादव समुदाय से आने वाले परसा के एक किसान भरत राय की तरफ इशारा करते हुए जनता की नब्ज पकड़ते हैं। भरत किसी निजी काम से खैरा आए थे लेकिन नीतीश का हेलिकॉप्टर लैंड होते देखकर रैली में शामिल होने पहुंच गए। भरत कहते हैं, 'मुद्दाविहीन चुनाव हो रहा है। वोटरों को केवल यह फैसला करना है कि वे नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं या नहीं।' 

भरत को उम्मीद है कि यादव बिरादरी के बहुत से लोग सारण में बीजेपी कैंडिडेट रूडी के बजाए मोदी के लिए वोट करेंगे। आरजेडी ने यहां से परसा विधायक चंद्रिका राय को टिकट दिया है। वह लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव के ससुर हैं, जो इन दिनों पार्टी के खिलाफ बगावती मूड में हैं। रैली में मौजूद भरत और दूसरे लोगों के मुताबिक जमीनी स्तर पर बीजेपी कार्यकर्ता वोटरों के बीच जाति और वर्ग से ऊपर उठते हुए यह माहौल बनाने में सफल रहे हैं कि उन्हें मोदी और राहुल गांधी में से चुनना है। इसकी वजह से स्थानीय और दूसरे मुद्दे किनारे हो गए हैं और लोकसभा चुनाव मोदी पर राष्ट्रव्यापी जनमत संग्रह में तब्दील हो गया है। 

बीजेपी के लिए बिहार में चुनाव अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। जिन 17 सीटों पर पार्टी राज्य में लड़ रही है, उनमें से अभी तक 5 पर ही मतदान हुआ है। पार्टी को उम्मीद है कि मोदी फैक्टर की वजह से टिकट बंटवारे के दौरान खास तौर पर अगड़ी जाति के वोट बैंक की नाराजगी को दूर करने में मदद मिलेगी। 6 मई को पांचवें चरण में सारण, मुजफ्फरपुर और मधुबनी सीटों पर बीजेपी लड़ रही है। इसके साथ ही हाजीपुर और सीतामढ़ी सीटों पर भी मतदान है, जहां एलजेपी और जेडीयू उम्मीदवार मैदान में हैं। 

भूमिहार और ब्राह्मणों को बीजेपी का पारंपरिक रूप से समर्थक माना जाता है। दोनों समुदायों की इन लोकसभा क्षेत्रों में अच्छी-खासी आबादी है। राजपूत और यादव समुदाय के लोगों को ज्यादा टिकट देने की वजह से उनमें नाराजगी देखी जा रही है। राजपूतों को पांच सीटें मिली हैं, जो अगड़ी जातियों में सबसे ज्यादा है। यादवों को तीन सीटें मिली हैं। यादव और राजपूतों को ज्यादा टिकट देकर बीजेपी ने उन्हें आरजेडी से दूर करने की रणनीति बनाई है। 

औरंगाबाद, नवादा, जमुई और गया में पहले राउंड की वोटिंग के बाद बीजेपी के पक्ष में यह नया जातीय गणित काम करता दिखा था। मतदान के ठीक एक दिन बाद विपक्षी महागठबंधन के दो भूमिहार नेताओं महाचंद्र सिंह और विनोद शर्मा ने बीजेपी जॉइन कर ली थी। एक और भूमिहार नेता सच्चिदानंद राय और ब्राह्मण नेता सतीश दुबे जो वाल्मीकिनगर से निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे वे एक चार्टर्ड प्लेन से भुवनेश्वर पहुंचे, जहां बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उन्हें पार्टी के हित में काम न करने के लिए मना लिया। लौटने के बाद राय ने दावा किया कि उन्हें राज्यसभा सीट का भरोसा मिला है। 

मधुबनी में भी 6 मई को मतदान है। यहां बीजेपी ने एक और बागी ब्राह्मण नेता मृत्युंजय झा को उपाध्यक्ष के पद का प्रस्ताव देते हुए राजी कर लिया है। वह निर्दलीय लड़ने की तैयारी में थे। हाजीपुर सुरक्षित सीट है, वहीं जेडीयू इस बात को लेकर फिक्रमंद है कि सीतामढ़ी में अगड़ी जाति का वोट किस तरफ जाता है। यहां से पार्टी ने वैश्य कैंडिडेट उतारा है, ऐसे में अपर कास्ट के पास इलाके से ही आने वाले निर्दलीय कैंडिडेट माधव चौधरी की तरफ जाने का विकल्प है। अगर कांटे की लड़ाई होती है तो चौधरी को मिलने वाला वोट जेडीयू को बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है।

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